रीवा: भीषण गर्मी में अघोषित बिजली कटौती से त्रस्त है रीवा की जनता? जिम्मेवार अधिकारी नहीं दे रहे ध्यान
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रीवा: (city): मौजूदा हालात तो यही कहानी बयां कर रहे है।
आपको बता दे कि भीषण गर्मी (तापमान: 40 से 45 °C) के इस मौसम में आजकल रीवा शहर के चारो कोनो में शायद ही कोई मोहल्ला/कॉलोनी ऐसी होगी जहा दिन के 24 घण्टों में कम से कम दो से तीन बार बिजली गुल न हो जाती हो और गुल हुई ये बिजली कटौती कभी कभी तो जल्दी परंतु कभी लंबे अंतराल के बाद ही आती है। गौरतलब है कि ये बिजली कटौती पूर्ण रूपेण अघोषित होती है अर्थात जिसकी कोई पूर्व सूचना उपभोक्ताओं रीवा वासियों को नहीं होती।भीषण गर्मी के इस मौसम में बिजली गुल होने से यूं तो हर कोई त्रस्त/परेशान हो जाता है परंतु सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति होती है घर में मौजूद छोटे बच्चो, वृद्ध जनों, मरीजों और महिलाओं की।
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रीवा के हर मोहल्ले में दिन प्रतिदिन बिजली की अघोषित कटौती हो रही है, साथ ही एकाक बार हो तो भी झेली जा सकती है परंतु जब दिन में दो तीन बार होगी तो फिर जिम्मेवारो पर सवाल तो उठेंगे ही। शहर के लगभग हर वार्ड, हर कॉलोनी इंजीनियरिंग कॉलोनी,तुलसी नगर,समान,शारदा पुरम,सिरमौर चौक, बोदा बाग,नेहरू नगर,इंदिरा नगर,शिव नगर, ढेकहां,खुटेही,घोघर,निपनिया,रतहरा, बिछिया,तोपखाना, उपरहटी, रानीगंज, तरहटी, पांडेंटोला, पुष्पराज नगर, सुंदरनगर, द्वारिकनगर, पद्मधर कॉलोनी, बाणसागर कॉलोनी, चिरहुला कॉलोनी, महाजन टोला, हर जगह बिजली की अघोषित कटौती से त्राहि त्राहि मची है। पर कोई सुनने वाला नहीं है। बिजली विभाग की ओर से शिविर लगाए जाते है परन्तु वह केवल बिल जमा करने तक ही सिमट के रह जाते है।
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बिजली गुल होने पर जब भी उपभोक्ता शिकायत के लिए विभाग द्वारा जारी किए गए दूरभाष नम्बर पर फोन लगाते है तो अगर दिन का समय हो तो अक्सर जवाब मिलता है मेंटिनेंस चल रहा है, अभी आ जाएगी। अब यह बात समझ से परे है कि बिजली विभाग हर सीजन में तय शेड्यूल के मुताबिक मेंटेनेंस भी करता है, तो फिर ये रोज रोज कौन सा मेंटिनेंस किया जाता है ! पहले के वर्षो में ऐसा तो नहीं होता था, ये नया मेंटेनेंस का क्या चक्कर है, या फिर विभाग द्वारा लोगो को घनचक्कर बनाया जाता है मेंटिनेंस के नाम पर ? और कई बार तो शिकायती फ़ोन नंबर में आप फोन मिलाते रहिए, या तो फोन लगेगा नही और अगर लग भी गया तो उठेगा नही, और अगर कही फ़ोन रिसीव हो गया तो आपको आश्वाशन रूपी झुनझुना थमा दिया जाएगा।
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हमारी टीम ने बकायदा इस बिजली अघोषित गुल मुद्दे और बिजली से जुड़े अन्य मुद्दों पर शहर के कई कॉलोनियों में जा जा के मालूमात हासिल की ,लोगो से पूछा तो यही बात निकल कर आई कि जितनी बेकार शहर की बिजली व्यवस्था इस समय है उतनी बेकार तो कभी भी नही रही।
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आइये आपको भी बताते है कुछ लोगो ने सवाल के जवाब में क्या कुछ कहा है . . .
