मप्र की बेटियों ने थाईलैंड में 4 पदक जीतकर रचा इतिहास, पढ़िए खबर में किस खेल में किया कीर्तिमान स्थापित

  • MP की बेटियों ने थाईलैंड में लहराया जीत का परचम
  • एशियन केनो सलालम में जीते 4 पदक

थाईलैंड के पटाया में आयोजित हो रही एशियन कैनो सलालम प्रतियोगिता में जिले की बेटियों ने एक बार फिर सफलता का परचम लहराया है

प्रतियोगिता में भारतीय खिलाडियों का जोरदार प्रदर्शन जारी है। महेश्वर की बेटियों ने 4 पदक जीते है। खेल अधिकारी पवि दुबे ने जानकारी देते हुए बताया कि युवा कल्याण वाटर स्पोट्र्स केनो सलालम प्रतियोगिता में 11 खिलाडिय़ों ने देश का प्रतिनिधित्व किया। इसमें शिखा चौहान 2 कांस्य, भूमि बघेल 1 कांस्य और अहाना यादव एक कांस्य पदक विजेता रही। अपनी जीत पर बालिकाओं ने बताया कि उनका प्रयास है कि आगामी प्रतियोगिता में वे देश के लिए गोल्ड जीते इसके लिए कठिन परिश्रम करेंगी। बालिकाओं की सफलता पर कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा ने खुशी जताते हुए उत्कृष्ट खेल के लिए बधाई दी।

बेटियों ने रोशन किया नाम

18 मई से 21 मई तक थाईलैंड में आयोजित हुई एशियन केनो सलालम चैंपियनशिप में जिले की वाटर स्पोर्ट्स केनो सलालम एकेडमी महेश्वर के 11 खिलाड़ियों ने देश का प्रतिनिधित्व किया है, जिसमें महेश्वर की शिखा चौहान ने 2 कास्य पदक, भूमि बघेल ने 1 कास्य व अहाना यादव ने 1 कास्य पदक जीतकर जिले का नाम पूरे विश्व में रौशन किया। इन दिनों दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचकर एमपी की बेटियां अपना नाम कर रही हैं, जहां इस बेटियों ने अपने साथ-साथ अपने शहर और प्रदेश का सिर भी गर्व से ऊंचा कर रही हैं। मध्यप्रदेश के महेश्वर की इन बेटियों ने एशियन कैनो स्लालम प्रतियोगिता में अपना दम दिखाते हुए शानदार प्रदर्शन किया है।

महेश्वर में बना है कोर्स
जानकारी के अनुसार देश का पहला केनो स्लैलम कोर्स मध्यप्रदेश के महेश्वर स्थित सहस्रधारा में है। कोर्स के बनने से अब प्रदेश से इस खेल में बड़े खिलाड़ी निकलने शुरू हो गए हैं, जो देश और दुनियां के अलग अलग हिस्सों में जाकर शहर और प्रदेश का नाम रोशन कर रहे हैं। महेश्वर में नर्मदा के सहस्रधारा क्षेत्र में कैनो स्लैलम प्रतियोगिता होती है। नर्मदा नदी के फ्लैट वाटर और सहस्रधारा की तेज धार में मध्यप्रदेश और अन्य प्रदेशों से आए खिलाड़ी प्रतिदिन सुबह और शाम को बोट चलाकर अभ्यास करते हैं। इस कोर्स को तैयार करने में खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने 30 लाख रुपए खर्च किए हैं। जर्मनी व अन्य देशों में स्लैलम कोर्स कृत्रिम रूप से बनाए जाते हैं, जिस पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। हमारी ताकत यह है कि सहस्रधारा में पहली ही नजर में कोर्स को चिह्नित कर लिया गया था।

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