क्या महिला नागा साधुओ को भी रहना पड़ता है नग्न ! हैरान कर देगी खूनी,खिचड़िया,बर्फानी नागा साधुओं की ये खबर…

हैरान कर देगी खूनी,खिचड़िया,बर्फानी महिला नागा साधुओं की ये खबर…आखिर कुंभ क्यू जरूरी है नागाओं के लिए…

क्या होते हैं खूनी, खिचड़िया और बर्फानी नागा साधू, कितनी रहस्यमय और अलग है महिला नागा साधुओं की दुनिया; इनका कुंभ से क्या संबंध…

नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने तथा युद्ध कला में माहिर होने के लिये प्रसिद्ध हैं। ये विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परम्परा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी।

  • प्रयाग के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को नागा
  • उज्जैन कुंभ में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा
  • हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी
  • नासिक में दीक्षा लेने वालों को खिचड़िया नागा
  • नागाओं की कामेन्द्रियन भंग कर दी जाती हैं.
  • नागा साधु  छः साल की प्रक्रिया के बाद शामिल होते है पंथ में
  • भारत वर्ष में नागा साधुओं की संख्या है पांच लाख

साधू-संत आमतौर पर पीला, केसरिया या लाल रंगों के वस्त्र पहनते हैं। साधू-संत को ईश्वर के सबसे निकट माना जाता है। संन्यासी अपने पूरे सांसारिक जीवन का त्याग कर देता है और अपना समय भगवान का नाम स्मरण करने में लगाता है। साधू-संतों में नागा साधुओं की चर्चा जरूर होती है. आदि शंकराचार्य ने नागा पंथ की स्थापना की थी, सोच यही थी कि जब भी सनातन धर्म पर कोई भी समस्या आएगी, विशेषकर कोई बाहरी आक्रमण आदि होगा तो नागा वीर योद्धा की तरह उठ खड़े होंगे, इसलिए नागाओ को शस्त्र और शास्त्र दोनों विधाओं में पूर्ण रूप से पारंगत किया जाता है. नागा साधु एक सैन्य पंथ है और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटे हैं. सभी नागा साधू भगवान् शिव शंभु/भोलेनाथ/महाकाल के अनन्य भक्त होते है और उन्ही की तरह कठिन, आध्यात्मिक, दिव्य जीवन जीने की कोशिश करते है।

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कुंभ क्यू है खास:
क्या आपको मालूम है कि नागा साधुओं की पहचान अलग अलग कुंभ से भी होती है. कुंभ से उनका खास नाता होता है. बल्कि कह सकते हैं नागा साधु बिरादरी की पहचान में कुंभ खास तौर पर भूमिका निभाते हैं. कुंभ और लंगोट का भी संबंध होता है. नागाओं का जीवन बहुत.

कठिन होता है, उन्हें ना गर्मी सताती है और ना कड़ाके की ठंड.
प्रयाग के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को ‘नागा’ कहा जाता है, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को ‘खूनी नागा’ कहा जाता है, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को ‘बर्फानी’ और नासिक में दीक्षा लेने वालों को ‘खिचड़िया नागा’ कहा जाता है.

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क्या है अखाड़ा:
नागा साधुओं की बात होते ही अखाड़ा शब्द सामने आता है। अखाड़ा शब्द मुगल काल से ही शुरू हुआ है। इसके पहले साधुओं के जत्थे को बेड़ा या जत्था ही कहा जाता था। अखाड़ा साधुओं का वह दल होता है जो शास्त्र विद्या में पारंगत होता है और एक जैसे नियमों का पालन कर तप करता है।

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प्रक्रिया नागा बनने की:
नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लम्बी होती है. नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग 06 साल लगते हैं.कहा जाता है कि भारत में नागा साधुओं की संख्या 5 लाख से अधिक है.
नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लम्बी होती है. नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग 06 साल लगते हैं.कहा जाता है कि भारत में नागा साधुओं की संख्या 5 लाख से अधिक है.

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कुंभ में होती है शुरू प्रक्रिया:
नागा साधु बनने की प्रक्रिया अर्धकुंभ, महाकुंभ और सिंहस्थ के दौरान शुरू होती है. संत समाज के 13 अखाड़ों में से केवल 7 अखाड़े ही नागा बनाते हैं. ये हैं जूना, महानिरवाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा.
नए सदस्य जब तक पूरी तरह पंथ में शामिल नहीं हो जाते तब तक एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते. कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वो लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही रहते हैं.

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ब्रह्मचर्य का पालन, खुद का तर्पण/पिंडदान:
कोई भी अखाड़ा अच्छी तरह जाच-पड़ताल कर योग्य व्यक्ति को ही प्रवेश देता है. पहले उसे लम्बे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है. अंतिम प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान होती है, जिसमें उसे खुद का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार करना होता है.

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आखिर में मिलते हैं पद:
दीक्षा लेने के बाद नागा साधुओं को उनकी योग्यता के आधार पर पद भी दिया जाता है. नागा में कोतवाल, बड़ा कोतवाल, पुजारी, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव इनके पद होते हैं. मूल रूप से नागा साधु के बाद महंत, श्री महंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, पीर महंत, दिगंबर श्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर नाम के पद होते हैं.

