श्री आदिकेदारेश्वर मंदिर,उत्तराखंड

आदि केदार मंदिर चमोली जिले में है

उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. यहां पग-पग पर देवी-देवताओं का वास है. हर मंदिर की अपनी अलग अलग मान्यताएं, धार्मिक महत्व, और पूजा पाठ की विधि है. इन्हीं में से एक मंदिर है आदि केदार (आदि केदारेश्वर मंदिर). वैसे तो आपने पंच बद्री में से एक आदि बद्री का नाम तो सुना ही होगा लेकिन शायद कुछ ही लोग ऐसे होंगे, जिन्हें आदि केदार के बारे में भी पता होगा. उत्तराखंड के चमोली जिले में भगवान शिव का एक और मंदिर है, जिसे आदि केदार के नाम से जाना जाता है. आदि केदार बद्रीनाथ धाम के सिंहद्वार के नजदीक तप्तकुंड की ओर उतरने वाली सीढ़ियों के दाहिनी ओर शंकराचार्य के मंदिर के नीचे स्थित है. भगवान शिव के अंश रूप के दर्शन आदि केदार में होते हैं.

पौराणिक कथा के अनुसार, संपूर्ण केदारखण्ड पर शिव का आधिपत्य था एक बार जब नारायण (विष्णु) बद्री धाम में आए, तो उन्हें बद्रीनाथ धाम बहुत भाया और उनका मन हुआ कि वह यहीं रह जाएं, लेकिन बद्री क्षेत्र में तो कोई स्थान ही खाली नहीं था इसलिए उन्होंने एक योजना बनाई. वह बाल रूप धारण कर भगवान शिव और माता पार्वती के द्वार के सामने रोने लगे.उस समय माता पार्वती और भगवान शिव स्नान के लिए बद्रीनाथ मंदिर में स्थित तप्त कुंड में स्नान के लिए जाने की तैयारी कर रहे थे. पार्वती ने उस रोते हुए नन्हें से बालक को देख उन्हें अपनी ममता की छांव दी. हालांकि भगवान शिव ने उन्हें मना भी किया लेकिन माता नहीं मानी और बालक को अंदर ले जाकर वहां पर सुलाकर शिवजी के साथ स्नान के लिए चली गईं. उनके जाने के बाद नारायण ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और जब स्नान कर माता और भगवान शिव लौटे, तो अंदर से दरवाजा नहीं खुला तो वे अन्यत्र (केदारनाथ धाम) चले गए और अपने अंश रूप में वे यहां पर बने रहे. उनका मूल स्थान होने के कारण ही इसे आदि केदार के नाम से जाने जाना लगा. इस क्षेत्र के बारे में केदारखण्ड में भी वर्णित है, हालांकि यह एक मात्र दंतकथा हैं, जो सदियों से चली आ रही है.

बद्रीनाथ के पूर्व धर्माधिकारी भुवन उनियाल बताते हैं कि आदि केदार का बद्रीनाथ धाम में विशेष महत्व है. जब बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद होते हैं, तो उससे पहले पांच दिनों तक पंचपूजा होती है, जिसमें पहले दिन भगवान गणेश का मंदिर बंद होता है. दूसरे दिन आदिकेदार के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. स्थानीय निवासी भुवन नौटियाल बताते हैं कि जो भक्त केदारनाथ धाम की यात्रा नहीं कर पाते हैं, यदि वे आदि केदार के दर्शन कर लें, तो उन्हें बाबा केदार के दर्शन का फल यहीं मिल जाता है.

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