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- भारत में चीते को 1952 में लुप्त घोषित किया गया था, अब एक बार फिर उन्हें दोबारा बसाने की कोशिश हो रही है।
- भारत में फिलहाल 17 चीते हैं जो मध्य प्रदेश के कुनो पार्क में हैं।
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कूनो नेशनल पार्क में आखिर चीतों की मौत के क्या हैं संभावित कारण ?
कूनो नेशनल पार्क में बड़े ही उत्साह के साथ सिलसिलेवार ढंग से चीते लाये गए थे। मीडिया और मध्य प्रदेश के लोगो के साथ साथ देश भर के वन्य जीव प्रेमियों ने बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ चीतों का स्वागत किया था। एक तरह से यह एक नेशनल इवेंट जो बन गया था, और उत्साह हो भी क्यों न आखिर भारत में चीतों को 1952 में लुप्त घोषित किया गया था, वही अब एक बार फिर उन्हें दोबारा बसाने की कोशिश हो रही थी। चीते आये, बड़े ही सिलसिलेवार ढंग से उन्हें पार्क में छोड़ा गया। शुरू में सब कुछ ठीक रहा पर फिर अचानक से चीतों की मौत होने लगी, कारण कभी हार्ट अटैक तो कभी कुछ और, यहाँ तक की नन्हे शावक भी काल के गाल में शमा गए, अब तक कूनो पार्क में छह चीतों की मौत हो चुकी है। अब इतनी मौते इतने अल्प समय में क्या प्राकृतिक होगी, शायद नहीं ! बहरहाल सरकार और पार्क के अधिकारी इस पर जांच करें, जरूरत तो इसी बात की है।
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क्या हैं चीतों की मौत के कारण ?
आइये सबसे पहले जानते है कि कूनो नेशनल पार्क में कब क्या हुआ :
- 7 सितंबर 2022 को कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से आठ चीते लाये गये।
- दूसरी खेप में 12 चीतों को दक्षिण अफ्रीका से 18 फरवरी को लाया गया था।
- नामीबिया की मादा चीता ‘ज्वाला’ ने कूनो पार्क में 24 मार्च को चार शावकों को जन्म दिया था।
- नामीबिया से आयी चीता ‘साशा’ की मौत 27 मार्च को किडनी खराब होने की वजह से हुई।
- 23 अप्रैल को चीता ‘उदय’ की मौत हुई, उसे दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था।
- 9 मई को मादा चीता ‘दक्षा’ घायल अवस्था में मिली थी। इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी थी।
- 23 मई को एक शावक की मौत हो गई।
- 25 मई को दो और शावकों ने दम तोड़ दिया। जिसका कारण बढ़ता तापमान (गर्मी) बताया गया था।
- मार्च महीने से अब तक कूनो पार्क में छह चीतों की मौत हो चुकी हैI
- हार्ट अटैक बना ‘चीता उदय’ की मौत का कारण, शाॅर्ट पीएम रिपोर्ट में खुलासा
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विभिन्न वन्य जीव के विशेषज्ञों जैसे वन विभाग के सेवानवृत्त अधिकारी राम राजा शुक्ल, दिनकर पांडेय, उमेश शर्मा से हमने चर्चा की और जानने का प्रयास किया कि आखिर इतनी जल्दी जल्दी चीते क्यों मर रहे है ? क्या हो सकते है संभावित कारण ? जो बातें सामने आयी उन्ही को हम पाठको से साझा कर रहे है . . .
चीतों की संख्या घटकर रह गई मात्र 17
नामीबिया से लायी गई मादा चीता ‘ज्वाला’ ने कूनो पार्क में 24 मार्च को चार शावकों को जन्म दिया था। उसमें से एक शावक ही बचा है और उसकी हालत भी गंभीर बताई जा रही है। सरकार की ओर से इस प्रोजेक्ट को काफी जोरशोर से शुरू किया गया था और इन्हें लाने के लिये एक लंबी प्रक्रिया अपनायी गई थी। इसके बावजूद लगातार हो रही चीतों की मौत चिंता का विषय बनता जा रहा है।
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चीते लम्बी दूरी तय करते है :
चीता आमतौर पर घुमक्कड़ स्वभाव के होते हैं और बाड़े से छोड़े जाने पर लंबी यात्राएं करना पसंद करते है। नामीबिया से लाये गये दो चीते ‘आशा’ और ‘पवन’ बीते महीने ही कई बार बाड़े से दूर भटकते नजर आये। वहीं ‘आशा’ कूनो पार्क के विजयपुर रेंज में पायी गयी थी। इससे पहले चीता पवन (ओबान) भी कूनो से बाहर भागकर उत्तर प्रदेश की सीमा तक पहुंच गया था। कई बार जंगल से दूर ग्रामीण इलाकों में चीता के घुसने की सूचनाएं भी आती रहती हैं। इस वजह से वन विभाग को कई बार उन्हें पकड़कर जंगल लाना पड़ाI है।
भारत और नामीबिया की जलवायु कितनी अलग
