SC/ST एक्ट में अभद्र भाषा कह देना मुकदमे के लिए काफी नहीं, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

SC/ST एक्ट में अभद्र भाषा कह देना मुकदमे के लिए काफी नहीं, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अभद्र या अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल हुआ, यह एससी/एसटी अधिनियम के तहत किसी व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की। जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(x) के दंडात्मक प्रावधान को लागू करने के लिए यह साबित करना होगा कि इस तरह की टिप्पणी जानबूझकर सार्वजनिक स्थान पर की गई है या नहीं? चार्जशीट या एफआईआर की कॉपी में भी इस तरह की बातों का उल्लेख किया जाना आवश्यक है।

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने स्पष्ट किया कि एससी और एसटी व्यक्ति के खिलाफ अभद्र या अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करना किसी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है। कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाने से पहले सार्वजनिक दृश्य के भीतर किसी अभियुक्त द्वारा की गई बातों को कम से कम चार्जशीट में उल्लिखित किया जाए, इससे अदालत यह पता लगाने में सक्षम होंगी कि अपराध का संज्ञान लेने से पहले आरोप पत्र एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामला बनता है या नहीं?

दरअसल, देश की शीर्ष अदालत एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें एक व्यक्ति को कथित अपराधों के लिए चार्जशीट किया गया था, जिसमें अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम की धारा 3(1)(x) शामिल है, जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति सदस्य को जानबूझकर सार्वजनिक दृश्य के भीतर अपमान करने के इरादे से डराने-धमकाने से संबंधित है। अदालत ने मामले की सुनवाई में व्यक्ति के खिलाफ दर्ज मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मामले में न प्राथमिकी और न ही आरोप पत्र में मौखिक विवाद के दौरान अभियुक्तों के बयानों या शिकायतकर्ता की जाति का कोई संदर्भ नहीं था। अदालत ने यह भी नोट किया कि कथित अपमानजनक बयान शिकायतकर्ता और उसकी पत्नी और उसके बेटे की उपस्थिति में दिए गए थे और कोई अन्य व्यक्ति मौजूद नहीं था, इसलिए इसे सार्वजनिक रूप से नहीं कहा जा सकता क्योंकि अन्य कोई भी सदस्य वहां मौजूद नहीं था।

जस्टिस एस आर भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति को अपमानित करने के लिए मंशा स्पष्ट प्रतीत होना जरूरी है। हर अपमान या धमकी अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3 (1) (x) के तहत अपराध नहीं होगी। पीठ ने कहा, “अगर आम तौर पर किसी व्यक्ति को अनुसूचित जाति या जनजाति के रूप में निर्देशित किया जाता है, तो यह धारा 3 (1) (x) के तहत मुकदमा दर्ज करने लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है, जब तक कि इस तरह के शब्दों में जातिवादी टिप्पणी न हो।”

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