हमारा तिरंगा: 140 करोड़ भारतीयों की आन, बान और शान का प्रतीक है…
हम 140 करोड़ भारतीयों के प्रतीक हमारे देश की आन बान शान को दर्शाने वाला हमारी जान हमारा राष्ट्र ध्वज तिरंगा के अभिकल्पक महान स्वतंत्रता सेनानी घोर गांधीवादी, क़ृषि वैज्ञानिक #पिंगली_वैँकया का जन्म 2 अगस्त 1876 को आंध्रप्रदेश मे हुआ था l तिरंगे मे हम भारतीयों की भावनाये इस तरह से निहित है की हाथ मे लेते ही रोंगटे खड़े हो जाते है और गर्व की ऐसी अनुभूति होती है की जो पुरे शरीर मे ऊर्जा की तरंग भरते हुए दिल झूमते हुए ये एलान करना चाहता है की इससे प्यारा इससे ऊंचा इससे सुन्दर कुछ नहीं है l दुनिया वालो आओ सब मेरे पीछे आओ क्यों की मेरे हाथ मे तिरंगा है l जो एक दिन विश्व शांति का पताका बनेगा l क्यों की ये तिरंगा सिर्फ हमारा राष्ट्रप्रतीक भर नहीं है l ये गाँधी के शांति अहिंसा का द्योतक है l ये है हमारे 140 करोड़ हिंदुस्तानियों की भावनाये जो देश की एकता अखंडता का परिचायक है और जिसको अपने हाथो मे लेकर हर भारतीय गर्व से भर जाता है l इस तिरंगे का केसरिया रंग जहाँ हम भारतीयों के साहस और पराक्रम को दर्शाती है तो स्वेत रंग धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का आह्वान करती है तो हरा रंग हमारे देश की समृद्धि, विकास, शुभता एवं उर्वकता को दर्शाती है l हमारे राष्ट्र ध्वज की लम्बाई चौडाई का अनुपात 3:2 है और बीच मे धर्म चक्र मे 24 तीलियाँ है जो भारत निरंतर प्रगतिशील है इसका प्रतीक है l राष्ट्र ध्वज निर्दीस्टिकरण के अनुसार तिरंगा खादी के कपड़ो मे ही बनना चाहिए l
सन 2002 के पहले राष्ट्र ध्वज को सिर्फ गिने चुने दिनों या राष्ट्र पर्व पर ही फहराने का अधिकार था पर भारत के उद्योगपति ने जानबूझकर झंडा संहिता का उल्लंघन करते हुए राष्ट्र ध्वज को अपने कार्यालय पर फहराया जिससे वो झंडा जब्त कर लिया गया उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायलय मे प्रतिबंध हटाने के लिए याचिका दायर की जिंदल ने बहस की एक नागरिक के रूप मे मर्यादा एवं सम्मान के साथ तिरंगा फहराना हमारा अधिकार है और दिल्ली उच्च न्यायलय ने उनके दलील को माना भारत सरकार ने 26 जनवरी 2002 को झंडा संहिता मे संशोधन किये और आज हम तिरंगा वर्ष भर मार्य सम्मान के साथ फहरा सकते है l
22 जुलाई 1947 को भारत संविधान सभा ने राष्ट्र ध्वज को स्वीकार किया और कुछ दिन ही बात 15 अगस्त 1947 को दिल्ली के लाल किले से फहरा कर देश मे आजादी का जश्न मनाया l
आरएसएस का तिरंगे पर क्या था मत:
14 अगस्त, 1947 को आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र में प्रकाशित एक संपादकीय में कहा गया था_जो लोग भाग्य से सत्ता में आ गए हैं, उन्होंने हमारे हाथों में तिरंगा पकड़ा दिया है लेकिन इसे हिंदू कभी स्वीकार नहीं करेंगे और कभी इसका सम्मान नहीं करेंगे. तीन शब्द अपने आप में अशुभ है और तीन रंगों वाला झंडा निश्चित तौर पर बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा करेगा और देश के लिए हानिकारक साबित होगा.”