कौन हैं सिंधी? सिंधियों को हिंदू बोलकर पाकिस्तान से निकाला गया, परंतु वो बेचारे उस समय ठीक से हिन्दी भी नहीं बोल पाते थे

  • कौन हैं सिंधी…हिंदू या मुस्लिम:सिंधियों को हिंदू बोलकर पाकिस्तान से निकाला गया, परंतु वो बेचारे उस समय ठीक से हिन्दी भी नहीं बोल पाते थे
  • आखिर कौन हैं सिंधी? क्या है सिंधियत की खासियत और कहां से जुड़ी है इनकी पहचान?

सिन्ध के मूल निवासियों को सिन्धी (सिन्धी भाषा : سنڌي‎ ) कहते हैं। इन्हें सिन्धू भी कहा जाता है। यह एक हिन्द-आर्य प्रजाति है। 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद सिन्ध के अधिकांश हिन्दू और सिख वहाँ से भारत या अन्य देशों में जाकर बस गये। 1998 की जनगणना के अनुसार सिन्ध में 6.5 % हिन्दू हैं। सिन्धी संस्कृति पर सूफी सिद्धान्तों का गहरा प्रभाव है। सिन्ध के लोकप्रिय सांस्कृतिक पहचान वाले कुछ लोग हैं- राजा दाहिर,झूलेलाल। झूलेलाल जी वरुण देव के अवतार है और सिंधी समाज झूलेलाल जी को मानते है। सिंधी ऐतिहासिक रूप से सिंती से संबंधित हैं।भारत के अधिकांश सिंधी हिंदू धर्म (90%) का पालन करते हैं, हालांकि सिंधी सिख एक प्रमुख अल्पसंख्यक (5-10%) हैं।

सिंधियों के देवता कौन है?

संत झूलेलाल के जन्म का वास्तविक वर्ष उस समय अज्ञात है।सन्त झूलेलाल का प्रादुर्भाव अवतारी पुरुष के रूप में संवत् 1007 चैत्र दूज शुक्रवार को ठठा नगर {नसरपुर} सिन्ध प्रान्त में हुआ था । हालाँकि, शास्त्र बताते हैं कि उनका जन्म 10वीं शताब्दी में सिंध में हुआ था, जो पाकिस्तान के चार क्षेत्रों में से एक है। उस समय सिंध पर सुमराओं का शासन था, जो विभिन्न धर्मों के प्रति सहिष्णु थे।झूलेलाल सिन्धी हिन्दुओं के उपास्य देव हैं जिन्हें ‘इष्ट देव’ कहा जाता है। उनके उपासक उन्हें वरुण देव (जल देवता) का अवतार मानते हैं। वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिन्धी समाज भी पूजता है।

झूलेलाल के लिए हजारों की संख्या में भक्ति गीत लिखे गए, पर्चे छपवाए गए, मूर्तियाँ स्थापित की गईं, त्योहार मनाए गए और हजारों की संख्या में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। दशकों के दौरान, झूलेलाल सफलतापूर्वक सिंधियों के प्रतिनिधि भगवान बन गए हैं।

सिंधियों के गुरु कौन है?

सिंधी गुरु नानक की शिक्षाओं के साथ-साथ कर्म, धर्म, मुक्ति, माया और जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र जैसी कई हिंदू अवधारणाओं का जश्न मनाते हैं।

सिंधी चेती चंद क्यों मनाते हैं?

