ओडिशा रेल हादसा, बिहार ब्रिज ढहना और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का खेला! आपस में कैसे है जुड़े,पढ़िए इस समीक्षात्मक खबर में

ओडिशा रेल हादसा, बिहार ब्रिज ढहना और इन दोनों घटनाओ में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का गिरता स्तर

लोकतन्त्र के चौथे स्तंभ का गिरता स्तर

जी हां, लोकतन्त्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया का स्तर दिन ब दिन गिरता ही जा रहा है, और हम ये यूँ नहीं लिख रहे बल्कि अगर आप ये लेख अंत तक पढ़ेंगे तो आप भी हमराय होंगे ऐसी हमारी उम्मीद है।
आप बस अंत तक इस लेख को पढ़ने की जहमत उठाइए …

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हम दो हाल ही में देश में हुई घटनाओं की बात करेगे, और बताएंगे कि आखिर कैसे देश की मीडिया इन दोनो घटनाओं को हैंडल करती है और कैसे कवरेज किया जा रहा है। दोनो घटनाएं आम जनता से सरोकार रखती हैं।दोनो ही घटनाओं में जब उपलब्धि मिलती है तब तो सब को पीछे छोड़ खुद श्रेय लेते है लेकिन जब कोई विपदा आती है तो नैतिक जिम्मेदारी न लेते हुए सबसे पीछे खड़े रहते है और बली का बकरा खोजने में लग जाते है
बहरहाल आगे बढ़ते है और सबसे पहले बताते है दोनो घटनाक्रम को:-

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पहली घटना : भीषण ट्रेन हादसा
भारत की इस सदी की सबसे भीषण दुर्घटना बताई जा रही इस दुर्घटना की वजह अभी साफ नहीं हो पाई है। बीते शुक्रवार यानी 2 जून 2023 की शाम करीब 7 बजे उड़ीसा के बालासोर में एक भीषण रेल दुर्घटना हुई थी। इस दुर्घटना में तीन ट्रेन एक दूसरे से भिड़ गयी थी। दुर्घटना की एक रिपोर्ट के आगे, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दुर्घटना के संभावित कारण के रूप में “इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव” का हवाला देते हुए दुर्घटना के कारण सिग्नल विफलता का सुझाव दिया।
प्राप्त जानकारी अनुसार उक्त दुर्घटना में अब तक 288 मौते हुई है तो वही घायलों की संख्या 1175 बताई जा रही है, 793 घायलों की अस्पताल से छुट्टी हुई है जबकि करीब 382 अभी उपचार के लिए अस्पतालों में भर्ती है।

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दूसरी घटना: बिहार में ब्रिज का ढहना
बिहार के भागलपुर और खगड़िया को जोड़ने वाले निर्माणाधीन ब्रिज के गिरने से हड़कंप मच गया। ये दूसरी बार है जब पुल गिरा है। हालांकि, सरकार ने कहा कि पुल गिरा नहीं बल्कि इसके स्ट्रक्चर में गड़बड़ी है इसलिए इसे ढहाया जा रहा। बिहार के भागलपुर में 1700 करोड़ की लागत से बन रहे पुल (Bhagalpur Bridge Collapse) का एक हिस्सा रविवार शाम अचानक ही ढह गया। ये पुल गंगा नदी पर बन रहा है। भागलपुर को खगड़िया जिले से जोड़ने वाले अगुवानी-सुल्तानगंज पुल के गिरने से किसी के हताहत होने की खबर नहीं है।

अब आते है मुख्या बात पर आखिर कैसे इसमें मीडिया का स्टार गिर रहा, जाहिर है दोनों घटनाये बड़ी है , मीडिया का प्रमुखता से कवर करना तो बनता ही है। और वो देश की मीडिया ने किया भी, कर भी रही है ,लगभग हर स्तर की मीडिया फिर चाहे वो स्थानीय, राज्य सत्रीय या राष्ट्रिय स्तर की मीडिया हो, प्रिंट मीडिया या डिजिटल मीडिया हो सभी ने अपने अपने स्तर पर कवर किया उक्त दोनों खबरों को सियासी पारा भी खूब चढ़ा, स्वभाबिक है विरोधी दल और नेता जिम्मेवारो पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे , यही उनका अब कर्तव्य भी रह गया है।
वैसे बात अगर जिमेवारी की करे तो पहली घटना यानी रेल हादसा की नैतिक जिम्मेवारी तो केंद्र सरकार की बनती है, तो वही ब्रिज की नैतिक जिम्मेवारी बिहार सरकार पर।