नामीबिया में औसत वार्षिक तापमान 20.6 डिग्री सेल्सियस रहता है। जबकि नवंबर से मार्च के महीने में औसत तापमान 24 डिग्री सेल्सियस और जून तथा जुलाई में 16 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। जबकि औसत वार्षिक वर्षा 269.2 मिमी के आसपास होती है। दक्षिण अफ्रीका के लिए औसत वार्षिक तापमान 17.5 डिग्री सेल्सियस है। दिसंबर से जनवरी में औसत मासिक तापमान 22 डिग्री सेल्सियस और जून से जुलाई में 11 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। जबकि वार्षिक वर्षा 469.9 मिमी होती है।
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भारत और अफ्रीका के जंगल में क्या है अंतर
आंकड़ों पर गौर करें तो कूनो नेशनल पार्क की वेबसाइट के मुताबिक कूनो नेशनल पार्क 748 वर्ग किलोमीटर का इलाका है। जिसमें इंसानों का आना-जाना बेहद कम है। यहां इंसान नहीं रहते, इस नेशनल पार्क का बफर एरिया 1235 वर्ग किलोमीटर है। जबकि नामीबिया के नामीब-नौक्लुफ्त राष्ट्रीय उद्यान तकरीबन 49,768 वर्ग किलोमीटर का कुल क्षेत्रफल है। ब्वाबवता राष्ट्रीय उद्यान तकरीबन 6272 वर्ग किलोमीटर है।25 मई 2023 को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में मादा चीता ‘ज्वाला’ के दो और शावकों की मौत हो गयी। उससे पहले 23 मई को भी एक शावक की मौत हुई थी। इस तरह मार्च महीने से अब तक कूनो पार्क में छह चीतों की मौत हो चुकी है।
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अनुमानतः दुनिया में चितो की संख्या:
पीआईबी की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में चीतों की संख्या 1975 में अनुमानित 15,000 वयस्कों से घटकर वर्तमान वैश्विक जनसंख्या 7,000 के करीब हो गई है। वहीं बीबीसी के मुताबिक इन 7000 में से आधे से ज्यादा चीते सिर्फ दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और बोत्सवाना में पाये जाते हैं।
क्या पार्क छोटा है
भारत के कूनो नेशनल पार्क में जहां चीतों को रखा गया है, वहां के आसपास के इलाकों में इंसानी बस्तियां हैं। जो चीतों के लिहाज से सही नहीं है। कई रिपोर्ट्स के मुताबिक चीतों को प्रति 100 वर्ग किमी के दायरे में भी इंसानों का सामना करना पड़ सकता है। जबकि अफ्रीकी देशों में ऐसा नहीं है। वहां चीतों के क्षेत्रों के आसपास इंसानी गतिविधियां नहीं होती। उनका निवास स्थान नामीबिया में नानकुसे वन्यजीव अभयारण्य, नामीब-नौक्लुफ्त राष्ट्रीय उद्यान और ब्वाबवता राष्ट्रीय उद्यान हैं। साथ ही एटोशा नेशनल पार्क और पामवाग में भी चीते पाये जाते हैं। यहां बड़ी बात यह है कि इन हर एक पार्क का पूरा क्षेत्रफल कूनो नेशनल पार्क से कई गुना बड़ा है। यह तकरीबन 10-20 गुना बड़े है। अब आप सोच सकते हैं कि वहां चीतों को दौड़ने और भागने के लिए एक पर्याप्त मात्रा में जगह मिलती है लेकिन कूनो पार्क की जगह उनके लिए कम है। नामीबिया में चीता संरक्षित क्षेत्रों के अलावा बाहर भी पाये जाते हैं।
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उपरोक्त आंकड़ों पर गौर करें तो पायेंगे कि भारत की तुलना में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका का तापमान कम और मौसम ठंडा है। साथ ही जब भारत में गर्मी का मौसम होता है तो उन देशों में ठंड पड़ती है।
चीता के बारे में कुख खास बातें :
>चीते बाघ, शेर या तेंदुए की तरह दहाड़ते नहीं क्योंकि उनके गले में वो हड्डी नहीं होती जिससे वो भारी आवाज में दहाड़ सके। वे बिल्लियों की तरह धीमी आवाज निकालते हैं और कई बार तो चिड़ियों की तरह छोटे स्वर में बोलते हैं।
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>चीता दुनिया का सबसे तेज दौड़ने वाला पशु है। लेकिन वह बहुत लंबी दूरी तक तेज गति से नहीं दौड़ता है, अमूमन ये दूरी 300 मीटर से अधिक नहीं होती है।
>चीते दौड़ने में सबसे भले तेज हों लेकिन कैट प्रजाति के बाकी जीवों की तरह काफी समय सोने और सुस्ताते हुए गुजारते हैं।
>गति पकड़ने के मामले में चीते स्पोर्ट्स कार से तेज होते हैं, शून्य से 90 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड पकड़ने में उन्हें मात्र तीन सेकेंड लगते हैं।
>चीता का नाम हिंदी के शब्द चित्ती से बना है क्योंकि इसके शरीर के चित्तीदार निशान इसकी पहचान होते हैं।
>चीता कैट प्रजाति के अन्य जीवों से इस मामले में अलग है कि वह रात में शिकार नहीं करता है।
>चीते की आंखों के नीचे जो काली धारियां आंसुओं की तरह दिखती है वह दरअसल सूरज की तेज रोशनी को रिफलेक्ट करती है जिससे उन्हें तेज धूप में भी साफ दिखाई दे सके।
by Er. Umesh Shukla for “Virat24” news
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