चेटी चंद सिंधी हिंदुओं द्वारा सिंधी महीने के पहले दिन मनाया जाने वाला त्योहार है, जो सिंधी के संरक्षक संत झूलेलाल के जन्मदिन का प्रतीक है।

त्योहार वसंत और फसल के आगमन का प्रतीक है , लेकिन सिंधी समुदाय में, यह 1007 में उदेरोलाल के जन्म का भी प्रतीक है, जब उन्होंने सिंधु नदी के तट पर हिंदू देवता वरुण देव से उन्हें अत्याचारी द्वारा उत्पीड़न से बचाने के लिए प्रार्थना की थी। उदेरोलाल एक योद्धा और बूढ़े व्यक्ति के रूप में बदल गए, जिन्होंने मिर्खशाह को उपदेश दिया और फटकार लगाई कि मुसलमान और हिंदू समान धार्मिक स्वतंत्रता के पात्र हैं। वह, झूलेलाल के रूप में, सिंधी हिंदुओं के रक्षक बने, जो इस किंवदंती के अनुसार, नए साल को उदेरोलाल के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं

चेती चंद पर सिंधी क्या खाते हैं?

साईं भाजी और भुगा चावल

इसे आमतौर पर भूगा चावल के साथ परोसा जाता है, जो एक सिंधी पुलाव है जिसे भूरे प्याज, घी और मसालों के साथ बनाया जाता है।

क्या सिंधी ब्राह्मण हैं?
हालाँकि, अधिकांश सिंधी ब्राह्मण सारस्वत ब्राह्मण हैं, जो सरस्वती नदी से अपनी उत्पत्ति का पता लगाते हैं। प्राचीन विद्या कहती है कि सिंध के अंतिम हिंदू राजा राजा दाहिर ने जाति को समाप्त कर दिया था और इसीलिए सिंध में कोई ब्राह्मण नहीं थे

सिंधी समाज में शादी कैसे होती है?

सिंधी शादी में होते हैं सिर्फ 4 फेरे और दुल्हन का पूरा नाम बदल जाता है।जहां बाकी शादियों में 7 फेरों का रिवाज होता है वहीं सिंधी शादियों में सिर्फ 4 फेरे होते हैं और दुल्हन का नाम पूरी तरह से बदल दिया जाता है। दूल्हे के नाम और दुल्हन की कुंडली के आधार पर नया नाम रखा जाता है।

सिंधी समुदाय में, यह विवाह की मुख्य परंपराओं में से एक है कि दुल्हन को अपना पहला नाम भी सरनेम के साथ बदलना पड़ता है। यह दुल्हन के नए जन्म का प्रतीक है। यह पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और यह वह रस्म है जिसका पालन हर सिंधी घर में करना चाहिए।

क्या सिंधी मंगलसूत्र पहनते हैं?

सिंधी- सिंधी विवाह आज भी मंगलसूत्र की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आम तौर पर सोने से बना, सिंधी महिलाएं इसे काले मनके के धागे से पहनती हैं , मंगल सूत्र आम तौर पर दूल्हे की तरफ से होता है।

सिंधी हिंदुओं के उपनाम होते हैं, जो ‘-ani’ (संस्कृत के ‘आर्ष’ शब्द से लिया गया ‘अनीशी’ का एक रूप है, जिसका अर्थ है ‘से उतारा गया’)। सिंधी हिंदू उपनाम का पहला भाग आमतौर पर पूर्वज के नाम या स्थान से लिया जाता है। उत्तरी सिंध में, ‘जा’ (‘का अर्थ’) में समाप्त होने वाले उपनाम भी आम हैं। एक व्यक्ति के उपनाम में उसके या उसके पैतृक गाँव का नाम होगा, उसके बाद ‘जा’ होगा।

इस प्रकार “अनी” प्रत्यय सिंधी उपनामों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल इंगित करता है कि उपनाम रखने वाला व्यक्ति सिंधी है, बल्कि उनकी जाति के बारे में भी जानकारी प्रदान करता है।

