अमेरिका ने 31 जनवरी 1961 को स्पेस में एक कैप्सूल भेजा, जिसके अध्ययन के बाद इंसानों को अंतरिक्ष में भेजना शुरू हुआ.
Space Mission and Wild Animal: अमेरिका ने आज से ठीक 62 साल पहले एक ऐसे अंतरिक्ष अभियान को सफलता के साथ अंजाम दिया, जिसके बाद इंसानों को स्पेस में भेजने की राह आसान हो गई. अमेरिकी अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने इस मिशन को प्रोजेक्ट मरकरी (MR-2) नाम दिया था. इसके तहत साउथ फ्लोरिडा के टापू पर एक लॉन्च पैड को तैयार किया गया. फिर 31 जनवरी 1961 को एक स्पेस कैप्सूल 5800 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से 157 किमी की ऊंचाई तक गया. जब ये लौटकर लॉन्च पैड से करीब 130 किमी दूर अटलांटिक महासागर में गिरा और वैज्ञानिकों ने इस पर शोध किए तो स्पेस के दरवाजे इंसानों के लिए भी खुल गए.
अमेरिका ने 31 जनवरी 1961 को इस कैप्सूल के साथ पहली बार चिंपांजी को स्पेस में भेजा था. वैज्ञानिकों ने इस चिंपांजी को ‘हैम’ नाम दिया था. हैम अंतरिक्ष यात्रा करने वाला पहला जानवर था. हैम को कैमरून के जंगलों से पकड़कर फ्लोरिडा लाया गया था. सबसे पहले इसे कैमरून के जंगलों से मियामी रेयर बर्ड फर्म में रखा गया. इसके बाद उसे अंतरिक्ष भेजने की तैयारी के तहत प्रशिक्षण दिया गया था. हालांकि, वैज्ञानिकों के लिए हैम को प्रशिक्षण देना मुश्किल भरा काम था.
अब ये सवाल उठना लाजिमी है कि चिंपांजी को ही अंतरिक्ष क्यों भेजा गया? इसके बजाय बंदर, कुत्ता या किसी दूसरे जानवर को क्यों नहीं कैप्सूल में बैठाया गया. चिंपांजी को ही अंतरिक्ष में भेजने की वैज्ञानिकों के पास खास वजह थी. दरअसल, परीक्षणों में पाया गया था कि बंदरों की सभी प्रजातियों में चिंपांजी ही अकेला जानवर है, जिसकी शारीरिक संरचना करीब-करीब इंसानों जैसी ही होती है. इसीलिए कैप्सूल में चिंपांजी को ही बैठाया गया ताकि लौटने पर उसके ऊपर परीक्षण किए जा सकें और इंसानों पर अंतरिक्ष यात्रा का पता लगाया जा सके.
कितना मुश्किल था हैम को तैयार करना ?
हैम को 1959 में प्रशिक्षण के लिए वायुसेना के ठिकाने पर ले जाया गया. इसके बाद उसे कई महीनों की कड़ी मेहनत के बाद अंतरिक्ष यात्रा के लिए प्रशिक्षित किया जा सका था. इस दौरान उसे स्पेस कैप्सूल में तनाव से बचने की ट्रेनिंग भी दी गई. साथ ही लीवर खोलना और बंद करना भी सिखाया गया. वहीं, उसे सिखाया कि भूख लगने पर उसे केले के स्वाद वाली गोलियां कैसे खानी हैं. प्रोजेक्ट मरकरी के लिए हैम को हैशटैग 56 नाम दिया गया था. करीब 18 महीने के प्रशिक्षण के बाद हैम स्पेस ट्रेवल के लिए पूरी तरह से तैयार था.
प्रोजेक्ट मरकरी से वैज्ञानिकों को पता चला कि अगर इंसानों को स्पेस में भेजने के लिए उन्हें क्या तैयारियां करनी होंगी.
चंद मिनटों में स्पेस में पहुंच गया था हैम
प्रशिक्षण के बाद वो दिन आया जब हैम को एक कैप्सूल में रखकर अंतरिक्ष भेजा गया. ये कैप्सूल उड़ान भरने के महज 16 मिनट 30 के भीतर अंतरिक्ष में पहुंच गया था. इस दौरान इसने 5,800 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ान भरी. ये कैप्सूल 157 किमी की ऊंचाई तक गया. लौटते समय अटलांटिक महासागर में गिरने के बाद हैम को उससे निकालकर 1963 में वॉशिंगटन नेशनल जू और आखिर में नॉर्थ कैरोलिना जू में भेजा गया. इसके एक साल बाद 18 जनवरी 1964 को हैम का निधन हो गया.
वैज्ञानिकों को कैसे मिली सफलता?
चिंपांजी हैम को अंतरिक्ष भेजने का ये परीक्षण काफी सफल माना गया. इसी के बाद अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को पता चल पाया कि अगर इंसानों को स्पेस में भेजना है तो उन्हें क्या-क्या तैयारियां करनी होंगी. इंसानों के शरीर पर अंतरिक्ष यात्रा का किस तरह असर पड़ेगा और उनसे कैसा निपटा जा सकता है. इसी परीक्षण के बाद इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने का सिलसिला शुरू हुआ.