- कजलिया पर्व: गोविंदगढ़ किले में धूमधाम से मनाया गया, महाराजा पुष्पराज सिंह ने क्षेत्र वासियों को दी शुभकामनाएं
कजलियां पर्व का उत्साह: रीवा जिले में धूमधाम से मनाया गया कजलियों का त्योहार, बड़े-बुजुर्गों ने दिया छोटों को आशीर्वाद, तो बड़ों को किया प्रणाम
रीवा रियासत काल से चली आ रही परंपरा को वर्तमान महाराजा पुष्पराज सिंह अनवरत जारी रखे हुए हैI कजलिया का पर्व रीवा जिले के गोविंदगढ़ किले में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जहां दुरदराज से हजारों की संख्या में लोग पहुंचकर महाराजा पुष्पराज सिंह को कजलिया भेंट करते हैं और शुभकामनाएं लेते हैं।
रक्षाबंधन के बाद काजलिया का त्योहार पूरे जिले में हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता हैI अच्छी फसल के लिऐ यह त्यौहार मनाया जाता हैI नई फसल होने पर उसे कजलिया के रुप में अपने मुखिया को भेंट की जाती हैI आज काजलिया के पावन पर्व पर पूर्व मंत्री व रीवा महाराजा पुष्पराज सिंह गोविंदगढ़ के कट बांग्ला में रघुराज सिंह जूदेव द्वारा शुरू की गई काजलिया मनाने की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कजलिया का त्यौहार मनाया।
रीवा में कजलिया त्यौहार करीब 172 वर्ष से मनाया जा रहा है, जो आज भी जीवित हैI रीवा रियासत के तत्कालीन महाराजा रघुराज सिंह जू देव ने अपने कार्यकाल 1855-56 मे गोविंदगढ़ के किला के काठ बंगले में की थीI आज भी गोविंदगढ़ क्षेत्र में काजलिया का त्योहार पूरे उत्सव और उमंग के साथ मनाया जाता हैI महाराजा पुष्पराज सिंह जूदेव द्वारा लोगों के बीच अपने पूर्वजों की गरिमा का निर्वहन करते हुए काजलिया मिलने गोविंदगढ़ किले में पधारेI जहां दूर-दूर से कई ग्रुप में लोग काजलिया मिलने आएI नाचते गाते, ढोल ढमाकों के साथ पुष्प एवं कजलियां देकर महाराजा पुष्पराज सिंह जू देव का स्वागत किया गया।
बघेलखंड में कजलियां पर्व की मान्यता :
बता दें कि कजलियों का पर्व बघेलखंड और बुंदेलखंड में रक्षाबंधन के दूसरे दिन परीवा को धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व एक-दूसरे से मिलने-मिलाने वाला त्योहार है। इस दिन लोग अपने से बड़ों को कजलियां देकर पैर छूते हुए आशीर्वाद मांगते है। हालांकि अब ये त्योहार कुछ घरों तक ही सीमित रह गया है। मान्यता है कि गेहूं, जौ और बांस के बर्तनों में खेत की मिट्टी डालकर कजलियों का बीच नागपंचमी के दूसरे दिन ज्यादातर घरों में डाला जाता है। जबकि घर की कन्याएं व महिलाएं रक्षाबंधन तक जल देते हुए कजलियों का पौधा तैयार करती है।
विंध्य क्षेत्र के रीवा और सतना जिले में आपसी प्रेम और भाईचारे का प्रतीक कजलियां पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया गया। इस दौरान जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित किए गए। शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों तक कजलियों का त्योहार पारंपरागत रूप से मनाया गया। जहां महिलाएं, पुरुष, बच्चे आदि ने अपनी सहभागिता निभाई। नदी, तालाब और सरोबर में टोकरी और मिटटी को विसर्जित कर कजलियां लेकर लौटी महिलाओं व कन्याओं ने सबसे पहले घर के सदस्यों को कजलियां दी। जहां बड़े-बुजुर्गों ने छोटों को आशीर्वाद दिया तो वहीं छोटों ने बड़ों को प्रणाम किया।
क्या है कजलिया पर्व :
मान्यतानुसार इसका प्रचलन राजा आल्हा ऊदल के समय से है। यह पर्व अच्छी बारिश, अच्छी फसल और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना से किया जाता है।
‘कजलिया’ प्रकृति, प्रेम और खुशहाली से जुड़ा हुआ त्यौहार है। इसे राखी के दूसरे दिन मनाया जाता है। इसे मनाने का प्रचलन कई सदियों से चला आ रहा है। इसे ‘भुजलिया’ या ‘भुजरिया’ के नाम से भी जाना जाता है। सावन महीने की पूर्णिमा को रक्षाबंधन मनाने के बाद अगले दिन भाद्रपद महीने की प्रतिपदा को भुजरिया पर्व मनाया जाता है।
उल्लेखनीय है कि रक्षाबंधन के दूसरे दिन कजलियां मनाने का यहां की पुरानी परंपरा है जो आज भी जीवंत है। रीवा राजतंत्र के जमाने से शुरू किया गया यह पर्व आज भी पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को लेकर इस वर्ष लोगों में काफी उत्साह रहा। क्योंकि पिछले वर्ष कोरोना संक्रमण को लेकर पूरे उत्साह के साथ कार्यक्रम नहीं मनाया जा सका था लेकिन इस वर्ष इस त्योहार को अच्छे ढंग से मनाया गया। सभी जाति-धर्म के लोग एक-दूसरे को कजलियां देकर शुभकामनाएं दी तथा आपसी भाईचारे को बढ़ावा दिया।