>शारदापुरम के आशीष पांडे ‘कंचु’ का कहना है कि बिजली तो आती जाती रहती है, हमने हाथ वाला बेनवा खरीद लिया है,जब गुल हुई तो उसी से काम चलाते है।
>नीम चौराहे के सुधांशु अग्निहोत्री कहते है घर में AC लगवा रखा है,परंतु जब बिजली बराबर नही रहेगी तो क्या फायदा, अलबत्ता बिल जरूर हर महीने हजारों का आ जाता है।
>खुटेही से सुनील दद्दा कहते है अभी चार दिन हुए गांव से आए, पर बिजली विभाग की मनमानी देख लगता है वापस गांव लौट जाऊ, शहर से ज्यादा तो इस समय गांव में बिजली रह जा रही है।
>गुलाब नगर रहवासी विनीत मिश्रा ‘binne’ कहते है कि बिजली रहें न रहें पर बिल रूपी खर्रा जरूर हर महीने आ जाता है।
>रतहरा के कांग्रेस नेता अनुराग तो राजनीतिक बयान देते हुए कहते है कि बीजेपी राज में अंधेरगर्दी है तो अधेरा तो कायम रहेगा ही।
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>नेहरू नगर के प्रदीप सिंह ‘टोनू‘ का कहना है कि बिजली गुल होना तो समस्या है ही, जरा बिजली के खम्बो में लगे डीबी (distribution Box) को देखिए, चिड़ियों ने घोसले बना रखे है, पेड़ कम हो रहे है तो लगता है शायद बिजली विभाग रीवा ने पेड़ के बदले खंबे में डीबी इसलिए खोल के रखे है कि बेचारे पंछी अपने घोंसले रख सके
>निपनिया से यश और अवनीश कुछ मजाकिया अंदाज में कहते है कि लगता है बिजली विभाग को लोगो के सोने के समय का पता चल गया है, इसलिए रात में कुछ ज्यादा ही बिजली गुल होती हैI
>गड़रिया के बृजेश कहते है कि कार्यपालन यंत्री शायद उतने सक्षम नहीं कि वो शहर की बिजली व्यवस्था को भली भाति संभल लें, अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय में ऐसे अधिकारी के खिलाफ जनता बिगुल फुक्ने को मजबूर होगी।
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सनी, सोनू, रेशू, मोंटी, गोपी, गुलाब नगर रहवासी शिवार्चन, रतहरा निवासी सोनू शुक्ल, बोदा निवासी रिंकू, संजय नगर निवासी रिंटू सिंह, रेहम बानो, हेमा मिश्रा, ज्योति सिंह, अप्पू, संदीप तिवारी, तिवारी, शैलू सिंह, आशीष तिवारी, लक्ष्मी साकेत, सितलिया, गंगूदिन, रमजान, हमजा, इस्लाम, कादिर, बलवंत सिंह, सुखी सिंह, असीम हेमवानी, गिरीश सिंधी,अमन कुंगवानी, निपनिया से यश, आदर्श,ढेकहा से लाल मिश्रा, दोही से अंकित मिश्रा, उपरहटी से अम्बर पांडेय, पांडे टोला से अमन पांडेय, तरहटी से राहुल नामदेव, शिवेश मिश्रा, तपस्या पटेल, झुमकी, जमुना बाई कॉल एवं अन्य बहुत से लोगो के विचार जानने का प्रयास हमारी टीम ने किया और लगभग सभी ने कुछ न कुछ विभाग की कमियां बताई, कमियों को उजागर किया।
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उन्ही कमियों/खामियों को हम नीचे की पंक्तियों में सिलसिलेवार ढंग से अपने पाठको के लिए न केवल लिखेगे बल्कि सबूत/तथ्य के तौर पर प्रमाणिक तस्वीरे भी इसी लेख में लगायेगे, बस आप अंत तक इस लेख को पढ़ते रहिए, आपको खुद ये अहसास होगा कि आखिर रीवा शहर का बिजली विभाग मौजूदा समय में कर क्या रहा है…
>बिजली की अघोषित कटौती लगभग रोज हो रही है, किसी किसी दिन तो तीन से चार बार भी हो जाती है
>शहर के खम्बो में लगे डीबी में से ज्यादातर डीबी खुले है, किसी में चिड़ियों ने घोंसले बना रखे है तो किसी में कूड़ा, धूल इकठ्ठी हो रखी है, जिसकी वजह से शॉर्ट सर्किट के कारण कभी भी आंग लगने का खतरा बराबर बना रहता है साथ ही टर्मिनल कनेक्शन लूज होने के चलते घरों के बिजली उपकरण का नुकसान भी होता है जिससे आर्थिक हानि की संभावना भी लगातार बनी रहती है।
