बाहुबली 2: अतीक अहमद गया, आनंद मोहन आया! सच में समाज से गंदगी साफ़ की जा रही या महज राजनितिक महत्वाकांछा की रोटी सेकी जा रही है! पढ़िए इस खबर में …
गौरतलब है कि अभी महज कुछ ही दिन पहले उप्र में पूर्व सांसद और तथाकथित माफिया सरगना अतीक अहमद, उसका भाई अशरफ, बेटा असद मारे गए है, जबकि बीवी शाहिस्ता परवीन और करीबी गुड्डू मुस्लिम फरार हैं, हलाकि उनके धमकी भरे लेटर जरूर मीडिया में सामने आ रहे है, जिनकी सत्यता जांच के घेरे में है। जबकि दूसरी तरफ बिहार में कुछ और ही खेला हो रहा है, लगभग उसी प्रोफाइल का व्यक्ति (पूर्व सांसद और बाहुबली, राजनेताओ का करीबी) आनंद मोहन आज तड़के जेल से रिहा कर दिया गया है। यह रिहाई कोई आम रिहाई नहीं है बल्कि इसके लिए बाकायदा नियमो में संसोधन किया गया है। ऐसे में सवाल यही उठता है कि ये एनकाउंटर, मुठभेड़, पकड़ना, रिहाई, इतना ताम झाम, ये सब कसरत समाज में व्याप्त गन्दगी, भ्रस्टाचार आदि को साफ़ करने के लिए किया जाता है या फिर राजनेताओ द्वारा अपने अपने राजनितिक महत्वाकांछा और वोट बैंक की राजनितिक रोटियां सेकने के लिए किया जाता है। क्युकी बाहुबली यानी माफिया तो माफिया है, उसको तो सलाखों के भीतर रहना चाहिए, ना कि उसके रिहाई के लिए नियमो को ताक पर रख कर उनका संसोधन करना चाहिए।
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बहरहाल उप्र में अतीक के मारे जाने के बाद उप्र में जो सियासी ड्रामा हो रहा है वह हम सबके सामने है, पुलिस की वाहवाही नेता कर रहे है, सर्कार की खुसामद मीडिया कर रही है, और इन सबके बीच तमाशबीन जनता सब देख कर भर्मित अवस्था में है कि सच में सही यही है जो कहा जा रहा है या कुछ और ही है। हम ऐसा इसलिए कह रहे है कि उप्र एक ऐसा राज्य है जहा माफियाओ का पूरा भंडार भरा पड़ा है, हर जिले, हर शहर में माफिया विद्यमान है, ऐसे में एकाएक माफिया को हटा के ऐसा दिखाना की राज्य माफिया मुक्त हो गया है, यह यथार्थ सत्य तो नहीं है , क्युकी अभी ऐसे माफियाओ की लम्बी फेहरिश्त उप्र में पड़ी है, बल्कि एक तो अभी जारी भी हुई है। आरोपों की बात करें तो आरोप तो ये भी लग रहा कि एक खास वर्ग को चिन्हित किया जा रहा है।
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बिहार की बात करे तो चुनावी वर्ष है, रिहाई के ऐसे फैसलों को राजनितिक विश्लेषक सियासी नजरो से देख रहे है। सियासी मायने निकाले जा रहे है। आइये जानते है विस्तार से आनंद मोहन और इस घटनाक्रम के विषय में …
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बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन जेल से रिहा, जानिए किस केस में काट रहे थे सजा…
बिहार सरकार ने हाल ही में आनंद सिंह सहित 27 दोषियों की जल्द रिहाई की अनुमति देते हुए जेल नियमों में संशोधन किया था. चलिए आपको बताते हैं वह किस मामले में जेल की सजा काट रहे थे.
Anand Mohan Released: पूर्व सांसद और बाहुबली आनंद मोहन (Anand Mohan) को गुरुवार (27 अप्रैल) को तड़के 4.30 बजे जेल से रिहा कर दिया गया. अब बिहार सरकार को जेल नियमावली में बदलाव करने और गैंगस्टर से राजनेता बने आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता साफ करने के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. आनंद मोहन सिंह एक युवा आईएएस अधिकारी और तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे.
आनंद मोहन सिंह की तरफ से कथित रूप से उकसाई गई भीड़ ने IAS कृष्णैया की हत्या कर दी थी. उन्हें उनकी सरकारी कार से बाहर खींच लिया गया और पीटने के बाद गोली मारकर हत्या कर दी गई. 1985 बैच के आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया तेलंगाना के महबूबनगर के रहने वाले थे. इस मामले में आनंद को निचली अदालत ने 2007 में मौत की सजा सुनाई थी. एक साल बाद 2008 में पटना हाईकोर्ट ने सजा को उम्रकैद में बदल दिया था.
