महादेव का एक ऐसा शिवलिंग जो नदियों की सात धाराओं के बीच स्वयंभू स्थापित है. यह स्वयंभू शिवलिंग खुले आसमान के नीचे है और जल से घिरा हुआ है. सतना के भूतेश्वर महादेव मंदिर की ऐसी मान्यता है कि रात के समय शिवलिंग के आसपास से अलग-अलग प्रकार की आवाजें सुनाई देती हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि ढोल-नगाड़े बज कर कोई महादेव की आराधना कर रहा हो. शहर से दूर इस स्थान पर बरसात के मौसम में पहुंच पाना बहुत मुश्किल होता है.
सतना जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर ऊंचेहरा तहसील के धनिया ग्राम के नजदीक स्थित है भोलेनाथ का स्वयंभू शिवलिंग. यहां पर भूतेश्वर महादेव बिना किसी छत के जंगलों के बीच नदियों की सात धाराओं से घिरे हुए हैं. नदियों और पहाड़ों के बीच स्थित भगवान भोलेनाथ के दर्शन बरसात के दिनों में नहीं हो पाते, क्योंकि शिवलिंग चारो ओर से नदियों से घिर जाता है. बरसात में नदियों का जलस्तर बढ़ जाने पर यहां पहुंचना संभव नहीं हो पाता.
दिन ढलने के बाद कोई नहीं आता
भूतेश्वर शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि रात होते ही यहां ढोल नगाड़े बजने जैसी अलग-अलग तरह की विचित्र आवाजें सुनाई देती हैं. ऐसी मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ के आसपास भूत-पिशाच बने रहते हैं. इस वजह से यहां पर रात के समय ऐसी आवाजें आने लगती हैं. शाम के बाद यहां पर लोग नहीं आते.
नहीं बना पाए छत
स्थानीय समाजसेवी कैलाश ताम्रकार ने बताया कि इस मंदिर में एक बार प्रतिष्ठित व्यवसायी ने छत बनवाने का संकल्प लिया था, लेकिन वह इस कार्य में सफल नहीं हो सका. ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान भोलेनाथ स्वयं खुले आसमान के नीचे रहना चाह रहे हैं. यहां पर केवल शिवलिंग स्थापित है. जैसे-जैसे श्रद्धालुओं का यहां पर आना-जाना शुरू हुआ, वैसे-वैसे शिवलिंग के आसपास कुछ व्यवस्थाएं कर दी गईं.
स्थानीय समाजसेवी कैलाश ताम्रकार ने बताया कि इस मंदिर में एक बार प्रतिष्ठित व्यवसायी ने छत बनवाने का संकल्प लिया था, लेकिन वह इस कार्य में सफल नहीं हो सका. ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान भोलेनाथ स्वयं खुले आसमान के नीचे रहना चाह रहे हैं. यहां पर केवल शिवलिंग स्थापित है. जैसे-जैसे श्रद्धालुओं का यहां पर आना-जाना शुरू हुआ, वैसे-वैसे शिवलिंग के आसपास कुछ व्यवस्थाएं कर दी गईं.