माँ पार्वती के अपहरण से जुड़ा है इस व्रत का नाता, पढ़िए धार्मिक ग्रंथ क्या कहते हैं
सनातन धर्म में तीज के व्रत का बड़ा अधिक महत्व माना जाता है. कजरी और हरियाली तीज के बाद अब सनातन धर्म की महिलाएं हरतालिका तीज के व्रत की तैयारी शुरू कर दी है. यह व्रत भी अन्य दोनों व्रत के समान ही महत्व रखता है. हिंदू पंचांग के मुताबिक भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विधि-विधान पूर्वक पूजा आराधना की जाती है.
हरतालिका तीज का पर्व हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. इस साल यह पर्व 18 सितंबर को मनाया जाएगा. हरियाली तीज और हरितालिका तीज में लगभग 1 महीने का अंतर रहता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शंकर को अपना पति मानकर हरतालिका तीज का व्रत रखा था. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार एक बार भगवान शिव की तपस्या में लीन पार्वती को देखकर उनकी सहेलियों ने उनका हरण करके उन्हें गहरे जंगलों में ले गई. हरित का अर्थ है हरण करना और तालिका का अर्थ होता है सखी इसलिए इस व्रत को हरतालिका तीज के नाम से जाना जाता है.
हरितालिका तीज पर भगवान शंकर ने दिया था वरदान :
अयोध्या की प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित कल्कि राम बताते हैं कि हरतालिका तीज का व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने किया था. माता पार्वती ने भगवान शिव की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा आराधना की थी. जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन दिया. इसके बाद माता पार्वती को विवाह करने का वचन भी दिया. हरितालिका तीज का व्रत करने से सभी प्रकार की मनोकामना यथा शीघ्र पूर्ण भी हो जाती है.
जानिए क्या है महत्व :
हरतालिका तीज का व्रत करने से जातक के सभी मनोकामना पूर्ण होते हैं. इस दिन विवाहित महिलाएं अपनी पति की लंबी दीर्घायु की कामना के लिए व्रत रखती हैं तो वही कुंवारी कन्याएं यह व्रत सुयोग्य पति के लिए करती हैं.
(नोट: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष के अनुसार है, विराट 24 न्यूज़ नेटवर्क इसकी पुष्टि नहीं करता है। )