बॉलीवुड: गुलजार और राखी क्यों हुए थे अलग ? गुलजार यूँ नहीं है गुलजार…

बॉलीवुड: गुलजार और राखी क्यों हुए थे अलग ? गुलजार यूँ नहीं है गुलजार…

गुलजार और राखी बॉलीवुड की दो नामचीन हस्तिया। गुलजार और राखी कभी एक शानदार कपल थे पर फिर क्या हुआ जो दोनों की राहे अलग अलग हो गयी. इस लेख में हम आपको यही बताने वाले है.

गीतकार, लेखक और फ़िल्म निर्देशक गुलज़ार :
जब वह गाने लिखने बैठते हैं तो पहला ही गाना लिखते हैं- मोरा गोरा अंग लइ ले, मोहे श्याम रंग दे दई…जिस बॉलीवुड की दुनिया में गोरे रंग की चमक-दमक कुछ ज़्यादा ही हो वहां पहले ही गाने में श्याम रंग की चाहत.

स्क्रीन प्ले लिखते हैं तो आनंद जैसी फ़िल्म…जिसका नायक हंसते-हंसते पल-पल क़रीब आती मौत के लिए तैयार नज़र आता है. फ़िल्म बनाते हैं तो वो ‘आंधी’ और ‘मौसम’ की शक्ल में सामने आते हैं, जहां संवेदनाओं का ज्वार अपने चरम पर नज़र आता है.

टीवी सीरियल की बात होती है तो मिर्ज़ा ग़ालिब का शाहकार सामने आता है. मिर्ज़ा ग़ालिब टीवी धारावाहिक की हैसियत कुछ वैसी है जैसे बड़े पर्दे पर मुग़ले-आज़म की मान लीजिए. बच्चों के लिए लिखा तो जंगल जंगल बात चली है, पता चला है, चड्डी पहनकर फूल खिला है.

छोड़ आए हम वो गलियां :
इन सबके बीच वक़्त निकाल कर शायरी, कविताई और क़िस्सागोई में गुलज़ार अपनी चमक बिखेरते रहे. अपने आप में यह चमत्कार ही है कि अपनी तमाम रचनात्मकता का इस्तेमाल गुलज़ार एक माध्यम से दूसरे माध्यम में बख़ूबी कर लेते हैं.

माचिस के बाद गुलज़ार ने फ़िल्म निर्देशन को अलविदा कह दिया. गीत लिखने लगे. तो कुछ ही सालों में स्लमडॉग मिलेनियर के लिए ऑस्कर जीत लिया. ‘बीड़ी जलइले’ से लेकर ‘दिल तो बच्चा है जी’ में गुलज़ार कुछ ज़्यादा प्रयोग करते नज़र आए और इसमें ख़ासे कामयाब रहे.

गुलज़ार उम्र के आख़िरी पड़ाव में हैं तो इन दिनों अपनी तबियत का काम कर रहे हैं. कविताएं लिख रहे हैं, रविंद्रनाथ टैगोर की कविताओं का अनुवाद कर रहे हैं. चार दशक पहले अपनी बेटी बोस्की यानी मेघना के लिए बोस्की का पंचतंत्र लिखा था, और तो और इसके बाद अपने नाती समय के लिए नए सिरे से पंचतंत्र लिखा.

गुलज़ार के पूरे जीवन में ये साफ़ नज़र आता है कि समय के साथ वे खुद को बदलते रहे. उनका फोकस कभी डगमगाता नहीं दिखा, वह भी तब जब उनके अपने जीवन में ‘आंधी’ आ गई थी.

दरअसल, आज से यही कोई 50 साल पहले 18 अप्रैल, 1973 को गुलज़ार और राखी ने आपस में प्रेम विवाह किया था. इस शादी में उस वक़्त की भारतीय सिनेमाई दुनिया के तमाम दिग्गज़ शरीक़ हुए थे.

गुलज़ार की बेटी और फ़िल्मकार मेघना गुलज़ार ने अपने पिता के जीवन पर किताब लिखी है, ‘बिकाउज ही इज…’. इसमें मेघना ने बताया है कि किस तरह से सुनील दत्त राखी के भाई बने थे और एसडी बर्मन और जीपी सिप्पी परिवार की देखरेख में ये शादी संपन्न हुई थी. मेघना ने, मां राखी और पिता गुलज़ार दोनों की 1968 में हुई पहली मुलाक़ात से लेकर अलग होने तक का विवरण लिखा है.

