
- रामनवमी को उजाडे गए परिवारो के आशियाने
- कोर्ट का आदेश मिलते ही प्रशासन की खुली नींद
- रामनवमी के दिन अतिक्रमण हटाने की मुहिम शुरू की गई है
वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेता पहले शासकीय जमीनों पर अतिक्रमण करवाते है और जब इनका वोट बैंक बिगड़ा तब इनकी नींद खुलती है I पलक झपकते इन्हें किसी के घरों को उजाड़ने में संकोच नहीं होता।
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जहा एक ओर पूरा देश श्री रामनवमी के पावन पर्व को मना रहा है , चारो तरफ कार्यक्रम किये जा रहे है , भव्य शोभायात्राएं निकली जा रही है , लोग ख़ुशी में झूम रहे है और बधाईया – शुभकामनाए दी जा रही है , वही दूसरी ओर जिला मुख्यालय से महज चालीस किलोमीटर दूर सेमरिया तहसील के रानी तालाब स्थान पर वर्षो से रह रहे गरीबो के आशियाने को ध्वस्त कर जमीदोज कर दिया गया है।
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गौरतलब है कि मामला सेमरिया तहसील के रानी तालाब का है , जहां विगत कई वर्षों से लोग घर और दुकान बनाकर रोजी रोटी कमा रहे थे I जिनके घर और दुकानों का मामला न्यायालय में विचाराधीन था I एक दिन पहले ही न्यायालय का आदेश पहुंचा तो पुलिस प्रशासन आनन-फानन में लाव लश्कर लेकर पहुंचा और अतिक्रमण हटाने की मुहिम शुरू कर दी I
स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि कुछ राजनैतिक संरक्षण प्राप्त लोगों को बख्शा जा रहा है , जबकि जिनकी राजनैतिक पहुंच नहीं है उनके घरो को उजाड़ा जा रहा है I
वही पूरी की गई कार्यवाही को लेकर आप पार्टी के पूर्व जिला अध्यक्ष प्रमोद शर्मा ने आरोप लगाया कि भेदभाव करते हुए अतिक्रमण हटाया जा रहा है I शासन को चाहिए था कि कोर्ट के आदेश के बाद सामान खाली करने का समय दें ,जिसके बाद कार्यवाही होनी चाहिए I रामनवमी के दिन किसी का घरौंदा उजाड़ना कहां तक न्याय संगत है I रामनवमी के दिन अतिक्रमण हटाने की मुहिम शुरू की गई है I
उल्लेखनीय है कि कोर्ट का फैसला आने पर प्रशासन/पुलिस द्वारा यह कार्यवाही कि गयी है I कोर्ट के फैसले को अमल में लाने से किसी को दिक्कत नहीं है , परन्तु रामनवमी के दिन गरीबो के घर को जमीदोज करना , कहा तक उचित है ! साथ ही स्थानीय लोगो का साफ़ आरोप है कि उन्हें नियम के हिसाब से पहले नोटिस और कुछ समय दिया जाना चाहिए था , जिससे कि वो समय रहते अपने सामान को हटा के व्यवस्थित कर लेते I फिर पुलिस कोर्ट के आदेश का पालन करती , किसी ने रोका थोड़े ही था।
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वैसे भी हम अमूमन देखते है कि कोर्ट से आदेश आने के बाद भी रसूखदार लोगो को किसी न किसी तरीके से राहत देने कि कोशिश कि जाती है। सालो कोर्ट के आदेश को लटकाने के तरीके खोजे जाते रहते है !
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ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या इस देश में सारे नियम कानून सिर्फ गरीबो पर ही मान्य होंगे ?
क्या त्यौहार मानाने का हक़ सिर्फ अमीरो ,रसूखदारों को ही है बस ?
या यूँ कहे कि , क्या इस देश में गरीब होना एक श्राप सा हो गया है ? ? ?