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अगर बिहार में ढहते पूल के लिए सीएम नितीश और तेजस्वी जिम्मेवार है और वहां विरोधी दल के रूप में बीजेपी उक्त दोनों का इस्तीफा मांग रही तो क्या रेल हादसों के लिए पीएम मोदी और रेल मंत्री भी जिम्मेवार नहीं और इसलिए उनके भी इस्तीफे नहीं होने चाहिए जैसा की कांग्रेस और अन्य विरोधी मांग रहे है।

साथ ही अगर मीडिया में आ रही तस्वीरो को भी देखिये खासकर थंबनेल को तो आप पाएंगे कि बिहार के ब्रिज ढहने वाली तस्वीरो में नितीश और तेजस्वी के चेहरे बतौर जिम्मेवार शोभायमान है तो वही रेल हादसे की तस्वीरो में मोदी और रेल मंत्री के चेहरे उस एंगल से गायब है और अगर उनकी तस्वीरें चस्पा हैं भी तो जैसे वो राहत देने वाले हो कुछ इस कोण में फिट की गयी है। आखिर ये दोगलापन नहीं तो और क्या है ???

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ब्रिज की जल समाधी ! किसकी है जिम्मेवार ???(यहाँ साफ़ दिख रहा है कि मीडिया कितना मुस्तैद है एक सजग प्रहरी की तरह कि आखिर कौन है जिम्मेवार ?)
जबकि रेल हादसे में,
रेल हादसा : सवाल और सियासत! (यहाँ साफ़ लग रहा कि मीडिया बड़ा भ्र्म में है कि आखिर कौन खेल रहा खेला और कैसे हो रही है सियासत ?यहाँ सवालो का प्रहार घातक तो कतई नहीं कहा जा सकता है)

बात अगर करें जनहानि की तो जहा रेल हादसे में जहा सैकड़ो मृत हुए तो वही हजारो घायल है जबकि ब्रिज के गिरने में कोई हताहत नहीं हुआ है। रेल हादसे के लिए अभी कहा जा रहा कि तकनिकी खामी हो सकती है तो वही ब्रिज गिरने में खुद नितीश कह चुके है कि तकनिकी खामिया थी इसलिए गिराया गया, तो भी मीडिया नैतिक रूप से जिम्मेवार लोगो में एक तरफ तो जहा जनहानि हुई है वहां जिम्मेवारों को हीरो बना रही है जबकि ब्रिज के मामले में जहा कोई जनहानि नहीं हुई, वहां नितीश और तेजस्वी को बड़ा भारी खलनायक बनाने और बताने पर तुली हुई है। आखिर यह भी खोकलापन नहीं तो और क्या है।

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ओडिशा रेल हादसे में बमुश्किल ही केंद्र सरकार पर सवाल उठाये गए है, खासकर पीएम के ऊपर तो कतई नहीं, जबकि बिहार ब्रिज हादसे में सीएम नितीश और मंत्री तेजस्वी पर तो सवालो की बौछार ही कर दी गयी, यहाँ तक की इस्तीफा ही माँगा जा रहा है ???
क्या नैतिकता के आधार पर पीएम और रेल मंत्री को भी इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए या कम से कम रेल मंत्री को इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए जैसा की विरोधी दल और नेता मांग कर रहे है ???

सूत्रों अनुसार कहा तो यह भी जा रहा है कि रेल हादसों में जिमेवार तकनिकी खामी और अधिकारी ही बलि के बकरे बनेगे और नपेंगे तो क्या ऐसे में बिहार ब्रिज मामले में अधिकारी और कर्मचारी और तकनिकी खामी नहीं जिमेवार होनी चाहिए। जिस तरह से मीडिया बिहार ब्रिज मामले में नितीश और तेजस्वी पर हमलावर है उससे तो कभी कभी ऐसा लगता है जैसे नितीश ही ब्रिज पर सीमेंट की बोरिया पंहुचा रहे थे और तेजस्वी ने सरिया पहुंचने का जिम्मा खुद ही ले रखा था। आखिर जिम्मेवारी तय करने के मामले में ये मीडिया का दोगलापन नहीं तो और क्या है। क्या दर्शक/पाठक इस दोगलेपन को समझा पा रहे है ???