दिलचस्प ये है कि पांच साल की कोर्टशिप के बाद हुई शादी महज एक साल ही चल पायी और 1974 में राखी और गुलज़ार दोनों की राहें अलग हो गईं. लेकिन इसके बाद के 49 सालों में दोनों ने एक दूसरे का ऐसा साथ निभाया है कि पता ही नहीं चलता कि दोनों अलग-अलग रह रहे हैं.

अलग- अलग होने के करीब 45 साल बाद अगस्त 2020 में एक इंटरव्यू में राखी ने कहा, “हम दोनों को अलग अलग रह रहे बेस्ट कपल का अवॉर्ड मिलना चाहिए. हम लोग अधिकांश शादीशुदा जोड़े से कहीं अधिक तालमेल बिठाकर रहते आए हैं. गुलज़ार और मैं, एक दूसरे के लिए हमेशा उपलब्ध हैं.”

“वह तो मुझे अब भी अपनी पत्नी के तौर पर ही ट्रीट करते हैं. जैसे कि उनका फ़ोन आता है कि मैंने डिनर के लिए दोस्तों को खाने पर बुलाया है और खाने को कुछ भी नहीं है. जल्दी से झिंगा कढ़ी भिजवा दो और मैं जल्दी से करती हूं. उनकी पसंद की खीर बनाकर भेजती हूं. यह सब मुझे पसंद है.”

दूसरी तरफ़ बेटी की किताब के विमोचन के मौक़े पर गुलज़ार ने याद करते हुए कहा था, “जब हमारा प्रेम प्रसंग शुरु हुआ था तब मैं उन्हें तोहफ़े में साड़ियां दिया करता था. ऐसा करते हुए मुझे साड़ियों की पहचान हो गई थी. मैं उन्हें सबसे बेहतरीन साड़ियां गिफ़्ट करता था और आज भी करता रहता हूं.”

ऐसे में मेघना के जन्म के एक साल के बाद दोनों अलग क्यों हुए, मेघना ने इसका विवरण तो नहीं लिखा है लेकिन यह ज़रूर बताया है कि राखी फ़िल्मों में काम करना चाहती थीं और गुलज़ार को लगता था कि मां बनने के बाद फ़िल्मों में काम करना ठीक नहीं होगा.

आंधी फ़िल्म की शूटिंग के दौरान ही दोनों के बीच इस बात को लेकर काफ़ी झगड़ा हो गया वो भी तब जब यश चोपड़ा ने राखी के सामने कभी-कभी में काम करने का ऑफ़र रखा. गुलज़ार के मना करने के बाद भी राखी ने जब फ़िल्म साइन कर ली तो दोनों के रास्ते अलग हो गए.

लेकिन प्यार बना रहा और मेघना बताती हैं कि मेरी मां राखी ने पनवेल में उसी जगह फॉर्म हाउस ख़रीदा जहां पर वह गुलज़ार से पहली बार मिली थीं. अच्छी बात यह रही है कि दोनों, गुलज़ार और राखी ने अलग-अलग रहने के बाद भी इसका असर अपनी बेटी पर नहीं पड़ने दिया और ना ही दोनों अपने पेशेवर काम में ही डगमगाए.

