Rewa:विशेष न्यायाधीश पीसी एक्ट मुकेश मलिक ने लग्भग 13 करोड़ के कराधान घोटाले आरोपी मास्टरमाइंड राजेश सोनी की जमानत याचिका की खारिज। 03फरवरी 2023 को आरोपी राजेश सोनी की जमानत याचिका पर विशेष न्यायाधीश पीसी एक्ट के समक्ष हुई थी सुनवाई।सरकार की तरफ से विशेष लोक अभियोजक सचिन द्विवेदी ने शासन की तरफ से रखा था पक्ष। सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी एवं अधिवक्ता संजय पांडेय ने भी जमानत याचिका निरस्त करने की उठाई थी आपत्ति।
गंगेव जनपद में वर्ष 2019 के दरमियान हुए लगभग 13 करोड़ के व्यापक स्तर के कराधान घोटाले के मास्टरमाइंड आरोपी राजेश सोनी की जमानत याचिका खारिज कर दी गई है। यह आदेश 3 फरवरी 2023 को विशेष न्यायाधीश पीसी एक्ट मुकेश मालिक के समक्ष हुई सुनवाई के दौरान आया है।
विशेष लोक अभियोजक सचिन द्विवेदी ने सरकार का जम कर रखा पक्ष
पूरे मामले में सुनवाई के दौरान कई बातें सामने आई उसमे मनगवां पुलिस और शासन की तरफ से पक्ष रखते हुए विशेष लोक अभियोजक सचिन द्विवेदी ने बताया कि राजेश सोनी के ऊपर वर्ष 2019 में सितंबर अक्टूबर के दौरान लगभग सवा 8 करोड़ रुपए के लगभग वित्तीय अनियमितता का आरोप था जिसमें आरोपी सोनी और अन्य द्वारा कई ग्राम पंचायतों के सरपंच सचिवों के साथ मिलकर एक ही कंप्यूटर में बैठकर डीएससी आईडी पासवर्ड हासिल करते हुए शिवशक्ति कंस्ट्रक्शन एवं मटेरियल सप्लायर एवं अन्य फर्म के नाम पर लंबी चौड़ी राशि का ट्रांसफर किया गया था। मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा एवं जनपद पंचायत गंगेव द्वारा मामले पर कार्यवाही करते हुए उच्च स्तरीय टीमों की जांच के बाद जांच रिपोर्ट के आधार पर दिनांक 26/08/2020 को थाने में एफआईआर क्रमांक 470/2020 दर्ज करवाई गई थी जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 409, 420, 120 बी 34 एवं सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66सी एवं 66डी एवं बाद में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया था। मामला बेहद गंभीर किस्म का था जिसमें तीन आरोपी बनाए गए थे जिनमें एक अभियुक्त प्रतिभा सिंह को पहले गिरफ्तार कर चालान पेश किया गया था जबकि एक तीसरा अन्य आरोपी और शिव शक्ति कंस्ट्रक्शन एवं मटेरियल सप्लायर का प्रोपराइटर नागेंद्र सिंह अभी भी फरार है। व्यापक स्तर के भ्रष्टाचार और तथ्यों और सबूतों को दबाने और प्रभावित किए जाने के कारण ऐसे आरोपी को जमानत दिया जाना न्यायहित लोकहित में नहीं होगा ऐसे तर्क के साथ प्रस्तुति दी गई थी। मामले पर विशेष लोक अभियोजक सचिन द्विवेदी ने यह भी कहा कि भले ही जिला पंचायत द्वारा पूर्व संभाग आयुक्त रीवा एवं कलेक्टर रीवा की जांच के बाद मनमाने ढंग से निचले स्तर की जांच स्वयं अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा द्वारा की गई वह त्रुटिपूर्ण है क्योंकि इसके बाद भी एक आपत्तिकर्ता शिवानंद द्विवेदी द्वारा कराई गई अन्य जांच में 3 ग्राम पंचायतों को पुनः दोषी पाया गया है। इस आधार पर स्पष्ट होता है कि मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा द्वारा जिन 22 ग्राम पंचायतों के नाम पर वसूली से विमुक्त किए जाने की प्रक्रिया संदेह के दायरे में है और त्रुटिपूर्ण है इसलिए किसी भी प्रकार से जमानत का लाभ न दिया जाए।