1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान पाकिस्तान से आए हिंदू सिंधियों ने जो संघर्ष किया वह सोच से परे है। इतना साहस और जज्बा उन सिंधियो ने दिखाया कि आज उन्ही के बल पर पीढ़ी दर पीढ़ी सफलता के साथ आगे बढ़ रही है। उन्होने उस समय संघर्ष करके अलग मुकाम बनाया । बंटवारे के दर्द को याद करते हुए सिंधी कहते हैं कि उन्हें हिंदू बोलकर पाकिस्तान से भगाया गया था। वे जब भारत आए, तो हिन्दी भी नहीं बोल पाते थे। लाखों की जागीर पाकिस्तान में छोड़कर जब सिंधी यहां पहुंचे ,तो वे फटेहाल थे। उन्हें रिफ्यूजी कैंपों में रखा गया था, चुकी भारत उसी समय आजाद हुआ था, ऐसे में भारत के पास खुद स्रोत सीमित थे। पर भारत की तत्कालीन सरकार और लोगो ने हम सिंधीयो को गले से लगाया, हमारा दर्द समझा, इसीलिए पाकिस्तान से जबरन भगाए गए हम सिंधी भारत और भारतीय हिंदुओ को कभी भी नही भूल सकते। हम सब भारतीय है और एक है, सदा रहेगी।

अपनी जीवटता के लिए मशहूर सिंधी लोगों ने भारत आकर परिवार चलाने के लिए चने बेचे, सब्जी बेची। वे कहते हैं कि हमें पाकिस्तान छोड़कर भारत को अपनाने के फैसले पर आज भी फख्र/गर्व है। भले ही तब हम फटेहाल थे, लेकिन आज राजा बाबू हैं। ये भारतीय लोगो की महानता ही है कि उस समय जो हम फटेहाल स्तिथि में थे, ऐसी सूरत में भी भारतीय लोगो ने हमें व्यापार करने दिए और आज अगर हम सिंधी व्यापार में है या यूं कहे कि व्यापार का दूसरा नाम ही सिंधी है तो गलत नही होग और यह अहसान उस समय के भारतीयों का हम पर है, जिसे हम सिंधीयो को कभी भी नही भूलना चाहिए।

 उस समय जो बेचारे सिंधी पाकिस्तान से नहीं आए, आज उनकी हालत पर तरस आता है, आज वो पाकिस्तान में भयंकर गरीबी में जी रहे है, उनकी बहन बेटियों की इज्जत आबरू सरे राह लूटी जा रही है।उन्हे जबरन इस्लाम कबुल करवाया जाता है। पाकिस्तान में रहने वाले हमारे कई रिश्तेदार फोन पर वहां के हालात बताते हैं, तो रूह कांप जाती है। जबकि भारत में पता ही नही चलता कि हम कभी यह पाकिस्तान से आए थे।हमारी बहन बेटियां पूरे समाज में घुल मिल गई है और हम सभी भारतीय है।

क्या सभी सिंधी हिंदू होते हैं?

अगर बात भारत की करें तो आप अब तक सिंधियों को सिर्फ हिंदू मानते हैं, तो ये भारत के संदर्भ में सही है, यहा सभी हिंदू ही है लेकिन पाकिस्तान में बसे ज्यादातर सिंधी मुस्लिम हैं। वे इस्लाम को मानते हैं। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि पाकिस्तान में बसे सभी सिंधी मुस्लिम हैं, वहां अब भी हिंदू सिंधी हैं, लेकिन हिंदू होने की वजह से उन्हें वहां मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

बंटवारे के समय 13 लाख सिंधी भारत आए थे। ये वो लोग थे, जो हिंदू धर्म को मानते हैं। बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ था, इसलिए इन्हें पाकिस्तान छोड़ने के लिए कहा गया था।

वृद्ध सिंधी कहते हैं कि पाकिस्तान में हिंदू सिंधियों की हालत ठीक नहीं है। उनकी बहन-बेटियां तक महफूज नहीं हैं। वे बताते हैं कि पाकिस्तान में इतनी बदमाशी है कि दिन-दहाड़े बहन-बेटियों को उठा ले जाते हैं। आजादी के 75 साल बाद भी पाकिस्तान में वे शरणार्थियों की तरह ही जीवन बिता रहे हैं।जबकि भारत हमारा अपना राष्ट्र है, यहां सभी हिंदू हमें मान देते है और हमें प्यार करते है, लगता ही नहीं कि 1947 में हमें मारपीट करके जलील करके पाक से भगाया था।

