इस तकनीक को विकसित करने वाला भारत दुनिया का 6वां देश बन गया है.
इससे पहले फ्रांस, जर्मनी, जापान, कनाडा और चीन में यह तकनीक है.
डीएमआरसी अन्य रूट पर भी इस तकनीक को लागू करने की योजना बना रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मेक इन इंडिया अभियान भारत को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना रहा है. इस कड़ी में भारतीय रेलवे ने तकनीक विकसित कर ली है, जो अभी अमेरिका के पास भी नहीं है. दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) ने शनिवार को इस तकनीक का सफल परीक्षण किया और मेट्रो की रेड लाइन यानी रिठाला से शहीद स्थल तक चलने वाली मेट्रो ट्रेनों में इस तकनीक को इंस्टॉल किया गया.
डीएमआरसी और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) ने मिलकर इंडीजिनस ऑटोमेटिक ट्रेन सुपरविजन (i-ATS) सिस्टम को विकसित किया है. इस तकनीक को विकसित करने वाला भारत दुनिया का 6वां देश बन गया है. इससे पहले फ्रांस, जर्मनी, जापान, कनाडा और चीन इस तकनीक का इस्तेमाल कर चुके हैं. फिलहाल इसे एक लाइन पर लगाया गया है और जल्द ही डीएमआरसी अन्य रूट पर भी इस तकनीक को लागू करने की योजना बना रहा है.
क्यों जरूरी है यह तकनीक
इंडीजिनस ऑटोमेटिक ट्रेन सुपरविजन सिस्टम की जरूरत ऐसी जगहों पर होती है, जहां ट्रेनों की आवाजाही बेहद कम अंतराल पर रहती है. दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोशन भी हर 5 मिनट के अंतराल पर ट्रेनें चलाता है, जिससे हादसे की आशंका बनी रहती है. अगर इस सिस्टम को मशीनों द्वारा हैंडल किया जाए तो इसकी आशंका काफी कम हो जाती है. डीएमआरसी में इस तकनीक का इस्तेमाल होने से ट्रेनों की आवाजाही ज्यादा सुरक्षित और सुव्यवस्थित ढंग से पूरी की जा सकेगी.
कैसे काम करता है यह सिस्टम
जैसा कि नाम से जाहिर है यह सिस्टम का ट्रेनों का ऑटोमेटिक सुपरविजन करता है और उनकी टाइमिंग के साथ रुकने चलने का डाइरेक्शन भी खुद देता है. इसे एक तरह से रेलवे का अपना दिमाग कह सकते हैं, जो खुद यह निगरानी करता है कि उसकी ट्रेनों को कब चलना है, कब रुकना है और कितनी स्पीड पकड़नी है. कुल मिलाकर अब यह सारा काम कंप्यूटर आधारित सॉफ्टवेयर से होगा, जहां गलती की आशंका शून्य हो जाएगी.
विदेशों पर कम होगी निर्भरता
अभी तक इस तरह की तकनीक के लिए भारत विदेशी वेंडर्स पर निर्भर रहता था और इस तकनीक को लाने व अपने सिस्टम पर लागू करने में काफी पैसा खर्च होता था. लेकिन, भारतीय इंजीनियरों ने डीएमआरसी के आईटी पार्क में एक विकसित आई-एटीएस लैब बनाई है, जहां इस सिस्टम को स्वदेशी तकनीक पर विकसित किया गया. अब भारत तेजी से अपने रेलवे सिस्टम में इस तकनीक को अप्लाई कर सकता है और पूरे देश की रेलवे प्रणाली को ज्यादा सुरक्षित और सुव्यवस्थित बनाया जा सकता है.