प्रधानमंत्री जी! क्या आपको मप्र की पंचायती व्यवस्था की स्थिति का अंदाजा है?, पढ़िए व्यापक पंचायती भ्रष्टाचार को उजागर करती जागृत खबर को…

प्रधानमंत्री जी! आपने पंचायतीराज दिवस मनाने के लिए रीवा को तो चुना लेकिन क्या आपको मप्र की पंचायती व्यवस्था की स्थिति का अंदाजा है? _शिवानंद द्विवेदी

व्यापक पंचायती भ्रष्टाचार के बीच पंचायतीराज दिवस का कोई औचित्य नहीं!

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मप्र में आगामी 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायतीराज दिवस के उपलक्ष्य पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाने के लिए विंध्य क्षेत्र के रीवा जिले में आ रहे हैं। पर शायद प्रधानमंत्री को यह नहीं पता होगा कि जहां वह पंचायती राज दिवस मनाने आ रहे हैं वहां के ग्रामों की हकीकत तो कुछ और ही है।

सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री द्वारा देश के ग्राम और ग्राम पंचायतों की स्थिति का सबसे पहले जायजा लिया जाना चाहिए की आखिर उनके कार्यकाल के दौरान क्या प्रगति हुई है। ग्राम पंचायतों में विकास के लिए आने वाली राशि का किस हद तक बंदरबांट किया जा रहा है और कैसे सरकारी खजाने में चूना लगाया जा रहा है उसका जीता जागता उदाहरण मध्यप्रदेश में ही देखने को मिलेगा।

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मध्य प्रदेश की 23 हजार 900 से अधिक ग्राम पंचायतों में 13वें, 14वें और 15वें वित्त आयोग की राशि से लेकर मनरेगा और अन्य निधियों से प्राप्त होने वाली राशि का जिम्मेदारों और माफिया किस्म के लोगों द्वारा निजी हित में उपयोग करते हुए पंचायती विकास कार्यों का जनाजा निकाला जा रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के 8 दशक पूरे होने को हैं और अभी भी मूलभूत सुविधाएं जैसे पानी, सड़क, बिजली, स्कूल शिक्षा जैसे कई क्षेत्रों में विकास अभी भी मात्र सपने ही बने हुए हैं।

अब जबकि गर्मी का मौसम है ऐसे में घटता जल स्तर, शासकीय पानी के स्रोतों पर बेजा अतिक्रमण, तालाबों का विलुप्त होना, बाणसागर परियोजना से जुड़ी नहरों का समय पर पूरा न हो पाना और विधायक-सांसद निधियों के नलकूपों और पेयजल व्यवस्था का निजी हित में घर और आंगन में उपयोग किया जाना यह सब आम बात है।

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अब ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री कैसे पंचायती राज दिवस विंध्य क्षेत्र में मना रहे हैं यह बड़े ताज्जुब की बात है? क्या प्रधानमंत्री ने अपनी एजेंसियों से इसका पता नही लगाया की आखिर लोग वर्तमान पंचायती सिस्टम से क्यों परेशान हैं? समस्याओं और भ्रष्टाचार से पीड़ित लोगों का मध्य प्रदेश की ग्राम पंचायतों से होते हुए जिला स्तर, प्रदेश स्तर और यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय तक शिकायतों का अंबार लगा हुआ है लेकिन ग्रामीणों की समस्याओं का कोई समाधान नहीं हो पा रहा है।

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प्रधानमंत्री की आस में शिकायत करने वाले लोगों को मायूसी तब होती है जब पीएमओ की शिकायत को सीएम हेल्पलाइन से जोड़ दिया जाता है। और सीएम हेल्पलाइन की बदतर स्थिति किसी से छुपी नहीं है। ऐसे में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाए जाने का कोई औचित्य नहीं बनता? सही मायने में तो ऐसे पीड़ित और प्रताड़ित लोग जो अभी भी मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित हैं और उनकी सुनवाई नहीं हो रही है उन्हें राष्ट्रीय पंचायतीराज दिवस ढोंग जैसे आयोजनों का बहिष्कार करना चाहिए।

भारत के प्रधानमंत्री को यह ज्ञात होना चाहिए कि आखिर सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में आमजन की क्या समस्याएं हैं और इनका निराकरण क्यों नहीं हो पा रहा है? जिस जल जीवन मिशन और बाणसागर परियोजना का वह नए सिरे से शिलान्यास करने के लिए आ रहे हैं उस योजना को ही देख लिया जाए तो बाणसागर घोटाला किसी से छुपा नहीं है जिसमे ईओडब्ल्यू में एफआईआर तक दर्ज है जबकि एक मामले में अभी हाल ही में लोकायुक्त में 14 साल बाद चीफ इंजीनियर सहित कई अधिकारियों पर भी मामला पंजीबद्ध किया गया है। नल जल की स्थिति सबने देखी ही है अब अरबों खरबों रुपए खर्च कर जल जीवन मिशन भी मात्र कागजों पर संचालित हो रहा है और पाइप खोदकर डाल दी गई हैं और लोगों में पानी नसीब नहीं हो रहा है।

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  अब यदि मध्यप्रदेश को ही लिया जाए तो 14 वें वित्त आयोग की परफॉर्मेंस ग्रांट की लगभग 300 करोड रुपए की कराधान योजना की राशि 1148 पंचायतों के सीधे एकल खाते में 28 अगस्त 2019 को अंतरित की गई थी लेकिन उस राशि का किस प्रकार से बंदरबांट किया गया और कैसे जिम्मेदारों के द्वारा अपने निजी हित में उपयोग करते हुए पंचायतों के साथ गद्दारी और धोखा किया गयाI इसका उदाहरण रीवा जिले में ही मिलेगा जहां 75 ग्राम पंचायतों में व्यापक स्तर के कराधान घोटाले में कुछ आरोपी अभी भी जेल में है और कुछ जांचों को तो अभी भी  दबाया जा रहा है।

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क्या भारत के प्रधानमंत्री इस प्रकार के मामलों पर भी रुचि लेंगे? भारत के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाने के लिए आ रहे हैं तो उन्हें यह देखना चाहिए की यहां क्षेत्र के लोगों की ग्रास रूट और पंचायत स्तर पर क्या-क्या समस्याएं हैं?

जब तक लोगों की वास्तविक समस्याओं को नहीं समझा जाएगा और उनका समाधान नहीं किया जाएगा तब तक इस प्रकार के आयोजन मात्र वाहवाही लूटने और वोट बैंक बनाने तक ही सीमित रह जाएंगे और ऊपर से टैक्सपेयर पर ऐसे प्रोपोगंडा से अतिरिक्त खर्च का बोझ उनके ऊपर बढ़ेगा और ऐसे आयोजनों में अरबों खरबों रुपए का जो व्यय होगा वह भी आम जनता के ही मत्थे जायेगा। 

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