पढ़िए इस खबर में कौन थे राजू पाल और उमेश पाल , क्यों राजू का जानी दुश्मन बन गया था अतीक !
अभी पिछले कुछ दिनों में अतीक अहमद,राजू पाल,उमेश पाल और हत्याकांड, इन सब नामों और इनसे जुड़े वाक्यों पर इतनी बाते होती रही कि क्या कहा जाए, न केवल उप्र की मीडिया बल्कि लगभग देश भर की मीडिया की निगाहे इनसे जुड़ी नई, पुरानी खबरों पर लगातार ही बनी रही,कभी तो कभी तो ऐसा लग रहा था जैसे देश गरम मुद्दों में अतीक अहमद से जुड़े मामले ही है केवल, ज्यादातर मीडिया का फोकस रहा अतीक अहमद,उसके बेटे असद अहमद,विशेषकर उसके झांसी में हुए एनकाउंटर के बाद,थोड़ी बहुत बाते/खबरें राजू पाल और उमेश पाल के विषय में भी हुई परंतु उतनी नही जितनी होनी चाहिए थी, जबकि अगर असद और उसके शूटर गुलाम का एनकाउंटर,या फिर दरमियानी रात अतीक और उसके भाई को पुलिस अभिरक्षा में गोलियों से भून कर मार दिए जाने का मामला हो, इन सभी मामलों की जड़ और कारण तो राजू पाल और उमेश पाल हत्याकांड ही हैI
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आज हम आपको बताएंगे विस्तार से कि कौन थे राजू पाल और उमेश पाल, और आज इस दुनिया में नही होने के बावजूद भी क्यों चर्चा में दोनो पाल:-
पूर्व बीएसपी विधायक राजू पाल की हत्या के बाद उमेश पाल एकमात्र ऐसा गवाह था जो अकेले ही अतीक के खिलाफ मोर्चा संभाले था। राजूपाल हत्याकांड से जुड़े बाकी गवाह बैकफुट पर आ गए थे। उनकी पत्नी पूजा पाल ने भी सत्ता बदल दी लेकिन उमेश नहीं डरा। 2005 से लेकर 2023 तक उमेश अकेले ही अतीक अहमद से मोर्चा ले रहा था।
कौन थे उमेश पाल:
18 साल पहले एक हत्या से शुरू हुई थी कहानी, जिसको शूटरों ने गोलियों से भूना__
उमेश पाल प्रयागराज के धूमनगंज इलाके के रहने वाले थे और वहीं से पढ़ाई की. ग्रेजुएशन करने के बाद वकालत भी की. मौजूदा समय में वकालत करने के साथ-साथ जमीन के कारोबार का काम भी कर रहे थे. इसी जमीन के कारोबार के चलते एक समय पूजा पाल और उमेश पाल के रिश्ते में खटास भी आई थी. उमेश पाल, राजू पाल की रिश्तेदारी में आते थे, लेकिन उमेश लोगों की निगाह में राजू पाल की हत्या के बाद आए क्योंकि इस हत्याकांड में उमेश पाल मुख्य गवाह के तौर पर जाने जाते थे.