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15 दिन की पैरोल के बाद कल ही लौटा था जेल
सिंह इससे पहले अपने विधायक पुत्र चेतन आनंद की सगाई समारोह में शामिल होने के लिए 15 दिन की पैरोल पर आए थे. वह पैरोल की अवधि पूरी होने के बाद 26 अप्रैल को सहरसा जेल लौटे थे और अगले ही दिन यानी 27 अप्रैल को उनकी रिहाई हो गई.
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बाहुबली आनंद मोहन रिहा, क्या इनके कारण छूटे बाकी 26 …
गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी (DM) जी. कृष्णैया की मॉब लिंचिंग कराने के दोषी बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह अंतिम तौर पर आज जेल-मुक्त हो गए। राजनीति के लिहाज से यह एक राजपूत नेता की रिहाई है। दिवंगत IAS Krishnaiah की पत्नी उमा देवी इस रिहाई पर दुख जता चुकी हैं। रिहाई के एक दिन पहले पटना हाईकोर्ट में इसके खिलाफ जनहित याचिका (PIL) दायर हुई है। इन सभी के साथ बिहार में राजनीति चरम पर है।
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PIL से क्या होगा…
दिवंगत IAS Krishnaiah की पत्नी उमा देवी इस रिहाई पर दु:ख जता चुकी हैं। रिहाई के एक दिन पहले पटना हाईकोर्ट में इसके खिलाफ जनहित याचिका (PIL) दायर हुई है। इन सभी के साथ बिहार में इस बात पर भी राजनीति चरम पर है कि आनंद मोहन के बहाने सरकार ने ‘सत्तासीन जाति’ के और भी ’26 दुर्दांत’ को छोड़ने का नोटिफिकेशन जारी किया है। क्या हकीकत है, क्या नहीं? क्या हो रहा और क्या होगा? यह सब तो समय आने पर ही पता चल सकेगा।
आनंद मोहन का फायदा किसे, कैसे और कितना
दरअसल, एक जमाने में बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थापना कर क्षत्रिय राजनीति का पूरा सिस्टम खड़ा कर रहे आनंद मोहन को आज भी बिहार की राजनीति में राजपूतों के बीच प्रभावी माना जाता है। वह कितने प्रभावी बचे हैं, यह 2024-25 के लोकसभा-विधानसभा चुनावों में पता चलेगा। वह किसके साथ रहते हैं, यह भी काफी हद तक निर्भर करेगा। इसके अलावा यह भी बड़ी बात है कि 1994 से 2005 के बीच का यह बिहार नहीं बचा है। तब और अब के युवाओं की मनोदशा में काफी अंतर है। राजनीतिक रूप से उर्वर बिहार में अब आनंद मोहन राजपूतों का वोट कितना घुमा सकेंगे, यह अभी तुक्का ही है।
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सत्तासीन जाति के बाकी आरोपियों को छोड़ा जा रहा !
आनंद मोहन के साथ कुल 27 को छोड़ने का नोटिफिकेशन जारी हुआ था। इनमें से एक की मौत पहले ही हो चुकी है। शेष 26 को छोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई और आनंद मोहन के पहले ही बहुत सारे छूट भी गए। कुछ तकनीकी कारणों से अभी रिहा नहीं हो सके हैं या उनकी रिहाई में वक्त भी लग सकता है। जहां तक जातीय समीकरण की बात है तो छोड़े जा रहे इन 27 में 8 यादव, 5 मुस्लिम, 4 राजपूत, 3 भूमिहार, 2 कोयरी, एक कुर्मी, एक गंगोता और एक नोनिया जाति से हैं। जातीय जनगणना की प्रक्रिया के बीच इनकी जातियों की चर्चा भी गरम है, फिर भी काफी प्रयास के बावजूद 27 जेल से रिहा होने वालों में 2 की जाति का पता नहीं चल सका है। सत्तासीन जाति के हिसाब से इनकी संख्या का गणित आप खुद समझें तो बेहतर।
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आनंद मोहन की रिहाई बाबत जो नियम बदलाव हुए, क्या उनका फायदा करो को मिला !
