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Breaking: RTI से बड़ा खुलासा

त्यौंथर बिजली डिवीजन में डेढ़ साल में जले 655 ट्रांसफार्मर बदले गए मात्र 563

92 ग्रामों के लोगों ने बिजली विभाग ने पूरे डेढ़ साल रखा अंधेरे में

शिवराज सिंह चौहान की अटल बिजली योजना की स्थिति

ग्रामीणों और किसानों को भुगतना पड़ा भारी सितम

एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी द्वारा लगाई गई आरटीआई में सच आया सामने

 

मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान की अटल बिजली योजना को लेकर एक बड़ा खुलासा रीवा जिले के त्यौंथर विद्युत डिवीजन में हुआ है। प्रदेश में 24 घंटे अटल बिजली सप्लाई किए जाने वाली योजना के हाल यह हैं कि पूरे डेढ़ साल में बिजली डिवीजन के अंतर्गत आने वाले विद्युत वितरण केंद्रों और उनके ग्रामों में कुल 655 ट्रांसफार्मर जले बताए गए जबकि मात्र 563 ट्रांसफार्मर ही इस दौरान बदले गए। इस प्रकार देखा जाए तो प्राप्त जानकारी अनुसार 92 ग्रामों के लोगों को बिजली विभाग ने पूरे डेढ़ साल अंधेरे में रखा। अब कल्पना करिए 92 ट्रांसफार्मर के उन ग्रामों के उपभोक्ताओं की क्या स्थिति हुई होगी जब उन्हें मौसम की मार के बीच डेढ़ साल अंधेरे में समय गुजारना पड़ा होगा। यह कोई मनगढ़ंत जानकारी नहीं है बल्कि सूचना के अधिकार कानून से कानून के माध्यम से हुआ बड़ा खुलासा है। सूचना के अधिकार कानून की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की जिस कानून के बनने के बाद केंद्र और राज्य की सरकारें निरंतर इसे कमजोर करती रही हैं इसी कानून के कारण बड़ी-बड़ी जानकारियां सामने आने के बाद शासन की योजनाओं की पोल खुल जाती है और बड़े-बड़े भ्रष्टाचार उजागर हो जाते हैं।

   बता दें कि एक्टिविस्ट शिवानंद द्वारा आरटीआई से प्राप्त यह जानकारी त्योंथर में 01 जुलाई 2021 से 12 जनवरी 2023 के बीच पदस्थ रहे कार्यपालन अभियंता सुशील यादव के कार्यकाल के दौरान की है।
   बड़ा सवाल यह है की औद्योगिक सप्लाई के नाम पर उद्योगों को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली भारी भरकम सब्सिडी को यदि एक तरफ कर दिया जाए तो उसके मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण और किसानों को दी जाने वाली बिजली का औसत लगभग नगण्य के बराबर है। फिर भी राजनीतिक सत्तासीन पार्टियां जहां एक ओर बड़ी बड़ी योजनाओं के नाम पर किसानों और ग्रामीणों को अपने वोट बैंक के चक्कर में फंसा कर घुमाती रहती हैं वहीं औद्योगिक सप्लाई के नाम पर करोड़ों अरबों की बिजली सब्सिडी अपनी अपनी चहेती कंपनियों को दे दी जाती है। फर्क सिर्फ इतना होता है कि चहेती कंपनियों से राजनीतिक दलों और सत्तासीन पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिए भारी भरकम फंड मिल जाते हैं जबकि किसान और ग्रामीण मात्र वोट बैंक की राजनीति तक ही सीमित रह जाते हैं। बड़ा सवाल यह भी है यदि आरटीआई के माध्यम से मात्र त्यौंथर बिजली डिवीजन के जले हुए ट्रांसफार्मर और उनके बदलने की प्रक्रिया को लेकर प्राप्त जानकारी में यदि 92 ग्रामों अथवा टोलों के ट्रांसफार्मर न बदले जाने का खुलासा हुआ है तो फिर यदि पूरे जिले के अन्य डिवीजन और विद्युत वितरण केंद्र और फिर संभाग अथवा प्रदेश की बात की जाए तो भयावह सच्चाई सामने आएगी। इस प्रकार पता नहीं अभी भी कितनी हजार गांव जले हुए ट्रांसफार्मर न बदले जाने के कारण अंधेरे में डूबे होंगे।

सच्चाई यह भी है कि चाहे वह राजनीतिक सत्तासीन पार्टियां हों अथवा प्रतिद्वंदी पार्टियां, सभी मात्र किसानों और ग्रामीणों के बिजली बिल माफ किए जाने और कर्ज माफी को लेकर ही गेम खेलती हैं। लेकिन जहां इतने बड़े स्तर पर राजनीति खेली जाती है वहां की सच्चाई सामने आने के बाद फिर उन किसानों और ग्रामीणों को भी निद्रा और भ्रम से जाग जाना चाहिए और ऐसी राजनीति करने वाली इन राजनीतिक दलों को माकूल जवाब देने पर भी विचार करना चाहिए। आज के दौर में कुछ राज्यों में राजनैतिक दल जैसे आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियां भी हैं जो अपने-अपने राज्यों में लगभग कुछ यूनिट तक पूरा बिजली फ्री की हुई हैं लेकिन वहीं मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सहित ऐसी भी पार्टियां हैं जो चुनाव के दौरान बिजली बिल माफ करने की बातें करती हैं। आज के दौर में अब यह भी सवाल खड़ा हो जाता है कि यदि एक राज्य की सरकार अपने राज्य में फ्री बिजली उपलब्ध करवा रही है तो फिर अन्य राज्यों अथवा पूरे प्रदेश में यह व्यवस्था क्यों नहीं . . .

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