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उमेश पाल पेशे से एक वकील थे व राजू पाल हत्याकांड का मुख्य गवाह थे।
उमेश पाल के बारे में करीबियों ने बताया कि वह राजू पाल के तब से दोस्त थे जब वह सक्रिय जीवन और राजनीति में नहीं थे। राजू पाल और पूजा पाल से उमेश पाल की रिश्तेदारी और घरेलू ताल्लुकात थे। रोज घर पर आना-जाना और साथ खाना-पीना होता था। बचपन की यह यारी उमेश पाल ने आखिरी सांस तक निभाई। वह राजू पाल हत्याकांड की पैरवी करते रहे और उससे जुड़े एक मुकदमे की पैरवी के बाद ही जिला न्यायालय से घर के लिए रवाना हुए थे। घर के बाहर ही उनके लिए शूटरों ने मौत का घेरा डाल रखा था।
उमेश ने राजू पाल के हत्यारों को सजा दिलाने की ठान रखी थी:
उमेश पाल के करीबी बताते हैं कि वह राजू पाल के साथ अपने रिश्ते को याद करते रहते थे। कभी बात होती तो कहते कि राजू पाल के साथ बचपन बीता है, आंखों के सामने राजू पाल की हत्या हो गई थी जो कभी भूलता नहीं। उनके कातिलों को सजा दिलाने की ठान रखी थी उमेश पाल ने। वह राजू की पत्नी पूजा पाल के साथ लगातार हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पैरवी करते रहे। पूजा पाल की पैरवी पर ही सुप्रीम कोर्ट ने राजू पाल हत्याकांड की जांच सीबीआइ के हवाले की थी और जब उसकी चार्जशीट लग गई तो उमेश पाल जल्द सुनवाई के लिए हाई कोर्ट में पैरवी करने लगे।
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राजू पाल हत्याकांड में निर्णय आने की थी संभावना:
उमेश पाल की पैरवी का ही नतीजा था कि जनवरी में हाई कोर्ट ने दो महीने में राजू पाल हत्याकांड का ट्रायल पूरा करने के लिए आदेश दिया। अतीक ने इस आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी तो उमेश पाल पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई के दौरान विरोध करने के लिए पहुंचे थे। आखिरकार यही आदेश जारी हुआ कि दो महीने में ट्रायल पूरा किया जाए। यानी जो मुकदमा 18 साल से लंबित था, उसमें दो महीने बाद निर्णय आने की पूरी संभावना थी।
उमेश पाल अपने करीबियों से कहते थे कि अब राजू पाल के कातिलों को सजा होनी पक्की है। उमेश पाल बेहद आशांवित थे कि अतीक और अशरफ को उम्रकैद होगी।
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उमेश पाल हत्याकांड:
उमेश पाल का 2007 में अपहरण कर लिया गया था और राजू पाल हत्याकांड में गवाही देने के लिए धमकाया गया था. इस मामले में उमेश पाल की ओर से धूमनगंज थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई थी. इस मामले में बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद, उनके छोटे भाई पूर्व विधायक खालिद अजीम उर्फ अशरफ समेत कई अन्य को आरोपी बनाया गया था.
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18 साल बाद 24 फ़रवरी 2023 को राजू पाल की तरह ही उमेश पाल की हत्या कर दी गई थी। उमेश पाल राजू पाल हत्याकांड का एकलौता गवाह था जो डरा नहीं और अतीक के खिलाफ मोर्चा खोले रहा. उसकी हत्या उस वक्त हुई थी जब उमेश पाल के अपहरण मामले में अतीक के खिलाफ सुनवाई अंतिम चरण में थी और छह हफ़्तों में फैसला आने वाला था.
