मुस्लिम लड़की को संस्कृत पढ़ने से रोका तो इसी बात पर कर डाली PhD! मिलिए डॉ.तबस्सुम सैयद से

वो आर्टस एंड कॉमर्स कॉलेज में दूसरे सब्जेक्ट में एडमिशन लेने गई थी लेकिन वहां संस्कृत टीचर की बात बुरी लगी। संस्कृत टीचर ने कहा कि मुस्लिम लड़कियां संस्कृत नहीं पढ़ सकती हैं…इसके बाद उसने तय कर लिया कि अब आगे की पढ़ाई संस्कृत में ही करूंगी। एमए, एमफिल करने के बाद संस्कृत में पीएचडी भी की। आज वे सालों से मुस्लिम बच्चों को संस्कृत पढ़ा रही हैं। मैडम से संस्कृत पढ़ने के लिए बच्चे उर्दू के स्थान पर संस्कृत सब्जेक्ट को चुन लेते हैं।

हम बात कर रहे हैं संस्कृत में पीएचडी करने वाली इंदौर की डॉ.तबस्सुम सैयद की। उन्होंने संस्कृत को करियर के तौर पर चुना…। शुरुआत में पढ़ने में परेशानी भी हुई लेकिन बाद में चीजे आसान होती चली गई। 15-20 सालों से डॉ.तबस्सुम बच्चों को संस्कृत पढ़ा रही हैं। मुस्लिम सहित हिन्दू समाज के बच्चे उनके स्टूडेंट्स है। टीचर्स डे पर जानिए संस्कृत टीचर पीएचडी होल्डर डॉ.तबस्सुम की कहानी, उन्हीं की जुबानी…।

पहले जान लीजिए उनके स्कूल के बारे में जहां वे पढ़ाती हैं

इस्लामिया करीमिया सोसाइटी के द्वारा शहर में विभिन्न स्थानों पर छात्र और छात्राओं के लिए स्कूलों का संचालन किया जाता है। स्कूल में सभी समाज के स्टूडेंट्स पढ़ते हैं। लेकिन ज्यादा संख्या मुस्लिम समाज के स्टूडेंट्स की है। डॉ.तबस्सुम सैयद पलासिया स्थित सेंट उमर स्कूल में पढ़ाती हैं। स्कूल दो शिफ्ट में लगता है।

सुबह की शिफ्ट में छात्राएं और दोपहर की शिफ्ट में छात्रों को पढ़ाया जाता है। शासन के नियमानुसार स्कूलों में कक्षा 6 से 10 तक थर्ड सब्जेक्ट के तौर पर बच्चों को उर्दू या संस्कृत सब्जेक्ट लेना होता है। यहां स्कूल में मुस्लिम बच्चे भी उर्दू की जगह संस्कृत पढ़ना पसंद करते हैं।

डॉ.तबस्सुम मैडम बच्चों को स्कूल में संस्कृत पढ़ाती हैं, हालांकि बच्चों की संख्या कम है, ज्यादातर बच्चे उर्दू सब्जेक्ट को चुनते हैं। लेकिन जिन बच्चों ने भी संस्कृत सब्जेक्ट को चुना वे मुस्लिम बच्चे भी आज बिना अटके एक सांस में संस्कृत के श्लोक बोलते हैं। डॉ.तबस्सुम से संस्कृत पढ़ने के लिए कई स्टूडेंट्स उर्दू के स्थान पर संस्कृत का ऑप्शन तक चुनते हैं।

सेंट उमर स्कूल के प्रिंसिपल बताते हैं कि दोनों पाली (गर्ल्स और ब्वॉयज) मिलाकर करीब 35 स्टूडेंट्स संस्कृत पढ़ने वाले होंगे। इसमें मुस्लिम और नॉन मुस्लिम दोनों शामिल हैं। जो बच्चे दूसरे स्कूल से यहां एडमिशन लेने आते हैं वो संस्कृत को चुनते हैं या फिर जिन्हें उर्दू नहीं पढ़ना होती है वे स्टूडेंट्स संस्कृत पढ़ते हैं।