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मीडिया की रिपोर्ट्स को अगर गौर से देखे तो हम पाएंगे कि मीडिया चुनाव नजदीक आने के साथ ही सियासी ड्रामे में शामिल हो चूका है और खेला शुरू हो गया है किसी को चमकाने तो किसी को धूमिल करने में खेल में।

रिपोर्ट्स की ही बात करे तो हम पाते है कि रेल हादसे में कुछ यूँ खबरे पढ़ने को मिल रही जैसे पीएम भावुक है, रेल मंत्री भावुक है, शोक संतृप्त परिवारों के साथ खड़े है, जबकि बिहार ब्रिज वाली खबरों में खबरे पढ़ने को मिलेगी जैसे भ्रस्टाचार की खुली पोल, कौन है जिमेवार, तो क्या रेल हादसे में कोई नेता जिमेवार नहीं है सिर्फ अधिकारी जिमेवार होंगे, उन पर ही गाज गिरेगी ,रेल मंत्री दोषमुक्त है, याद कीजिये उन्होंने कुछ समय पहले ही कहा था कि रेल में कवच सिस्टम आ गया है अब ट्रैन नहीं भिड़ेगी, तो क्या मेरदिअ को नहीं पूछना चाहिए कि आखिर कवच सिस्टम क्यों नही काम नहीं किया, क्या जल्दबाजी हो गयी थी एलान में कि अप्लाई करने से पहले ही मीडिया में ढोल पीट दिया था ??? अगर ऐसा था तो कौन है जिम्मेवार?? तो क्यों न रेल मंत्री जी इस्तीफा दे दे ??

बात इस्तीफे की कर रहे तो आप को बता दें कि पहले भी कुछ मौको पर रेल हादसे हुए है जब रेल मंत्रियों ने बगैर हिला हवेली करे इस्तीफे दे दिए है। जी हां हम बात कर रहे है सन 1956 की जब रेल हादसे में करीब 142 मौतए हुई और तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने नैतिक जिम्मेवारी मानते हुए इस्तीफा दिया था। इसी कड़ी में थोड़ा और आगे बढिये और पहुँचिये सन 1995 में जब रेल हासे में करीब 250 मौते हुई और तत्कालीन रेल मंत्री नितीश कुमार ने इस्तीफा दिया था। तो क्या अब इस ओडिसा हादसे के रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव को इस्तीफा देने में देर करनी चाहिए ????

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लेकिन मौजूदा रेल मंत्री तो इस्तीफा देने की बजाय हादसे की जगह में नारा लगा और लगवा रहे, रेल के पहिये के नीचे से निकलते हुए फोटो खिचवा रहे है, जबकि यह काम तो अभियंताओं और राहत कर्मियों का है, वैसे अगर रेल मंत्री ने स्वयं इस तरह से एकाक रेस्क्यू किया हो तो हमे इसकी जानकारी नहीं है!!!

बहरहाल आते है कपडे बदलने पर….आपको याद है ना सन 2008 में जब 26/11 में मुंबई में आतंकी घटना हुई थी, उस समय बड़ा आरोप लगा था देस के तत्कालीन गृह मंत्री पाटिल पर और उनके उक्त दिन कपडे बदफैलने के मामले पर, बाद में उनका इस्तीफा भी हुआ, अगर इस बार रेल हादसे की बात करे तो देश के पीएम मोदी भी रिव्यु मीटिंग में कुर्ते पाजामे में दिखे जबकि जब घटना स्थल पहुंचे तो कोटी धारण कर ली, क्या इसे कपडा बदलना नहीं कहेगे, वो भी इस भीषण गर्मी में, दुःख की त्रासदी में उन्हें याद रहा की कोटी धारण करनी है !! मीडिया उनसे अब क्यों नहीं पूछता उनसे इस पर सव्वल ?????

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सार
मीडिया आखिर रेल हादसे में देश के पीएम मोदी और रेल मंत्री से भी तो पूछे कि विरोधी आप का इस्तीफा मांग रहे, आप क्या कहना चाहेंगे इस पर, क्या आप की नैतिक जिमूवरी नहीं बनती ???
या फिर सिर्फ बिहार ब्रिज हादसे में जिसमे कोई जनहानि नहीं हुई उसी बस में मीडिया सवाल पूछने को लालायित है ??? जिम्मेवारी तय करने की होड़ में है ????

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यह सब सवाल है जो मीडिया के खोकलेपन को दर्शाता है, गिरते स्तर को दर्शा रहा है, “बिहार ब्रिज तो फिर भी बन जाएगा पर लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ पुल जो गिरता ही जा रहा वो कैसे बनेगा ” या अहम सवाल तो यही है !!!

by Er. Umesh Shukla for ‘Virat24’ news

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