दिवस विशेष: एक विश्वविद्यालय का स्थान
हम स्पष्ट रूप से देख सकते है कि एक विश्वविद्यालय धीरे-धीरे करके एक विद्यार्थी के वास्तविक जीवन में अपनी प्रासंगिता, अपना महत्व खो देता है। विश्वविद्यालय अपना स्थान छोड़ते चले जा रहे है। वे मात्र एक कार्यालय के रूप में टीसी, माइग्रेशन, डिग्री, मार्कशीट देने लेने तथा विभिन्न जटिल प्रक्रियाओं के केन्द्र बनते जा रहे है।
एक विश्वविद्यालय को अपना स्थान पुन: ले लेना चाहिए। प्रवेश करवाना विश्वविद्यालय का दायित्व है। पुस्तकें और ई-पुस्तकें उपलब्ध करवाना विश्वविद्यालय का दायित्व है।
शिक्षा देना, कक्षायें ,संचालित करवाना, खेलकूद करवाना, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में परांगत करना, रोजगारपरक कोचिंग देना ,ये सारे कार्य विश्वविद्यालय के है। एक विश्वविद्यालय को अपने दायित्व से भागना नहीं चाहिए। यह समय है कि जब एक विश्वविद्यालय अपनी जिम्मेदारियों को पुरी तरह से आत्मसात करें। एक विश्वविद्यालय यह समझे कि भारत के समाज में उसका क्या स्थान है। समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना, जागरूकता लाना, विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का बहुआयामी विकास करना, पर्यावरण के प्रति चेतना जागृत करना, स्थानी हुनर को बढ़ावा देना, स्थानीय संस्कृति अर्थव्यवस्था और कला को समृद्ध करना, सामाजिक न्याय की अवधारणा को लोकप्रिय बनाना ,ये सभी काम एक विश्वविद्यालय के है। ये सभी काम एक विश्वविद्यालय को करना चाहिए। समाज में महत्व मांगने से नहीं मिलता है। समाज में स्थान क्रेडिट मांगने से नहीं प्राप्त होती है। एक विश्वविद्यालय को चाहिए कि वे आने वाले समय का दृष्टि में रखते हुये अपने सभी दायित्वों को स्वीकार करें और उनको बखूबी निभायें।
विश्वविद्यालय जागृत होंगे तो भारत वर्ष जागृत होगा। यही शिक्षा का जादू है। हम सबको मिलकर इस काम में लग जाना चाहिए।
प्रो. शुभा तिवारी
कुलपति
महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, छतरपुर (म.प्र.)