सबसे पहले सिंधी भाषा की बात…

  • सिंधी भाषा काफी प्यारी और व्यवहारिक भाषा है।काफी कुछ हिंदी से मिलती है।हिंदी भाषी लोग सिंघी भाषा जल्दी से समझ जाते है।
  • भाषा शास्त्रीय का दावा है कि सिंधी भाषा अरबी से भी ज्यादा प्राचीन है। सिंधी भाषा में 4 ऐसी ध्वनियां हैं, जो अरबी नही रहती।
  • सिंधु घाटी की खुदाई से 500 सिक्के मिले हैं। इसमें सिंधी भाषा है। सिंधी भाषा में अरबी, संस्कृत, पंजाबी, और हिन्दी और उर्दू सभी शब्द मिलते हैं।

सिंधी सबसे मिलजुल कर और धर्मनिरपेक्षता से रहे

सिंध की परंपरा धर्म निरपेक्षता की है। इसका भौगोलिक कारण ये है कि एशिया के मानचित्र में सिंध का एक छोर गुजरात, राजस्थान, पंजाब से मिलता है और दूसरी ओर अफगानिस्तान और बलूचिस्तान से मिलता है। एक साइड में हिंदू, पंजाब में सिख, अफगानिस्तान में मुस्लिम रह रहे हैं। इन सभी धर्मों का प्रभाव सिंधी पर पड़ा।

बौद्ध धर्म का प्रभाव भी रहा

जैसे अंग्रेजी ने फ्रेंच, लेटिन सभी शब्द लिए, वैसे ही सिंधी भाषा ने उन सभी धर्मों के शब्द लिए, जिनके साथ उनका मेलजोल था। जब आपकी भाषा में अलग-अलग शब्द हैं तो आपकी जीवन पद्धति में भी उनका असर होता है।

सिंघी भाषा का एक नमूना__ सिंधी नुख़री:सिंधी गोत्र

सिंधी परिवार जी पुखिता सुज्ञानप जी निशानी अंक लेखी वेंदी आहे शादी जी पक वक़त नुख़ ज़रूर पु वेंदी आहेछो जो इहो जोखिम आहे त सागी नुख़ वारन में शादी जी मनाही आहे।

इसका उदाहरण ये है कि सिंध से जब सिंधी आए, तो वे जहां बसे, वहां के लोगों से मिल गए, सिंधीयो ने वहा के लोगो को और वहा के लोगो ने सिंधीयो को अपना लिया, जिसका प्रभाव सिंधीयो के व्यक्तित्व पर पड़ा।

जैसे भोपाल में भोपालियों से मिल गए। जो नागपुर गए वो मराठी सीख गए। आजादी के बाद 70 साल में सिंधियों ने अपने आपको स्थापित कर लिया है। मेलजोल की संस्कृति से ऐसा संभव हो पाया। हम सब भारतीय अब एक हो गए है। सिंधी हमारे अपने हैं और हम उनके हैं।

उल्लेखनीय है कि जब बंटवारे के बाद हिंदू सिंधियों को पाकिस्तान से जाने के लिए कहा गया तो सिंधियों ने इसका विरोध नहीं किया। वे जिस हाल में थे, उसी हाल में भारत आने के लिए तैयार हो गए। सिंध में रक्तपात नहीं हुआ, दंगा नहीं हुआ। सिंधी लोग इंसानियत की मिसाल हैं।

एक सिंधी की पाक छोड़ने की दर्दभरी कहानी:

भारत-पाकिस्तान का जब विभाजन हुआ। तब वे छोटे बच्चे थे।। विभाजन को कुछ समय ही बीता था कि पाकिस्तान में धर्म परिवर्तन का दबाव डाला जाने लगा। धर्म परिवर्तन करना मंजूर नहीं था। बढ़ती यातनाओं के बीच पाक छोड़ना ही विकल्प था। ऐसे में पाकिस्तान छोड़कर राजस्थान के मारवाड़ स्टेशन पहुंचे। कोई ठिकाना नहीं होने के कारण स्टेशन में महीनों गुजारने पड़े। इसके बाद रिश्तेदारों के साथ जोधपुर आ गए। बहन और मां भी साथ थीं। पेट पालने के लिए शुरुआत में कुल्फी और मूंगफली बेची। इस बीच 1950 में भोपाल के संत हिरदाराम नगर पहुंचे। ये वो दौर था, जब इस इलाके में घरों में न बिजली थी न ही नलों से पानी आता था।

चारों तरफ केवल जंगल था। इस जंगल के बीच कई छोटी बैरकें बनी थीं। हमें इन्हीं बैरकों में रखा गया। हमने इस कस्बे को बसाने का काम किया। नलों में पानी और घरों में बिजली पहुंच गई।

हेमू कलाणी को 19 साल की उम्र में अंग्रेजों ने फांसी दे दी, लेकिन उनका बलिदान भी अधिकारों की तरह ही केवल पर्दे के पीछे तक ही सीमित रह गया।  

8 साल तक के बच्चों को सिंधी भाषा सिखाने का अभियान

ममता बजाज कहती हैं कि बच्चे भाषा नहीं सीखेंगे, तो सिंधियत कैसे बरकरार रहेगी? वह ऑनलाइन क्लास लेती हैं। हर साल इंटरनेशल लेवल पर प्रतियोगिता कराती हैं। इसमें चुने हुए 40 बच्चों को टैबलेट पुरस्कार स्वरूप दिए जाते हैं।

वे कहती हैं कि अब भी पाकिस्तान से कई सिंधी भारत लौटना चाहते हैं, लेकिन दिक्कत ये है कि अब तुरंत नागरिकता तो मिलती नहीं है। अब तो वीजा के आवेदन पर भी आपको बताना पड़ता है कि इंडिया में कौन रिश्तेदार है, तभी वीजा मिलता है। पहले स्थापित करना पड़ता है कि आप किस काम से जाना चाह रहे हैं। अगर वीजा लेने का सही कारण नहीं हो, तो ऐप्लिकेशन खारिज कर दी जाती है।

शहिद हेमू कालाणी कौन थे :

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद हेमू कालाणी का जन्म सिंध के सख्खर (अब पाकिस्तान) में 23 मार्च 1923 को हुआ था। उनके पिताजी का नाम पेसूमल कालाणी और मां जेठी बाई थी।

बचपन से ही मां भारत को आजाद होते हुए देखना चाहते थे। हेमू कालाणी जब 7 साल के थे, तब तिरंगा लेकर अंग्रेजों की बस्ती में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते थे। 1942 में 19 साल की उम्र में गांधीजी से प्रभावित होकर वे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। वे इतने सक्रिय थे कि अंग्रेज उनसे खार खाने लगे थे।

1942 में हेमू को यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेज सेना हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी। इन हथियारों का उपयोग देश के क्रांतिकारियों के दमन में होना था। हेमू कालाणी ने अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई। वे यह सब कार्य गुप्त रूप से कर रहे थे, लेकिन वहां तैनात पुलिसकर्मियों ने उन्हें देख लिया। उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया, जबकि बाकी साथी फरार हो गए। हेमू कालाणी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई।उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने याचिका दायर की। वायसराय से उनको फांसी की सजा न देने की अपील की। वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि हेमू कालाणी साथियों का नाम और पता बताए। मां भारतीय के सच्चे पुत्र ने अंग्रेजों की यह शर्त नहीं मानी और फांसी पर चढ़ना स्वीकार किया। 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी की सजा दी गई। फांसी से पहले अंतिम इच्छा पूछी तो उन्होंने कहा कि मैं पुन: भारत में जन्म लेना चाहता हूं।

>>> by Er. Umesh Shukla for ‘Virat24’ news

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