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>शहर के ज्यादातर ट्रांसफार्मर भी कोई खास अच्छी कंडीशन में नही दिखते, काफी ट्रांसफार्मरों में से ऑयल लीकेज साफ देखा जा सकता है तो कुछ में लूज़ कनेक्शन भी मौजूद है। अक्सर यह देखने में आता है कि फला ट्रांसफार्मर में आंग लग गई, हालाकि सवाल पूछे जाने पर विभाग का जवाब अक्सर होता है कि ओवरलोड हो गया था, लेकिन यहा सवाल ये उठता है कि आखिर जब सब कुछ calculate कर ट्रांसफार्मर लगाए जाते है और बराबर मेंटेनेंस/रखरखाव होना दिखाया और बताया जाता है तो ओवरलोड कैसे हो गया अचानक से और अगर हो भी गया तो उसका खामियाजा भारी भारी बिजली बिल जमा करने वाली जनता क्यू भुगते, क्यू न विभाग की जिम्मेवारी बने इस failure पर। बहरहाल कई बार ट्रांसफार्मर में आंग लगने का कारण उसके गर्म लीकेज ऑयल और खुले सिमटे तारो में हुए शार्ट सर्किट भी होते है जो विभाग की नजरंदाजी, लापरवाही का नतीजा है। अक्सर शहर में खबर आती ही रहती है कि फ्ला ट्रांसफार्मर में आग लग गयीI
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>ट्रांसफार्मर के साथ लगे फ्यूज बॉक्सेस को अगर देखे तो लगभग अस्सी प्रतिशत फ्यूज बॉक्सेस के पैनल यानी दरवाजे खुले पाए गए है, जिसकी वजह से कई फ्यूज बॉक्सेस में भी चिड़ियों ने घोंसले बना रखे है, साथ ही अधिकतर फ्यूज बॉक्सेस में लगे फ्यूजेस आपस में डायरेक्ट जोड़ दिए गए है, यानी वायर को फ्यूज के इनपुट और आउटपुट से सीधे सीधे ही (direct) जोड़ दिया गया है जबकि सही तरीका है तार अलग अलग जुड़ते है और फ्यूज का ऊपर का सॉकेट उन्हें आपस में कनेक्ट करता है। पैनल खुले होने के कारण बॉक्सेस में भरी गंदगी की तो बात ही क्या कहना। अब इन सब खामियों में होता ये है कि बराबर output नही मिल पाता, लॉस ज्यादा होता है, शॉर्ट सर्किट के कारण आग लगने का खतरा तो हमेशा ही बना रहता है और कई बार आग लग भी जाती है। इसी प्रकार कम ऊंचाई पर लगे होने के कारण जानवरों को भी खतरा बना रहता है कि कही वो इनके पास आकर विद्युत् करेंट की चपेट में न आ जाएं जिसकी वजह से वो घायल या मृत भी हो सकते है। कई बार ऐसी घटनाएं हुई भी है जिसकी वजह से जानवर, पशु-पक्षी तो हताहत हुए ही साथ में कई कई घंटे बिजली व्यवस्था अवरुद्ध बाधित रही है।
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>जब सारा मेंटेनेंस विभाग द्वारा तयशुदा समय में किया जाता है तो फिर जरा सा हवा चलने या जरा सी हल्की बारिश में भी बिजली क्यू गुल कर दी जाती है जबकि कहा तो यही जाता है कि अब उन्नत तकनीकी है ,हल्की हवा बारिश में बिजली गुल नही होगी।
>त्रुटिपूर्ण बिल सुधरवाने गए कई लोगो के साथ बराबर सहयोग नही किया गया, साथ ही कुछ एक मामले में तो कर्मचारियों ने मिलकर शिकायत करने गए/बिल सुधरवाने गए उपभोक्ता के साथ मारपीट तक की गई है, पुलिस को बीच बचाव करने आना पड़ा है। ऐसा एक मामला अभी कुछ महीनो पहले ही हुआ था, जो कि तत्कालीन समय अखबारों की सुर्खियां बना था।
>अक्सर कार्यालय में अधिकारी नही मिलते, पूछने पर जवाब मिलता है कि फील्ड में है, जांच करने गए है जैसे उत्तर उपभोक्ता को थमा दिया जाता है।
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कार्यपालन यंत्री (शहर )बिजली विभाग रीवा कार्यालय में उपभोक्ता तरस जाते है पानी को, शेड नहीं होने के कारण धूप में खड़ी करते है गाडी, जिम्मेदार अधिकारी नही दे रहे ध्यान
पानी को तरसते बिजली ऑफिस में उपभोक्ता, जिम्मेदार अधिकारी नही देते ध्यान