विशेष लोक अभियोजक द्वारा यह भी कहा गया कि मामले में याचिकाकर्ता के विद्वान अधिवक्ता भी यह मान रहे हैं कि पहले कराधान योजना की राशि नियम विरुद्ध हासिल की गई और इसके बाद कार्य कराया गया है। इसलिए अपराध कारित किया जाना पाया जाता है।
सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी एवं अधिवक्ता संजय पांडेय द्वारा भी प्रस्तुत की गई आपत्ति
मामले पर प्रारंभ से ही शिकायत और आरटीआई लगाकर जानकारी प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी एवं अधिवक्ता संजय पांडेय द्वारा भी आपत्ति प्रस्तुत की गई जिसमें उनके द्वारा समस्त तथ्य रखे गए और बताया गया कि किस प्रकार 14वें वित्त आयोग की परफॉर्मेंस ग्रांट कराधान योजना की राशि जोकि 28 अगस्त 2019 को पंचायत राज संचालनालय के द्वारा प्रदेश की 1148 पंचायतों में पंचायतों में विकास कार्य के लिए सीधे उनके एकल खाते में अंतरित की गई थी उसका दुरुपयोग करते हुए रीवा जिले की गंगेव जनपद की 38 ग्राम पंचायतों में पदेन नोडल अधिकारी रहते हुए निलंबित लिपिक राजेश सोनी द्वारा उन संबंधित ग्राम पंचायतों की सांठगांठ से डिजिटल सिगनेचर सर्टिफिकेट और आईडी पासवर्ड अपने कब्जे में करते हुए दुरुपयोग किया गया था।
आरटीआई के बाद ही पूरे मामले का काला चिट्ठा खुला और कलेक्टर एवं कमिश्नर का जांच प्रतिवेदन आरटीआई से सामने आया तो हड़कंप मच गया। इसके बाद आरोपी सरपंच सचिव और राजेश सोनी हाईकोर्ट की शरण में गए जहां से उन्हें स्थगन भी प्राप्त हुआ था। लेकिन इसी बीच मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा द्वारा मामले पर अपनी अधिकारिता से हटकर कमिश्नर रीवा संभाग और कलेक्टर रीवा की जांच को धता बताते हुए उपयंत्री और सहायक यंत्री स्तर से निचले स्तर की जांच कराई गई और वसूली से भी पंचायतों को मुक्त किया गया। इस प्रकार वसूली से फर्जी विमुक्ति की पोल तब खुली जब एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी द्वारा एक बार पुनः कुछ पंचायतों की जांच करवाई गई जिसमें जिन पंचायतों को वसूली से मुक्त किया गया था उन्हीं पंचायतों में वापस वसूली बनाई गई।
इस प्रकार का तथ्य जस्टिस मुकेश मलिक के समक्ष रखे जाने के बाद सारी सच्चाई सामने आई और अभियुक्त राजेश सोनी को जमानत का लाभ नहीं मिल सका।
एडिशनल सीईओ एबी खरे एवं मनगवां पुलिस द्वारा भी प्रस्तुत हलफनामे में की गई त्रुटि
सवाल तब पैदा हुआ जब दिनांक 18 नवंबर 2022 को हाईकोर्ट की एकल पीठ कि जस्टिस नंदिता दुबे द्वारा एक आदेश पारित किया गया जिसमें यह उल्लेख किया गया कि क्योंकि मनगवां थाने में दर्ज एफआइआर क्रमांक 470/2020 में खात्मा लगा दिया गया है इसलिए राजेश सोनी एवं अन्य के द्वारा लगाई गई हाईकोर्ट में याचिकाएं औचित्यविहीन हो जाती हैं और क्योंकि प्रशासन ही जब कोई कार्यवाही नहीं कर रहा है और सभी प्रकार की डिसीप्लिनरी प्रोसीडिंग्स खत्म कर रहा है इसलिए कोर्ट को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है और इनकी याचिकाएं औचित्यविहीन समझकर निरस्त कर दी गई थी।
