रोको, कि मणिपुर जल रहा! आखिर केंद्रीय गृह मंत्री शाह की तमाम कोशिशों के बावजूद क्यों नहीं थम रही मणिपुर में हिंसा ?
उल्लेखनीय है कि मणिपुर में 49 दिन पहले 3 मई को हिंसा शुरू हुई थी। जनसंख्या के लिहाज से भारी मैतेई और एक बड़े क्षेत्र पर काबिज कुकी समुदाय ने एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।
हिंसा भड़कने के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दो बार राज्य का दौरा कर चुके हैं। कई दर्जन बैठकें और ब्यान जारी कर चुके हैं। लेकिन इन कोशिशे के बाद भी मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही।
सवाल यही कि आखिर केंद्रीय गृह मंत्री की कोशिशें क्यों हो रही बेअसर ???
आपको बता दें कि प्राप्त जानकारी अनुसार अब तक हिंसा में करीब सौ लोग काल के गाल में समां गए हैं तो वही तीन सौ पच्चीस से अधिक घायल हैं। बताया जा रहा कि अढ़तालिस हजार से ज्यादा लोग राहत शिविरों में शरण लिए हुए है।
सबके मन में एक अहम सवाल है कि आखिर मणिपुर की यह आग कब बुझेगी?
इस सवाल का ठोस सटीक जवाब किसी से नहीं मिल पा रहा है!!! फिर चाहे वो मणिपुर की राज्य सरकार और उसके आला अधिकारी हो या केंद्र सरकार और उसके जिम्मेववार। सभी कोशिशो में लगे है और उधर मणिपुर में मृत, घायल और राहत शिविरों में लोगो की संख्या में इजाफा होता जा रहा है।
मैतेई और कुकीज: सालो से साथ रहते और काम करते रहे हैं:
सालों से मैतेई और कुकीज साथ रहते, काम करते आए थे। हालांकि मैतेई और कुकीज के बीच मतभेद भी लंबे समय से रहे हैं। कुकी, नगा राज्य के क्षेत्रों में ज्यादा हैं। मैतेई राजधानी इंफाल और आस-पास अधिक हैं। मणिपुर के 60 में से करीब 40 विधायक मैतेई समुदाय से ही हैं। लेकिन जो विभाजन और हिंसा की आग इस बार लगी है, अब यह खाई पटना बहुत ही मुश्किल लग रही है।
हिंसा का संभावित कारण : लड़ाई तो जंगल, जमीन और अधिकार की है
मणिपुर की जनसंख्या कोई 28 लाख है। इसमें से मैतेई घाटी में रहते हैं। कुकी चार पहाडिय़ों पर फैले हुए हैं। जनसंख्या में मैतेई समुदाय के लोग ज्यादा हैं। कुकी और नगा कम। लेकिन कुकी और नगा अधिक क्षेत्रों में आबाद हैं। मैतेई और कुकी सालों से साथ रह रहे थे। उनमें कारोबारी व्यापारिक रिश्ते थे। लेकिन 3 मई से यह सब खत्म हो चुका है।
असल में काफ़ी पहले से लड़ाई तो जंगल, जमीन और अधिकार की है। परन्तु अगर इसे राजनीतिक रंग न दिया गया होता, तो इस तरह के हालात न होते। अब स्थिति यह है कि जहां कुकी समुदाय के लोगों की बहुलता है, वहां से मैतेई पलायन कर गए हैं। जहां मैतेई बाहुल क्षेत्र है, वहां से कुकी घर छोड़कर जा चुके हैं। दोनों समुदाय अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों की सुरक्षा, निगरानी बाकायदा बंकर बनाकर, अत्याधुनिक हथियारों से लैस होकर और सैटेलाइट फोन का प्रयोग करके कर रहे हैं। सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार सुरक्षा बलों को क्षेत्र में भीतर घुसने, अपना अभियान चलाने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है।
दरअसल, 27 मार्च को मणिपुर हाईकोर्ट ने एक फैसला दिया था। इसमें उच्च न्यायालय ने सरकार से मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की सिफारिश की थी। बताते हैं कि सारी पटकथा भी इसके बाद ही शुरू हुई थी। अब यह समस्या नासूर बन चुकी है।
केंद्र सरकार की चूक ?
बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट कर कहा कि अब समय आ गया है जब अनुच्छेद संविधान के 356 का इस्तेमाल करते हुए मणिपुर की भाजपा सरकार को बर्खास्त कर दिया जाए और राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।
मणिपुर मामले के जानकार भी मानते है कि मणिपुर में शांति बहाली के प्रयासों की अगुवाई असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को क्यों सौपी गई? यह एक बड़ी भूल के सामान है।
केंद्र और राज्य सरकार पर सवाल ये कि आखिर मणिपुर हिंसा को धार्मिक हिंसा से जातीय हिंसा में बदलने से पहले ठोस कदम क्यों नहीं उठाया गया?
गौरतलकब है कि मैतेई जो कि जनसंख्या में ज्यादा हैं और समुदाय के लोग मंदिरो में पूजा करते है। जब विवाद भड़का तो वो चर्च को जलाने-नष्ट करने लगे।
जबकि ज्यादातर कुकी चर्च में आस्था रखते हैं, तो उन्होंने हिंसा भड़कने पर मंदिरो को जलना-तोडना शुरू कर दिया। प्राप्त आकड़े अनुसार अब तक कोई 100 मंदिर और 200 छोटे-बड़े चर्च इस हिंसा का शिकार हो चुके हैं।
आरोप हिन्दू संगठनों पर भी?
मणिपुर को जानने समझने वाले लोग हिन्दू संगठनों को भी जिम्मेदार ठहराते हैं। अब यह हिंसा धार्मिक दायरे से एक कदम और चलकर पूरी तरह से मैतेई बनाम कुकी हो गई है। जो कि भयावह है।
न्यायालय में सुनवाई: तीन जुलाई
3 जुलाई को उच्चतम न्यायालय कुकी समुदाय को सुरक्षा देने के मामले की सुनवाई करेगा। यह मामला एक एनजीओ ने दायर किया है। ऐसा माना जा रहा है कि अदालत में सुनवाई होने का असर पड़ सकता है। इसके समानांतर केन्द्रीय गृह मंत्रालय लगातार मणिपुर के हालात पर नजर बनाए है। वहां बड़ी संख्या में सुरक्षा बल भेजे गए हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कई कमेटियां बनाई हैं। ताकि वहां यथाशीघ्र शांति बहाली संभव हो सके। जांच एजेंसियों का भी गठन किया है, ताकि लोगों के आक्रोश को कम किया जा सके। लेकिन अभी हालात काबू में आने की उम्मीद बहुत धुंधली ही नज़र आ रही है।