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कौन थे राजू पाल:
2005 में प्रयागराज पश्चिम सीट से बीएसपी से विधायक बने राजू पाल, तब राजनीति में उभरता एक बड़ा नाम थे। पाल ने अतीक अहमद के भाई खालिद अजीम उर्फ मोहम्मद अशरफ को हराया था, जिसके बाद ही उनकी हत्या हो गई थी। राजू पाल ने अपने राजनीति की शुरुआत में 2002 में अतीक के खिलाफ प्रयागराज पश्चिम सीट से चुनाव लड़ा और हार गए। इसके बाद साल 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीते, तो विधानसभा से इस्तीफा दे दिया।
कहा जाता है कि राजू कभी अतीक का करीबी हुआ करता था, लेकिन उसके साथ हुई अनबन के बाद दोनों के बीच अदावत शुरू हो गई। इसके बाद ही 2002 में राजू ने पहली बार अतीक के खिलाफ चुनाव लड़ा था।
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राजू पाल हत्याकांड को शूटरों ने ऐसे दिया था अंजाम:
राजू पाल के शरीर से निकली थी 19 गोलियां ।
डॉक्टरों ने जब विधायक राजू पाल की डेडबॉडी का पोस्टमार्टम किया तो उनके शरीर से तकरीबन डेढ़ दर्जन गोलियां निकाली गयी थी।
दिनांक 25 जनवरी 2005, दोपहर तीन बजे का वक्त। कुछ महीने पहले बसपा के टिकट पर शहर पश्चिमी का विधायक चुने गए राजू पाल पोस्टमार्टम हाउस में एक पीड़ित परिवार से मिलने के बाद धूमनगंज के नीवां में अपने घर के लिए रवाना हुए थे। उनके काफिले में दो गाड़ियां थी, एक स्कार्पियो और दूसरी सफारी। पहले हो चुके हमले की वजह से राजू पाल को पुलिस के सुरक्षाकर्मी मिले थे जिन्हें राजू ने पीछे सफारी गाड़ी में भेज दिया और अपने करीबियों के साथ स्कार्पियो में बैठकर खुद ड्राइविंग करने लगे थे। सुलेमसराय में दोनों गाड़ियां नेहरू पार्क मोड़ के पास पहुंची तभी शूटरों ने घेरकर फायरिंग शुरू कर दी।
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राजू पाल के करीबी भी मारे गए थे:
गोलियों की बौछार के बीच राजू पाल और उनके करीबी देवी पाल और संदीप पाल भी मारे गए थे। करेली इलाके की रुख्साना भी जख्मी हुई थी। राजू पाल को गोलियों से छलनी गाड़ी से निकाल जीवन ज्योति अस्पताल ले जाया गया था जहां उन्हें मृत बताए जाने पर बसपा और राजू पाल समर्थकों ने सड़क पर आकर बवाल शुरू कर दिया था। राजू पाल का शव पोस्टमार्टम हाउस ले जाया गया तो समर्थकों ने पुलिस से शव छीना और चौफटका के पास रखकर चक्काजाम कर दिया। जमकर पथराव होने लगा।
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समर्थकों ने किया सड़क जाम कर किया था पथराव व आगजनी:
पुलिस बल ने किसी तरह शव अपने कब्जे में लिया और दोबारा पोस्टमार्टम हाउस ले गई। लेकिन इतनी देर में सुलेमसराय समेत अलग अलग इलाकों में बसपा समर्थक पथराव करने लगे थे। रात में पुलिस ने राजू पाल के शव का जबरन बिना परिवार की मौजूदगी के अंतिम संस्कार कर दिया तो इस खबर ने आग में घी का काम किया। सुबह सात बजने तक में सुलेमसराय में हजारों समर्थक सड़क पर जमा हो गए थे जो जाम लगाकर पथराव करने लगे। पुलिस अधिकारी पहुंचे तो उन्हें ईंट-पत्थर मारते हुए खदेड़ लिया। फिर तो करेलाबाग से लेकर झूंसी और राजापुर से लेकर शिवकुटी और ग्रामीण अंचल में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी थी। राजापुर पुलिस चौकी में उग्र भीड़ ने आग लगा दी। पुलिसवालों की गाड़ियां जला दी। खल्दाबाद, नुरूल्ला रोड, करेलाबाग, झलवा में भी आगजनी होने लगी तो पुलिस के हाथ-पांव फूले। शाम तक पुलिस पथराव से निपटने और आग बुझाने में जूझती रही।
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अतीक की गाड़ी में घूमता था वो अफसर:
राजू पाल हत्याकांड के वक्त यूपी में सपा सरकार थी और माफिया अतीक अहमद का बोलबाला था या कहें दबदबा था। अतीक का ऐसा खौफ था कि पुलिस अधिकारी उसके दरबार में जी-हुजूरी करते। एक पुलिस अधिकारी उसकी गाड़ी में बैठकर घूमता था। राजू पाल को अतीक से जान का खतरा था लेकिन जानकर भी पुलिस लापरवाही बरतती रही थी।
by Er. Umesh Shukla for ‘VIRAT24’ news
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