बिजली विभाग कार्यलय की शोभा बने है मटके
रीवा: बात रीवा मुख्यालय अंतर्गत कार्यपालन यंत्री शहर संभाग रीवा कार्यालय की है जहा पर इतने बड़े विद्युत क्षेत्र में सैकड़ो उपभोक्ता प्रतिदिन कार्यालय आते है, लेकिन उनके लिए पीने के पानी की कोई समुचित व्यवस्था नही है। नतीजतन उपभोक्ता पानी के लिए इधर उधर भटकते नजर आते है। जब वहा पर मौजूद कर्मचारियो से पूछा गया तो बताया गया कि सामने घड़े में पानी है, लेकिन जब जाकर देखा गया तो तीनों घड़े खाली पड़े थे और उपभोक्ता पानी की तलाश में घूम रहे थे, लेकिन कही पानी नजर नही आया।
इस भीषण गर्मी में जब पानी के व्यवस्था के बारे में वहा के कर्मचारियो से पूछा गया तो कोई जाबाव देने को तैयार नही था।
जबकि उन्ही उपभोक्ताओं को विभाग के लापरवाही से भारी भरकम बिल भेज कर परेशान किया जाता है। जिस पर बिल सुधरवाने को वो कार्यालय का चक्कर काटते रहते है लेकिन कार्यालय में उनके लिए पानी तक की व्यावस्था नही है और जिम्मेदार अधिकारी अनजान और मूक दर्शक बने हुए है।
इसी तरह कार्यालय में कही शेड की व्यवस्था नहीं है, इसलिए लोग धुप में ही गाडी खड़ी करने को मजबूर है। जब उपभोक्ता कार्यालय में काम करवाकर निकलने को होते है तो दोपहिया वाहनों की सीट इतनी गर्म होती है कि बिना ठंडा किये सीट पर बैठ नहीं सकते नहीं तो फफोले पड़ सकते है। हलाकि एक नाम का शेड बना है पर वहा तो बमुशील बीस पच्चीस वाहन ही खड़े हो पाते है, जबकि कार्यालय में सैकड़ो की संख्या में लोग आते है। साथ ही उस शेड में पहले ही विभागीय कर्मचारी अपना अपना वाहन वाहन पार्क कर देते है।
उक्त दोनों समस्याओ पर जिम्मेवार अधिकारी कोई ध्यान नहीं दे रहे क्युकी उनके पास तो पीने को RO का ठंडा पानी है और आने जाने को AC युक्त वाहन…
ऐसी ही तमाम खामियां, विसंगतियां, कमियां उपभोक्ताओं द्वारा हमारी सर्वे कर रही टीम को बताई गई है, जिसको जानने के बाद, ये कहना और बात उठना तो लाजमी है कि, आखिर, “क्या रीवा बिजली विभाग के शहर कार्यपालन यंत्री (D.E. सिटी) शहर की बिजली व्यवस्था संभाल पाने में अक्षम साबित हो रहे है ???”
बहरहाल यह तो जांच और मूल्यांकन का विषय है, जिसकी जिमेवारी बनती है रीवा बिजली विभाग के आला अधिकारियों की, वो क्या करते है और क्या नहीं, यह तो वो ही जाने…
अक्सर प्रदेश के मुखिया और विभाग के जिम्मेवार अधिकारी कहते नही थकते कि प्रदेश में बिजली सरप्लस है, दूसरे राज्यों को सस्ती कीमत में बेंच रहे है और अगर यह सच है तो फिर अघोषित कटौती क्यू कि जा रही है, साथ ही दूसरे राज्यों, संस्थाओं को सस्ती बिजली दी जा रही और प्रदेशवासियों को महगी बिजली, ये तो वही हाल हुआ कि अपनो पे सितम और गैरो पर करम !
बहरहाल यह बातें हम नही बल्कि वो उपभोक्ता खुद ब खुद कह रहे है जो इन दिनों अघोषित बिजली कटौती एवं अन्य बिजली समस्याओ से हैरान परेशान त्रस्त हो चुके है। सभी की एक ही मांग है कि जल्द से जल्द व्यवस्था सुधारी जाए क्युकी गाढ़ी कमाई के जरिए उपभोक्ता हर महीने इतनी महंगी बिजली के भारी भरकम बिल जमा करते है और अगर इतना करने के बाद भी बिजली विभाग वह सहूलियते और फायदे नही देगा जिसका कि विभाग और प्रदेश के मुखिया वादा करते है तो यह तो बिजली उपभोक्ताओं के साथ घोर अन्याय होगा। उनकी गाढ़ी कमाई का अपमान और अपव्यय समान होगा।
बहरहाल देखने वाली बात यह होगी कि आने वाले दिनों में बिजली विभाग प्रदत्त बिजली व्यवस्था में कुछ सुधार ला पाता है या फिर हमेशा की तरह नतीजा वही ‘ढाक के तीन पात’ ही निकलता है !!!…