डिसीजन तो ले लिया लेकिन संस्कृत का कोर्स सामने आया तो कुछ नहीं सूझा

मैंने बीकॉम किया था। उसके बाद में पोस्ट ग्रेजुएशन में एडमिशन के लिए साल 2003 में इंदौर के आर्टस एंड कॉमर्स कॉलेज गई। वहां में एमकॉम करने के लिए गई थी। वहां पर संस्कृत की जो टीचर थी, उनकी बात मुझे बहुत बुरी लगी, उन्होंने कहा कि मुस्लिम लड़कियां संस्कृत नहीं पढ़ सकती हैं, उन्हें लगा था कि मैं संस्कृत पढ़ने आई हूं। फिर मैंने सोचा की मैं संस्कृत क्यों नहीं पढ़ सकती हूं। इसके बाद अगले दिन मैंने एमकॉम की बजाए एमए संस्कृत में एडमिशन लिया।

अब डिसीजन तो ले लिया था, लेकिन पढ़ने में बहुत तकलीफ आई क्योंकि स्कूल के टाईम पर मैंने 10वीं तक जरूर संस्कृत पढ़ी थी। लेकिन कभी सोचा नहीं था कि संस्कृत में पोस्ट ग्रेजुएशन करूंगी और कॉलेज में संस्कृत पढ़ना पड़ेगी। कक्षा 10वीं के बाद गेप भी लंबा हो गया था। कॉलेज में संस्कृत का कोर्स सामने आया तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।

कॉमर्स से सीधे संस्कृत पढ़ रही थी। फिर मैं खंडवा रोड स्थित यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में जाने लगी, वहां जाकर 5-5 घंटे सेल्फी स्टडी की। घंटों संस्कृत को समझने के लिए वहां बिताया करती थी। बाद में जब समझ आने लगा तो संस्कृत आसान हो गई। इसके बाद फिर आगे की पढ़ाई भी संस्कृत में ही की।

संस्कृत में एमफिल किया और पीएचडी की। साल 2008 में मुझे पीएचडी अवार्ड हो गई थी, तब में पहली मुस्लिम महिला थी, जिसने संस्कृत में पीएचडी की थी। पीएचडी के लेवल तक संस्कृत हमारे समाज में किसी ने नहीं पढ़ी। खासकर महिलाओं ने तो बिल्कुल भी नहीं।

मेरे स्कूल में मुझ से संस्कृत पढ़ने के लिए बच्चे उर्दू पढ़ना छोड़ देते हैं

एमए संस्कृत में एडमिशन लेने के साथ ही पढ़ाने का भी सिलसिला शुरू हो गया था। मैं संस्कृत पढ़ाने लगी थी। मुस्लिम बच्चों को भी मैं स्कूल में संस्कृत पढ़ाती हूं। मुस्लिम हो या नॉन मुस्लिम बच्चे हो उन्हें ग्रामर अच्छे से पढ़ाई जाए, एक्सप्लेन अच्छे से किया जाए, किस शब्द का क्या मतलब होता है तो वो जल्दी से समझ जाते हैं।

ज्यादा डीप में अगर बच्चों को ले जाओ तो सब कुछ सिर पर से चला जाता है। अगर ग्रामर अच्छे से समझा दी तो उन्हें पूरी संस्कृत समझ में आ जाती है। सेंट उमर स्कूल में तो बच्चे मुझ से संस्कृत पढ़ने के लिए उर्दू पढ़ना छोड़ देते हैं। तबस्सुम मैडम पढ़ाएंगे इसलिए उन्हीं से संस्कृत पढ़ेंगे, ऐसा सेंटर उमर स्कूल में होता है।