आनंद मोहन को जेल-मुक्त करने के लिए सरकार ने एक नियम में बदलाव किया है। सरकारी सेवक की हत्या करने वालों को पूरी सजा से पहले रिहाई की छूट का कोई प्रावधान नहीं था। सरकार ने बाकी सजायाफ्ता की तरह सरकारी सेवक की हत्या में शामिल अपराधियों के लिए भी इस छूट का प्रावधान किया। इस नियम में बदलाव के कारण आनंद मोहन छूट रहे हैं। इस बार छूट रहे बाकी 25 अपराधियों पर सरकारी सेवक की हत्या का केस नहीं था। इसलिए यह आरोप बिल्कुल निराधार है कि आनंद मोहन के लिए बदले नियम का फायदा इन्हें मिला। दरअसल, व्यवहार या बाकी विशेष कारणों से अपराधियों को सजा के अंतिम समय में कुछ राहत मिलती है। विभिन्न अवसरों पर ऐसी रिहाई होती रहती है। बाकी 25 की रिहाई उसी तरह की है।
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जनहित याचिका के क्या है असल मायने !
सामाजिक कार्यकर्ता अमर ज्योति ने अधिवक्ता अलका वर्मा के जरिए पटना हाईकोर्ट में बुधवार को जनहित याचिका दायर की। ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या को सजा में छूट का प्रावधान देने वाली अधिसूचना को रद्द करने की मांग करते हुए लिखा गया है कि “ऐसी छूट के कारण अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा। आम आदमी की तरह ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या करने में अपराधी को हिचक नहीं होगी।” दरअसल, यह जनहित याचिका इस आदेश के पहले दायर होती और सुनवाई होती तो आदेश टलने की संभावना बन भी सकती थी, लेकिन अधिसूचना जारी होने के बाद हाईकोर्ट में सरकार इसपर कमजोर पड़ेगी- ऐसी संभावना अमूमन नहीं दिखती है।
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रिहाई पर क्या बोले आनंद मोहन
आनंद मोहन ने तब फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन अभी तक कोई राहत नहीं मिली है और वह सहरसा जेल में था. उनकी पत्नी लवली आनंद भी लोकसभा सांसद रह चुकी हैं, जबकि उनके बेटे चेतन आनंद बिहार के शिवहर से आरजेडी के विधायक हैं. अपनी रिहाई पर हंगामे का जवाब देते हुए सिंह ने बीजेपी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि बिलकिस बानो मामले के दोषियों को भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दबाव में रिहा किया गया था.
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आनंद मोहन ने कहा कि गुजरात में भी नीतीश कुमार और राजद के दबाव में कुछ फैसला हुआ है। वहां माला पहना कर कुछ लोग छोड़े गए हैं। उसे भी देख लीजिए। मैं नहीं जानता हूं मायावती को। सत्यनारायण भगवान के कथा में मैंने कलावती का नाम सुना था, लेकिन मायवती का नहीं।
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सत्यनारायण भगवान के कथा में मैंने कलावती का नाम सुना
यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती द्वारा आनंद मोहन की रिहाई पर ऐतराज के सवाल पर आनंद मोहन कहा- कौन है मायावती ? मैं नहीं जानता हूं मायावती को। सत्यनारायण भगवान के कथा में मैंने कलावती का नाम सुना था, लेकिन मायवती का नहीं। दरसअल, मायावती ने 23 अप्रैल को कहा था कि बिहार की नीतीश सरकार द्वारा, आन्ध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) महबूबनगर के रहने वाले गरीब दलित समाज से आईएएस बने बेहद ईमानदार जी. कृष्णैया की निर्दयता से की गई हत्या मामले में आनन्द मोहन को नियम बदल कर रिहा करने की तैयारी देश भर में दलित विरोधी निगेटिव कारणों से काफी चर्चाओं में है।
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मायावती ने कहा था- देश भर के दलित समाज में काफी रोष है
इतना ही नहीं मायावती ने आरोप लगाया था कि आनंद मोहन बिहार में कई सरकारों की मजबूरी रहे हैं, लेकिन गोपालगंज के तत्कालीन डीएम कृष्णैया की हत्या मामले को लेकर नीतीश सरकार का यह दलित विरोधी व अपराध समर्थक कार्य से देश भर के दलित समाज में काफी रोष है। चाहे कुछ मजबूरी हो किन्तु बिहार सरकार इस पर जरूर पुनर्विचार करें।
बहरहाल उक्त घटनाक्रम में दायर पीआईएल से क्या कुछ होता है, विरोधी दल और नेता इस पर क्या सियासत करते है, खुद आनंद मोहन रिहा होकर क्या क्या करते है, उनकी रिहाई के असल मायने क्या है , यह सब आने वाला समय बताएगा कि ऊँट किस करवट बैठता है। परन्तु इस तरह के निर्णय जहा एक ओर सरकारकर की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान छोड़ता है तो वही दूसरी ओर आनंद मोहन द्वारा सताए गए लोग एक बार फिर दुःख और दहशत के साये में आ जायेगे। स्वस्थ्य, सक्रीय प्रजातंत्र के लिए ये निर्णय बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करते है . . .
by Er Umesh Shukla for ‘Virat24’ news
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