कौन हैं नेपाल में भगवान शिव के अवतार ‘पशुपतिनाथ’, दर्शन करने से मिलता है ये फल

काठमांडू में बना पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल में सबसे बड़ा मंदिर परिसर है और बागमती नदी के किनारे स्थित है. नेपाल और भारत के हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन यहां आते हैं. महाशिवरात्रि के दिन इन श्रद्धालुओं की संख्या करीब 5 लाख तक पहुंच जाती है. इस प्राचीन मंदिर में दर्शन के लिए न सिर्फ भारत और नेपाल बल्कि दुनिया के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं.

नेपाल की राजधानी काठमांडू के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में महाशिवरात्रि बेहद धूमधाम से मनाई जाती है. यहां हर साल मेला लगता है जिसमें दुनिया भर से हजारों श्रद्धालु बाबा पशुपतिनाथ के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. भारत के बहुत सारे साधु शिवरात्रि मनाने के लिए काठमांडू जाते हैं. चंद्र कैलेंडर के मुताबिक फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है. पशुपतिनाथ मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल भी है.

पशुपतिनाथ मंदिर में भक्तों के अलावा नेपाल और भारत के विभिन्न हिस्सों से सैकड़ों साधु भी इस मंदिर में पहुंचते हैं. इन साधुओं ने मंदिर के चारों ओर विभिन्न स्थानों पर डेरा डाला हुआ है, अलाव जला रहे हैं और चिलम फूंक रहे हैं.

पशुपति नाथ को सभी जीवित प्राणियों का स्वामी माना जाता है. सभी जीवित और मरने वाले प्राणियों को पशु माना जाता है और उन्हीं के स्वामी पशुपतिनाथ हैं. दूसरे अर्थों में पशुपतिनाथ का अर्थ है जीवन का मालिक.

नेपाल पंचांग निर्धारण समिति के अनुसार फाल्गुन की कृष्ण चतुर्दशी की मध्य रात्रि में ब्रह्मा ने शिव का रूप धारण किया था. इसलिए, इन दिन प्रार्थना, पूजा की जाती है और भगवान शिव के मंदिरों में जाया जाता है. हिंदुओं का मानना ​​है कि इस दिन पूजा-अनुष्ठान करने से जीवन में शांति और समृद्धि आती है.

एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव यहां पर चिंकारे का रूप धारण कर ध्यान में बैठे थे. जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी. कहा जाता हैं इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में टूट गया था. इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में यहां प्रकट हुए थे.

पशुपतिनाथ मंदिर के बारे में एक यह मान्यता भी है कि जो भी व्यक्ति इस स्थान के दर्शन करता है उसे किसी भी जन्म में फिर कभी पशु योनि प्राप्त नहीं होती है. हालांकि शर्त यह है कि पहले शिवलिंग के पहले नंदी के दर्शन ना करे. यदि वो ऐसा करता है तो फिर अलगे जन्म में उसे पशु बनना पड़ता है.

भारत और नेपाल के बीच सदियों पुराने संबंध हैं. भारत समय-समय पर नेपाल का सहयोग भी करता है. कुछ समय पहले भारत ने नेपाल में एक मैत्री धर्मशाला का भी उद्घाटन किया था.

पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान की सेवा करने के लिए 1747 से ही नेपाल के राजाओं ने भारतीय ब्राह्मणों को आमंत्रित किया था. बाद में ‘माल्ला राजवंश’ के एक राजा ने दक्षिण भारतीय ब्राह्मण को मंदिर का प्रधान पुरोहित नियुक्त कर दिया. दक्षिण भारतीय भट्ट ब्राह्मण ही इस मंदिर के प्रधान पुजारी नियुक्त होते रहे थे. लेकिन अब नेपाल की प्रचंड सरकार के काल में भारतीय ब्राह्मणों का एकाधिकार खत्म कर नेपाली लोगों को पूजा का प्रभाव सौंप दिया गया.

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