रीवा  का क्या है इतिहास!

रीवा  का क्या है इतिहास!
रीवा_ वर्तमान में रीवा मध्य प्रदेश राज्य में एक महत्वपूर्ण  जिला है। यह ज़िले का मुख्यालय (संभाग) भी है और राज्य की राजधानी, भोपाल, से 420 किलोमीटर (260 मील) पूर्वोत्तर में और जबलपुर से 230 किलोमीटर (140 मील) उत्तर में स्थित है। इस से दक्षिण में कैमूर पर्वतमाला है और इस क्षेत्र में विन्ध्याचल की पहाड़ियाँ भी स्थित हैं। खनिज संसाधनों से भरा पूरा यह स्थान है।
रीवा शहर मध्य प्रदेश  के विंध्य पठार का एक हिस्से का निर्माण करता है और टोंस,बीहर,बिछिया नदी एवं उनकी सहायक नदियों द्वारा सिंचित है। इसके उत्तर में प्रयागराज (उत्तर प्रदेश राज्य),पश्चिम में सतना एवं पूर्व तथा दक्षिण में सीधी जिला स्थित है। इसका क्षेत्रफल २,५०९ वर्ग मील है। देश की आजादी के  पहले यहा एक बड़ी बघेल वंश की रियासत थी। यहाँ के निवासियों में गोंड एवं कोल,ब्राह्मण,विभिन्न क्षत्रिय एवम् वैश्य जाति के लोग  शामिल हैं जो पहाड़ी भागों के साथ-साथ मुख्य नगर में रहते हैं। जिला हरा भरा है क्युकी  जिले में जंगलों की अधिकता है,जिनसे लाख,लकड़ी आदि प्राप्त होते है एवं इन जंगलों में कई तरह के जंगली जानवर पाए जाते हैं।पहली बार  रीवा के जंगलों में ही सफेद बाघ(मोहन) की नस्ल पाई गई थी।जिले की प्रमुख उपज धान है। जिले में बांधवगढ़ का ऐतिहासिक किला है।साथ ही रीवा और गोविंदगढ़ में भी एक एक भव्य किला है।

कालांतर में जब गुजरात से सोलंकी राजपूत मध्य प्रदेश आये तो इनके साथ कुछ परिहार राजपूत एवं कुछ मुस्लिम भी आये परन्तु कुछ समय पश्चत सोलंकी राजा व्याघ्र देव ने सोलंकी से बघेल तथा परिहार से वरग्राही (श्रेष्ठता को ग्रहण करने वाला) वंश की स्थापना की। बघेल तथा वरग्राही परिहार आज बड़ी संख्या में संपूर्ण विंध्य में पाए जाते हैं जो प्रारंभ से एक दूसरे के अति विश्वस्त हैं। प्राचीन इतिहास के अनुसार रीवा राज्य के  परिहारो ने रीवा राज्य के लिए अनेक युद्ध लड़े जिनमें नएकहाई युद्ध, बुंदेलखंडी युद्ध, लाहौर युद्ध, चुनार घाटी मिर्जापुर युद्ध, कोरिया युद्ध, मैहर युद्ध, कृपालपुर युद्ध प्रमुख हैं।
बघेल वंश की स्थापना महाराजा व्याघ्र देव ने की थी जिसके कारण इन्हें व्याघ्र देव वंशज भी कहा जाता है। इन्हें अग्निकुल का वंशज माना जाता है।


भूतपूर्व रीवा रियासत की स्थापना लगभग १४०० ई. में बघेल राजपूतों द्वारा की गई थी। मुग़ल सम्राट अकबर द्वारा बांधवगढ़ नगर को ध्वस्त किए जाने के बाद रीवा महत्त्वपूर्ण बन गया और १५९७ ई, में इसे भूतपूर्व रीवा रियासत की राजधानी के रूप में चुना गया। सन १९१२ ई. में यहाँ के स्थानीय शासक ने ब्रिटिश सत्ता से समझौता कर अपनी सम्प्रभुता अंग्रेज़ों को सौंप दी। यह शहर ब्रिटिश बघेलखण्ड एजेंसी की राजधानी भी रहा।यहाँ विश्व का सबसे पहला सफ़ेद शेर मोहन पाया गया। जो कि सारे विश्व में प्रसिद्ध है।
रीवा जिले के निकट 13 किलोमीटर (निपानिया-तमरा मार्ग) महाराजा मार्तण्ड सिंह बघेल व्हाइट टाइगर सफ़ारी एवं चिड़ियाघर मुकुंदपुर का निर्माण किया गया है जहाँ सफ़ेद शेरों एवम अन्य जंगली जानवरों को संरक्षण दिया जा रहा है।
रीवा जिले में बघेली एक प्रमुख भाषा है। यह के निवासी आपस में बातचीत के लिए बघेली भाषा का ही उपयोग करते है।बघेली भाषा बड़ी ही मीठी, लहजापूर्ण एवम अपनत्व प्रदर्शन करने वाली प्रभावी भाषा है। हाल ही में यहाँ पर कृष्णा राज कपूर ऑडीटोरियम का निर्माण कराया गया है जहा समय समय पर कई तरह के राजनीतिक,सामाजिक कार्यक्रम होते रहते है।
रीवा नगर के किले में दुनिया का एक मात्र सहस्त्र नेत्रों (छिद्रों) वाला शिवलिंग मंदिर है,जिन्हे महामृतुंजय मंदिर कहा जाता है।साथ ही यहां प्राचीन पचमठा मंदिर/आश्रम भी है। रीवा में सुपारी से बनाई गई कलाकृतियां,खिलौने आदि विश्वप्रसिद्ध है।गोविंदगढ़ में आम के बगीचे है जहा विश्व प्रसिद्ध आम की किस्में पाई जाती है। 

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