गौरतलब है हाईकोर्ट के इस आदेश में गड़बड़ी इसलिए हुई क्योंकि जिला पंचायत रीवा से अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी एबी खरे एवं मनगवां से अनुविभागीय अधिकारी के द्वारा जो हलफनामा हाई कोर्ट में प्रस्तुत किया गया था उसमें कहीं न कहीं भ्रामक और गलत जानकारी प्रस्तुत की गई जो हाईकोर्ट में दिए गए आदेश का भी एक कारण बनी। हालाकी प्रतिवेदन में मनगवां एसडीओपी द्वारा विशेष न्यायाधीश पीसी एक्ट जस्टिस मुकेश मलिक के समक्ष दिए जवाब में बताया गया कि क्योंकि आरोपी राजेश सोनी की याचिका में एफ आई आर क्रमांक दर्ज नहीं था इसलिए गलती हुई जबकि देखा जाए तो अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने तो जानबूझकर गलत हलफनामा दिया जिसमें उनके द्वारा इसी प्रकार के मामलों में खात्मा होना बताया गया और इस मामले को नल एंड वाइड बताया गया। इसमें गलती किसकी है इसका अभी निर्धारण किया जाना शेष है क्योंकि मामला कोर्ट से संबंधित है और इससे संबंधित शासन द्वारा रिवीजन पिटिशन और रिट अपील भी दायर की जा रही हैं।
हाईकोर्ट में रिवीजन याचिका दायर
सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार मामले पर हाईकोर्ट ने एक रिवीजन याचिका भी दायर की जा रही है लेकिन वहां तक सामने नहीं आ पाई है जिसमें जस्टिस नंदिता दुबे द्वारा दिनांक 18 नवंबर 2020 को दिए गए अपने आदेश में जो त्रुटियां किसी भी कारणवश हुई है उनको लेकर उनमें सुधार किए जाने हेतु पूर्व में 12 जनवरी 2023 को महाधिवक्ता उच्च न्यायालय जबलपुर को लेख किया गया है जिसमें मंनगवा थाने में दर्ज एफआइआर क्रमांक 470/2020 में खात्मा नहीं लगाया गया है इस प्रकार उल्लेख किया गया है।
अंत में विशेष न्यायाधीश पीसी एक्ट श्री मुकेश मलिक ने जमानत याचिका की खारिज
पूरे मामले में सभी पक्षों के तर्को को सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश पीसी एक्ट न्यायाधीश मुकेश मलिक ने अभियुक्त राजेश सोनी की जमानत याचिका खारिज कर दी। अपने आदेश में उन्होंने लगभग उल्लेख किया की याचिकाकर्ता के विद्वान वकील के माध्यम से प्रस्तुत किए गए दस्तावेज और तर्क साक्ष्य प्रक्रम पर आधारित है इसलिए और साथ में विशेष लोक अभियोजक सचिन द्विवेदी द्वारा प्रस्तुत विभिन्न तर्कों एवं इस तर्क के आधार पर की क्योंकि मामले पर एक बार अपराध कारित कर दिया गया है और गबन करने के बाद कार्य करवाया गया इसलिए जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता एवं साथ में क्योंकि अभियुक्ता प्रतिभा सिंह की जमानत याचिका की विषय वस्तु वर्तमान अभियुक्त राजेश सोनी की जमानत याचिका की विषय वस्तु से काफी अलग है इसलिए भी इसे उस श्रेणी में नहीं लाया जा सकता। इस प्रकार आदेश में उल्लेखित कई तथ्यों के आधार पर और अपराध की गंभीरता को देखते हुए विशेष न्यायाधीश पीसी एक्ट मुकेश मलिक ने याचिकाकर्ता आरोपी राजेश सोनी की जमानत याचिका खारिज कर दी।
विशेष टिप्पणी
इस लेख में उल्लेखित बिंदु पूरे मामले की समझ हेतु हैं और विशेष न्यायाधीश पीसी एक्ट श्री मुकेश मलिक के आदेश के कुछ मुख्य बिंदुओं पर आधारित हैं एवं इस लेख में किसी भी प्रकार से न तो हाईकोर्ट अथवा न ही किसी भी न्यायालय के आदेश की समालोचना की गई है।