दिवस विशेष रचनाकार🖊…इंजिनियर एस एन गुप्ता

दिवस विशेष रचनाकार🖊…इंजिनियर एस एन गुप्ता


एस एन गुप्ता’…यह नाम आज किसी परिचय का मोहताज नही है, पेशे से सिविल अभियंता(सेवानिवृत्त)हालाकि वकील,अभियंता, डाक्टर…ये कभी रिटायर्ड नही होते बल्कि काम से कुछ क्षणों के लिए अवकाश जरूर ले लेते हैं।

गुप्ता जी अभियंता के अलावा भी एक सशक्त पहचान रखते हैं और वह पहचान है उनकी एक लेखक, एक कवि के रूप में। अब तक सैकड़ों कविताओं की रचना वो कर चुके है, उनकी कई पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है, दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे पुस्तक मेले में उनकी किताबें सजाई जाती हैं, साथ ही पुरस्कारों की बात करें, तो अब तक, writers of the day, दिवस विशेष रचनाकार सम्मान कनाडा, इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड्स (award for original works) जैसे विख्यात पुरस्कारों से नवाजे जा चुके है। उनकी सैकड़ों कविताएं अलग अलग समाचारपत्रों, पत्रिकाओं में छपते रहे है।

उसी कड़ी में आज हम पाठको को एस एन गुप्ता जी की मन को मुग्ध कर देने वाली कविता का रसपान कराने जा रहे हैI

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  • कविता…तकनीक का युग

तकनीक का युग साथ चलने लगा
जिंदगी को नित नए अर्थ देने लगा

बहुत आसान सी राह लगने लगी है
बातें तस्वीर भी खूब करने लगीं है

आज रिश्तों के धागे उधड़ने लगे हैं
होंठों में शब्द बंद हो तरसने लगे हैं

ये सच है दूरियां सिमट सी गई हैं
किन्तु दूरियां दिलों में बढ़ गई हैं

मिलन की ख़ुशी गुम हो गई ढूंढ लें
‘नेट’ में ही फंस गई है हंसी देख लें

कहाँ वो जायके कहाँ शामे महफ़िल
कम्प्यूटरों में ही अब धड़कते हैं दिल

वो फूलों के गज़रे तो मुरझा चुके हैं
‘डियो’ की महक में जले जा चुके हैं

माटी के सकोरों की खुशबू नहीं है
‘बॉन चाइना’ का मुकाबला नहीं है

कहाँ खो गई ‘माँ की लोरी’ रसीली
नींद को खा गईं हैं गोलियां नशीली

नानी दादी के किस्से हवा हो गए हैं
‘भीम छोटा”डोरेमॉन’ही सज गए हैं

  • कविता…भारत

इस देश की पावन माटी से हम तिलक लगाते हैं
इस कर्मभूमि इस तपोभूमि की गौरवगाथा गाते हैं
जहाँ सरस सुधा सी बहती रहती नदियों की धारा
स्वर्ग से भी सुंदर अनुपम है यह भारत देश हमारा

शीश सोहता मुकुट हिमालय सागर चरण पखारे
हर ऋतु बारी बारी से आकर जिसको खूब दुलारे
जहाँ खिले हर भोर सुनहरी साँझ भी रंग भरे न्यारा
स्वर्ग से भी सुंदर अनुपम है यह भारत देश हमारा

हरियाली खेतों में झूमे उपवन में फूल करें शृंगार
दश दिशि आलोकित रहती हैं पवन करे मनुहार
ज्ञान-विज्ञान का यहीं से जग में फैला उजियारा
स्वर्ग से भी सुंदर अनुपम है यह भारत देश हमारा

ऊँच नीच का भेद न कोई ना जाति धर्म का क्लेश
विश्वशांति और मानवता का सबको दिया संदेश
सारी वसुधा एक कुटुंब है यहीं से निकाला ये नारा
स्वर्ग से भी सुंदर अनुपम है यह भारत देश हमारा

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