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नागाओं के योग:
नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं जो उनके लिए ठंड से निपटने में मददगार साबित होते हैं. वे अपने विचार और खानपान, दोनों में ही संयम रखते हैं. नागा साधु एक सैन्य पंथ है और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटे हैं. त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से वे अपने सैन्य दर्जे को दर्शाते हैं. प्राच्य विद्या सोसाइटी के अनुसार ‘नागा साधुओं के अनेक विशिष्ट संस्कारों मे ये भी शामिल है कि इनकी कामेन्द्रियन भंग कर दी जाती हैं.’

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नग्न अवस्था में हिमालय में तप:
ये नागा साधु हिमालय में शून्य से कम तापमान में नग्न होकर जीवित रहते हैं और काफी दिनों तक भूखे भी रह सकते है. उन्हें सर्दी, गर्मी और बारिश के सभी मौसमों में तपस्या के दौरान नग्न ही रहना पड़ता है. नागा साधु हमेशा जमीन पर ही सोते हैं. नागा साधु अखाड़े के आश्रमों और मंदिरों में रहते हैं. कुछ अपना जीवन हिमालय की गुफाओं या ऊंचे पहाड़ों में तपस्या करते हुए बिताते हैं. वे अखाड़े के आदेशानुसार पैदल भी भ्रमण करते हैं.

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भूखे भी सोना पड़ता है:
इस दौरान किसी गांव के रिज पर झोंपड़ी बनाकर धुनी रमाते है. यात्रा के दौरान वे भिक्षा मांगकर अपना पेट भरते हैं. वे एक दिन में एक ही समय पर भिक्षा के लिए केवल 7 घरों में जाते हैं. यदि सातों घरों से भिक्षा नहीं मिलती है, तो उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता है.

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फूल की मालाएं:
कईं नागा साधु नियमित रूप से फूलों की मालाएं धारण करते हैं. इसमें गेंदे के फूल सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं. इसके पीछे कारण है गेंदे के फूलों का अधिक समय तक ताजे बना रहना. नागा साधु गले में, हाथों पर और विशेषतौर से अपनी जटाओं में फूल लगाते हैं. हालांकि कई साधु अपने आप को फूलों से बचाते भी हैं. यह निजी पसंद और विश्वास का मामला है.

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महिला नागा साधुओ का जीवन नहीं है आसान, आइये जानते है महिला नागा साधुओ के विषय में विस्तार से…

महिला नागा साध्वी को अक्सर कुंभ मेला के स्नान या अन्य किसी ऐसे ही खास अवसरों पर ही देखा जा सकता है। इनकी रहस्यमयी जिन्दगी की वजह से अक्सर लोगों को इनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती। लेकिन जितना कम जानकारी इनके बारे में होती है लोग उतना ही इनके बारे में जानने को उत्सुक रहते हैं।

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महिला नागा साधु (साध्वी) को अक्सर कुंभ स्नान या अन्य किसी ऐसे ही खास अवसरों पर ही देखा जा सकता है। इसके बाद इनकी दुनिया एकदम अलग हो जाती है। इनकी इस रहस्यमयी जिन्दगी की वजह से ही अक्सर लोगों को इनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती। महिला नागा साधुओं का जीवन इतना सरल नहीं होता है।

महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन होती है:

महिला नागा साधु बनने के लिए 10 से15 साल तक कठिन ब्रह्मचर्य जीवन का पालन करना होता है। इसके बाद उन्हें अपने गुरू को इस बात का यकीन दिलाना होता है कि अब उनका जीवन पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित हो चुका है। इसके बाद ये खुद अपना जीते-जी पिंड दान करती हैं। इनका पूरा दिन ईश्वर की भक्ति में लीन होकर ही गुजरता है। अपना पिंड दान करने के बाद ही ये लोग साधु बनती हैं।

नागा साधु बनने के दौरान महिलाओं को अपने सिर का मुंडन करवाना पड़ता है, जिसके बाद उन्हें पवित्र नदी में स्नान करवाकर पूरे विधि-विधान के साथ नागा साधु बनाया जाता है।

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क्या महिला नागा साधुओं को भी रहना होता है नग्न? जानें उनसे जुड़े नियम:
नागा साधुओं की जिंदगी कठोर तपस्या के साथ चलती है। पर क्या आपको पता है कि महिला नागा साधुओं को कुछ अन्य नियमों का पालन करना पड़ता है . . .
हमारे देश में नागा साधुओं का बहुत महत्व है। उनकी जिंदगी कठोर तपस्या में बीतती है। कुंभ जैसे किसी बड़े अवसर पर नागा साधुओं का स्नान सबसे बड़ा माना जाता है। पर क्या आपको पता है कि महिला नागा साधु भी होती हैं और कठोर तपस्या के बाद साध्वी बन पाती हैं। अधिकतर जगहों पर पुरुष नागा साधु दिखते हैं, लेकिन महिलाएं नहीं। यही नहीं, ऐसे कुछ ही अखाड़े हैं जहां महिलाओं को नागा साधु बनने की अनुमति दी जाती है

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क्या महिला नागा साधुओं को रहना होता है नग्न:
क्या महिला नागा साधु भी नग्न रहती हैं। इस सवाल का जवाब है, नहीं उन्हें कपड़े पहनने की इजाजत होती है। हालांकि, इससे जुड़े नियम रहते हैं। वो सिर्फ एक ही वस्त्र अपने शरीर पर धारण कर सकती हैं और वह वस्त्र सिला हुआ नहीं होना चाहिए। हालांकि, कुछ नागा साधु इसका त्याग भी करती हैं, लेकिन वो सबके सामने नहीं आतीं। कई महिला साधु सिर्फ गुफाओं में ही अपना जीवन बिताती हैं।

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