‘एस एन गुप्ता’…यह नाम आज किसी परिचय का मोहताज नही है, पेशे से सिविल अभियंता(सेवानिवृत्त)हालाकि वकील,अभियंता, डाक्टर…ये कभी रिटायर्ड नही होते बल्कि काम से कुछ क्षणों के लिए अवकाश जरूर ले लेते हैं।
गुप्ता जी अभियंता के अलावा भी एक सशक्त पहचान रखते हैं और वह पहचान है उनकी एक लेखक, एक कवि के रूप में। अब तक सैकड़ों कविताओं की रचना वो कर चुके है, उनकी कई पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है, दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे पुस्तक मेले में उनकी किताबें सजाई जाती हैं, साथ ही पुरस्कारों की बात करें, तो अब तक, writers of the day, दिवस विशेष रचनाकार सम्मान कनाडा, इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड्स (award for original works) जैसे विख्यात पुरस्कारों से नवाजे जा चुके है। उनकी सैकड़ों कविताएं अलग अलग समाचारपत्रों, पत्रिकाओं में छपते रहे है। उसी कड़ी में आज हम पाठको को एस एन गुप्ता जी की एक मन को मुग्ध कर देने वाली कविता का रसपान कराने जा रहे हैI आप सभी इस कविता ‘समय के पार’ (शीर्षक) को पढ़िए और आनंदित होइए…
दिवस विशेष रचनाकार… एस एन गुप्ता
समय के पार (कविता)
मानस की सोंधी माटी पर लिखा हुआ है गीत यहाँ
हर पल क्षण गूंजा करता है जीवन का संगीत यहाँ
मन की गठरी में बांधीं थीं सपनो की कुछ सौगातें
न जाने कब बिखर गईं सब शेष रहीं बोझिल बातें
कभी पलों में हार छुपी थी कभी ज़िन्दगी जीते थी
स्नेह दीप संग जलता रहता रात भी यूँ ही बीते थी
लौट लौटकर आ जाते सब यादों के गलियारों में
बची हुई उम्र तड़पती रहती भवसागर के छोरों में
जलते बुझते लम्हों में कभी तिमिर घना छा जाता था
घने बादलों के पीछे से भी सूर्य निकल ही आता था
जाने क्या कुछ छूट गया है दूर समय के पार कहीं
कहीं सुनहरी धूप छूट गई थकी हुई सी साँझ कहीं