बच्चे अपनी मर्जी से उर्दू पढ़ना छोड़ संस्कृत सब्जेक्ट ले लेते हैं, हालांकि जो बच्चे दूसरे स्कूल से आते हैं, वो पहले से ही संस्कृत पढ़े हुए रहते हैं ।ऐसे में थर्ड लेंग्वेज उर्दू के स्थान पर वो संस्कृत को ही चुनते हैं। मुस्लिम या नॉन मुस्लिम सभी बच्चों को आज स्कूल में संस्कृत के श्लोक कंठस्थ हैं।

पिता ने भी संस्कृत पढ़ने में सपोर्ट किया

मेरे पिता पेशे से डॉक्टर हैं, उन्हें जब पता चला कि मैंने संस्कृत में एमए करने का डिसीजन लिया है तो उन्होंने भी मुझे बहुत सपोर्ट किया। उन्होंने यही कहा कि पढ़ाई आपको करनी है, जो पढ़ना है मन लगाकर पढ़ो। जिसमें रूचि है, वो करिए। पिता की तरफ से कभी भी फोर्स नहीं किया गया कि आपको ये ही पढ़ना है या ऐसा ही करना है।

उन्होंने हमेशा सपोर्ट किया। राऊ क्षेत्र में आर्य समाजजनों ने मुझे सम्मानित भी किया था, क्योंकि संस्कृत में इतनी पढ़ाई करने वाली मैं क्षेत्र में अकेली लड़की थी। सबसे परिचय भी कराते थे। संस्कृत में उच्च शिक्षा लेने के अपने फैसले को लेकर मुझे कभी भी बाद में अफसोस नहीं हुआ। आज सैकड़ों-हजारों बच्चों को मैं संस्कृत पढ़ा चुकी हूं।

30 साल पहले उपाध्याय सर ने पढ़ाई थी संस्कृत आज भी याद है

इस्लामिया करीमिया सोसाइटी के अलानूर मुल्तानी ने बताया कि मेरा संस्कृत पढ़ने का अनुभव बहुत ही अच्छा रहा था। मेरी संस्कृत पढ़ने की शुरुआत न्यू दिगंबर पब्लिक स्कूल में हुई थी। वहां संस्कृत पढ़ना कंपलसरी था। उसके बाद मैंने 8वीं क्लास में सेंट उमर स्कूल में एडमिशन ले लिया था।

यहां मेरे पास उर्दू सब्जेक्ट लेने का ऑप्शन था। लेकिन मैंने संस्कृत सब्जेक्ट ही लिया। ये साल 1988-89 के आसपास की बात है। तब उपाध्याय सर स्कूल में संस्कृत पढ़ाते थे, वो हाथ में छड़ी रखते थे। हमें श्लोक याद करना रहता था। वो पूछते भी थे तो हम तुरंत उन्हें संस्कृत में श्लोक सुना देते थे।

मुझे अभी भी वो श्लोक याद हैं। श्लोक का अर्थ भी हम दूसरों को बताते थे। 12वीं के बाद संस्कृत की पढ़ाई तो छूट गई, लेकिन संस्कृत वाले उपाध्याय सर की यादें अभी भी ताजा हैं। संस्कृत बहुत ही अच्छी लेंग्वेज है, इसमें जीवन की फिलॉसफी छुपी है। ऐस बहुत सारे श्लोक और सूत्र है, जिन्हें अगर जीवन में उतारें तो बहुत नॉलेज मिलता है।

जानिए सेंट उमर में पढ़ने वाले 9वीं के छात्र ने क्या कहा

मेरा नाम कृष्ण यादव है मैं सेंट उमर स्कूल में 9वीं क्लास में पढ़ता हूं। संस्कृत पढ़ने में कुछ दिक्कत नहीं आती है। संस्कृत के वर्ड लंबे होते हैं तो बच्चे उन्हें पढ़ने में कन्फ्यूज हो जाते हैं। संस्कृत शांति और धैर्य से पढ़ा जाता है। संस्कृत जैसा कोई सब्जेक्ट नहीं है।

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