यहाँ पश्चिम से निकलता है सूरज !!!

  • यहाँ पश्चिम से निकलता है सूरज !!!

हम सबने अक्सर सुना होगा कि सूरज कभी पश्चिम से नहीं निकलता. हमारे सौरमंडल में दो ग्रह- शुक्र (Venus) और यूरेनस ऐसे भी हैं, जहां सूरज पश्चिम से निकलता है और पूरब में अस्त होता है. चंद्रयान-3 की सफलता के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि इसरो (ISRO) शुक्र मिशन (Venus Orbiter Mission) की भी तैयारी कर रहा है.


सब कुछ प्लान के मुताबिक रहा तो अगले साल यानी 2024 के अंत तक ‘शुक्रयान’ (Shukrayaan) रवाना हो जाएगा. आखिर भारत, शुक्र मिशन से क्या हासिल करना चाहता है, क्यों ये अब तक का सबसे कठिन मिशन हो सकता है. इस राह में क्या मुश्किलें हैं?

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पहले शुक्र को जान लीजिए
शुक्र, बुध के बाद दूसरा ऐसा ग्रह है जो सूरज के सबसे करीब है. आसान भाषा में कहें तो सूरज से दूरी के मामले में शुक्र, सौरमंडल का दूसरा ग्रह है. सूरज से शुक्र की दूरी 10.82 करोड़ किलोमीटर (108.79 Million Km) है. वजन 486,732 अरब किलो. एक और बात शुक्र को खास बनाती है. जो इसकी धुरी है यानी एक्सिस. शुक्र अपनी धुरी पर 2.64 डिग्री झुका है, जबकि धरती 23.5 डिग्री झुकी है. इसीलिए जहां पृथ्वी अपनी धुरी पर एक चक्कर 24 घंटे में लगाती है, वहीं शुक्र को एक चक्कर लगाने में 243 दिन लग जाते हैं.

शुक्र की तुलना नर्क से क्यों?
तमाम खगोल वैज्ञानिक शुक्र की तुलना ‘नर्क’ से भी करते हैं. इसकी वजह यहां का तापमान और वातावरण है. शुक्र, भले ही सूरज से दूरी के मामले में बुध के बाद दूसरा ग्रह हो, लेकिन इसका तापमान बुध से कई गुना ज्यादा है. शुक्र का तापमान 471 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. जो दुनिया की किसी भी चीज को पलक झपकते पिघला सकता है. शुक्र का वायुमंडल बेहद जहरीला है. ज्यादातर हिस्से पर कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फ्यूरिक एसिड की मोटी परत है.

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इसकी वजह से शुक्र पर पृथ्वी के मुकाबले हवा का दबाव 90 गुना अधिक है. इतना दबाव समुद्र में 3300 फीट की गहराई पर होता है. कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फ्यूरिक एसिड की मोटी परत की वजह से ही शुक्र चमकीला दिखाई देता है. खासकर रात में इसकी चमक के चलते इसे आसानी से पहचाना जा सकता है.

दो तिहाई हिस्से पर ज्वालामुखी
Space.com के मुताबिक शुक्र का दो तिहाई हिस्सा सपाट मैदान से ढका है, जिस पर हजारों की संख्या में ज्वालामुखी हैं. इऩमें कई एक्टिव हैं. कुछ ज्वालामुखी तो 240 किलोमीटर चौड़े हैं. इसमें से 5000 किलोमीटर तक लावा बहता रहता है. इसी तरह शुक्र का एक तिहाई हिस्सा पहाड़ से ढका है. सबसे ऊंचे पहाड़ ‘मैक्सवेल’ की ऊंचाई करीब 12 किलोमीटर है.

शुक्र पर क्यों जाना चाहता है भारत?
इसरो के शुक्र मिशन का उद्देश्य शुक्र के घने वायुमंडल के नीचे छिपे रहस्यों को उजागर करना और इसके भूवैज्ञानिक इतिहास व वायुमंडलीय स्थितियों की पड़ताल करना है. इसरो इस मिशन के जरिये यह पता भी लगाएगा कि क्या शुक्र पर किसी सूरत में रहा जा सकता है. इसरो के शुक्रयान में शुक्र की सतह और वायुमंडल का अध्ययन करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक से लैस उपकरण होंगे. शुक्रयान के साथ रिमोट सेंसिंग उपकरण भी होंगे, जो शुक्र के वातावरण की पड़ताल करेंगे.

घंटे भर भी नहीं टिक सका था US स्पेसक्राफ्ट
NASA के सोलर सिस्टम एक्सप्लोरेशन वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक शुक्र पर अब तक जितने भी मिशन भेजे गए हैं, उसमें रूस के अंतरिक्ष यान ने शुक्र की सतह पर सबसे सुरक्षित लैंडिंग की, लेकिन चंद मिनट ही सर्वाइव कर पाया. 1978 में अमेरिका ने वीनस-1 और वीनस-2 मिशन के तहत जो स्पेसक्राफ्ट भेजे थे, वे शुक्र की सतह पर लैंडिंग के बाद घंटे भर भी सर्वाइव नहीं कर पाए और पिघलकर गायब हो गए.

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1962 में पहली बार लगा था पता
शुक्र ऐसा पहला ग्रह है, जिसकी खोज किसी स्पेसक्राफ्ट के जरिये हुई थी. 14 दिसंबर 1962 को नासा (NASA) के स्पेसक्राफ्ट मैरिनर 2 (Mariner 2) ने पहली बार इस ग्रह का पता लगाया था. तब से अब तक पिछले 62 सालों में अमेरिका, रूस, जापान और यूरोप, शुक्र पर अलग-अलग मिशन भेज चुके हैं.

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