गुलजार की दिनचर्या :
इस मुक़ाम पर भी गुलज़ार के लिए कुछ चीज़ें आज भी नहीं बदली हैं. मुंबई में रहने के बाद भी गुलज़ार तड़के पाँच बजे उठ जाते हैं. कहते हैं सूर्य उन्हें जगाए उससे पहले वो सूर्य को जगाना चाहते हैं.
उठने के बाद रोज़ाना बांद्रा के जिमख़ाना क्लब में टेनिस खेले बिना गुलज़ार का दिन शुरू ही नहीं होता. टीवी पर टेनिस और क्रिकेट का मैच आ रहा हो तो गुलज़ार कोई दूसरा काम नहीं करते.
वो रॉजर फ़ेडरर, आंद्रे आगासी और जान मैकनेरो जैसे सितारों के फ़ैन रहे हैं. वहीं क्रिकेट के मैदान में वे सुनील गावस्कर और वसीम अकरम के मुरीद रहे हैं. क्रिकेट से गुलज़ार का लगाव इतना गहरा है कि वे अपने सपने में कई बार ख़ुद को क्रिकेट खेलते देखते हैं.
इन ख़ासियतों के अलावा सार्वजनिक जीवन में गुलज़ार के व्यक्तित्व के अहम पहलू और भी हैं. वे हमेशा सफ़ेद कपड़ों में ही दिखाई देते हैं.
ऐसा क्यों हैं, इसके जवाब में गुलज़ार ने नसरीन मुन्नी कबीर को दिए एक साक्षात्कार में बताया है कि ‘जब वे किसी दूसरे रंग के कपड़े पहन लेते हैं तो लगता है कि कोई अजनबी आकर उनके कंधे पर बैठ गया है.’ दरअसल एक जैसे कपड़ों को पहनने की अदा को भी उन्होंने गुलज़ार टाइप कर दिया है.

उर्दू में लिखते है और ग़ालिब के है बड़े प्रशंसक :
इसके अलावा वो हमेशा उर्दू में ही लिखते हैं. दरअसल इसकी बड़ी व्यवहारिक समझ है कि उर्दू में लिखे होने से उनके गीत, स्क्रिप्ट को पढ़ने वाले कम लोग मिलते हैं, तो गुलज़ार का आइडिया मारना संभव ही नहीं होता.

हालांकि ये बात और है कि ख़ुद गुलज़ार पर दूसरों के नक़ल के आरोप भी ख़ूब लगे. चाहे वो ‘इब्ने बतूता, पहनके जूता’ वाला गाना रहा हो या फिर ‘ससुराल गेंदा फूल’. ग़ालिब के शेरों का तो गुलज़ार इतना इस्तेमाल कर चुके हैं कि, ख़ुद ही कहते हैं कि वो ग़ालिब के नाम की पेंशन खा रहे हैं जो ख़ुद ग़ालिब नहीं ले पाए.

गुलज़ार ने लिखा है कि ‘ग़ालिब का उधार लेना और उधार न चुका सकने के लिए बहाने तलाशना, फिर अपनी ख़फ़्ती का इज़हार करना जज़्बाती तौर पर मुझे ग़ालिब के क़रीब ले जाता है.’ हालांकि बार-बार उन्होंने ये साबित किया है कि वे नक़ल करने में भी ख़ूब कामयाब रहे.

तेज रफ्तार कार चलाना है पसंद :
गुलज़ार की शख़्सियत में एक ख़ास बात और है. शांत और सौम्य नज़र आने वाले गुलज़ार को तेज़ रफ़्तार से कार चलाने की आदत है और इसके लिए वे जब-तब गाड़ी लेकर लॉन्ग ड्राइव पर निकल जाते हैं. इन तमाम तरह की कामयाबी के पीछे गुलज़ार की यात्राओं का बड़ा योगदान रहा है. वे फ़िल्म जगत के गिने चुने लोगों में होंगे कि भारत का का कोना कोना, कार चलाकर घूम आए हों. सालों तक अंग्रेज़ी नहीं बोलना पड़े, इसके लिए वे विदेश जाने से बचते रहे, लेकिन जब दुनिया देखने समझने की इच्छा हुई तो पजामे और कुर्ते में ही दुनिया के दूसरे देशों को भी देख लिया.

लेकिन गुलज़ार हम सबके महबूब हैं तो अपनी गीतों के लिए, अपनी फ़िल्मों के लिए. अपनी शायरी और कविताओं के लिए. अपनी कहानियों के लिए. अपनी ज़िंदादिली के लिए. उनके सिनेमाई योगदान के लिए सबसे बड़ा सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार तो गुलज़ार को मिल चुका है.

साहित्य की दुनिया में उनका आना जाना होता रहा है, लेकिन अब ज़रूरत इस बात की है कि साहित्य की दुनिया सिनेमाई लेखन से अलग विभिन्न विधाओं में गुलज़ार के लेखन को गंभीरता से ले.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *